सम्मान का पात्र
राजा शत्रुदमन का पुत्र अरिदमन अत्यंत अहंकारी था। उसमें करुणा, उदारता, सेवा, दया, सहानुभूति जैसे गुणों का सर्वथा अभाव था। राजा भी उसके स्वभाव से परिचित थे। अतः उन्होंने उसे एक सिद्ध महात्मा के पास स्वभाव-परिवर्तन के उद्देश्य से भेज दिया। एक दिन महात्मा ने अरिदमन से एक वृक्ष की पत्तियां तोड़कर लाने को कहा। साथ ही आदेश दिया कि यदि पत्तियां कड़वी हों तो उन्हें न लाएं। काफी समय लगाकर अरिदमन वापस लौटा और महात्मा से बोला, ‘महाराज! वे सभी पत्तियां कड़वीं थीं, पूजा योग्य नहीं थीं, इसलिए मैं उन्हें नहीं लाया।’ महात्मा बोले, ‘पुत्र! ठीक इसी प्रकार जीवन से भी सभी कड़वी चीजें फेंक देने योग्य होती हैं। तुम भी अपने अंदर से दोष-दुर्गुणों रूपी कड़वाहट को फेंक दो और सबके प्रति मधुर बनो। मधुर स्वभाव का व्यक्ति ही सम्मान का पात्र होता है।’ उस दिन से अरिदमन का कायाकल्प हो गया।
प्रस्तुति : मुकेश ऋषि