World Parkinsons Day पार्किंसन अब बुजुर्गों की नहीं, हर उम्र की चुनौती बन गया
- इलाज में जेनेटिक्स, मिलेट्स और नई तकनीकें ला रही हैं क्रांति
विवेक शर्मा/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 11 अप्रैल
World Parkinsons Day सोचिए, अगर कोई कहे कि कब्ज और नींद न आना भी एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी के लक्षण हो सकते हैं—तो शायद आप चौंक जाएंगे। लेकिन फोर्टिस मोहाली के डॉक्टरों का कहना है कि ये लक्षण पार्किंसन की शुरुआत हो सकते हैं।
कभी उम्रदराज़ लोगों की बीमारी समझे जाने वाले पार्किंसन रोग की अब पहचान और इलाज, दोनों में क्रांतिकारी बदलाव आ रहे हैं। जेनेटिक टेस्टिंग, मिलेट्स आधारित डाइट और दिमाग पर असर डालने वाली तकनीकों ने इस जटिल बीमारी को समझने और नियंत्रित करने की दिशा में उम्मीद जगाई है।
जब सामान्य लक्षण बनें गंभीर संकेत
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुदेश प्रभाकर बताते हैं कि थरथराते हाथ-पांव, शरीर में जकड़न, धीमी चाल, डिप्रेशन और नींद न आना इसके आम लक्षण हैं। लेकिन कई मरीजों में शुरुआत कब्ज जैसी मामूली दिखने वाली शिकायत से होती है।
बाजरे जैसी देसी चीज़ें बना रहीं मददगार डाइट
पार्किंसन की प्रमुख दवा एल-डोप़ा का असर तब बढ़ जाता है, जब मरीज मिलेट्स (जैसे बाजरा, ज्वार) को डाइट में शामिल करते हैं। डॉ. निशित सावल बताते हैं कि मिलेट्स में मौजूद कम प्रतिस्पर्धी अमीनो एसिड इस दवा के अवशोषण को बेहतर बनाते हैं। उन्नत रोगियों के लिए एल-डोप़ा का तरल रूप (एलसीएएस) भी अधिक असरकारी है।
अब दिमाग के भीतर, बिना चीरे के इलाज
चलते-चलते अचानक पैरों का रुक जाना—‘फ्रीजिंग ऑफ गेट’—पार्किंसन का एक बेहद परेशान करने वाला लक्षण है। इसका इलाज अब बिना सर्जरी के, डीप ट्रांसक्रानियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन (डीप टीएमएस) से संभव हो रहा है। वहीं, सोशल मीडिया पर वायरल एमआरआई-गाइडेड फोकस्ड अल्ट्रासाउंड तकनीक पर डॉक्टरों ने साफ किया कि यह अभी पूरी तरह से प्रयोगात्मक है।
डॉ. रवनीत कौर के मुताबिक कुछ विशेष जीन म्यूटेशन के कारण पार्किंसन होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। ऐसे में जेनेटिक टेस्टिंग के जरिए पहले ही खतरे का आकलन कर उचित कदम उठाए जा सकते हैं।
जब दवाएं नहीं करें असर, तब सर्जरी दे जीवन
न्यूरोसर्जन डॉ. अनुपम जिंदल का कहना है कि डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) और पैलिडोटॉमी जैसी सर्जिकल तकनीकें उन मरीजों के लिए कारगर हैं, जो दवाओं से लाभ नहीं पा रहे।