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सऊदी अरब व रूस के मनमाने तेल दाम की बंधक दुनिया

06:29 AM Oct 03, 2023 IST
सुषमा रामचंद्रन

विश्व के सबसे बड़े तेल निर्यातक, सऊदी अरब और रूस, कच्चे तेल की कीमत को ऊंचा कर लगभग एक साल पहले वाला दाम करने में सफल हो गए हैं। स्पष्टतः यह काम उन्होंने मार्च महीने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कम होती कीमत से चिंतित होकर किया है और इसके लिए दोनों ने एकजुट होकर उत्पादन को इतना घटाया कि दाम 90 डॉलर प्रति बैरल से नीचे न जाने पाए। अनेकानेक वैश्विक निवेशक बैंकों ने भी पूर्व-भविष्यवाणी की है कि 2024 में भाव 100 डॉलर प्रति बैरल छू जाएगा, यह परिदृश्य चिंतित करने वाला है, कम-से-कम भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए।
रोचक यह है कि दोनों मुल्कों के भारत के साथ निकट संबंध हैं। सऊदी अरब के मामले में, पिछले कुछ सालों में रिश्ते उत्तरोतर प्रगाढ़ हुए हैं और युवराज मोहम्मद बिन सलमान की हालिया भारत यात्रा में आठ संयुक्त समझौतों पर आखिरी निर्णय हुआ है। इनमें अधिकांश सऊदी अरब द्वारा 100 बिलियन डॉलर की निवेश पेशकश से संबंधित हैं। इसमें एक है भारत के पश्चिमी तट पर सऊदिया कच्चा तेल परिशोधन संयंत्र स्थापना।
जहां तक रूस की बात है, दशकों से चली आ रही सामरिक साझेदारी यूक्रेन युद्ध के बाद गहरे आर्थिक संबंध में तब्दील हो चुकी है। पिछले एक साल में, जहां तेल कीमतें ऊपर गई हैं वहीं भारत को रूस से तेल बाजार भाव की बजाय रियायती दरों पर मिलता रहा।
भारत से इतने मधुर रिश्तों के बावजूद, दो अग्रणी तेल निर्यातकों ने मिलकर तय किया है वैश्विक बाजार में तेल-भाव ऊंचा बना रहे,यह स्थिति अपनी जरूरत का 85 फीसदी तेल आयात करने वाले भारत जैसे देश के लिए बहुत मुश्किलें पैदा करेगी। यह करते वक्त उन्हें भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थों की परवाह कम ही है। तेल कीमत ऊंची बने रहने से आयात की लागत में इजाफा होने से राजकोष पर काफी बोझ पड़ेगा, जोकि वर्ष 2023-24 में 158 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा। गोल्डमैन सैस और सिटीबैंक एवं अनेकानेक निवेशक एजेंसियों का अनुमान है कि अगले साल भाव और उठने का असर भी उतना ज्यादा रहेगा।
आर्गेनाइज़ेशन ऑफ ऑयल एंड पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीस (ओपेक), तेल उत्पादक देशों का संघ है और रूस के आन जुड़ने से अब ओपेक के नाम से जाना जाता है। पहले इसने अप्रैल माह में घोषणा की थी कि उत्पादन में 11.5 लाख बैरल प्रति दिन की कटौती करेंगे। लेकिन उस वक्त तेल-बाजार की चाल में विशेष बदलाव नहीं आया। कच्चे तेल की कीमत 75 से 80 डॉलर प्रति बैरल बनी रही। जुलाई माह में सऊदी अरब और रूस ने अपने तौर पर 13 लाख बैरल प्रति दिन की कटौती जारी रखी। अब इससे फर्क पड़ा और भाव ऊपर उठने लगे। साल के अंत तक ऐसी कटौती जारी रखने के निर्णय ने हाल ही में दामों में तीखी वृद्धि बनाई है। तेल दाम तय करने में गुणवत्ता का मानक ब्रेंट क्रूड ऑयल फिलहाल 92 डॉलर प्रति बैरल है वहीं अमेरिका के वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड ऑयल की कीमत लगभग 89 डॉलर प्रति बैरल है।
दुनिया ऊंची तेल कीमतों से जूझ रही है और इससे पुनः मुद्रास्फीति जनित दबाव बनने की आशंका है,ओपेक के अगुवा सऊदी अरब का इस बारे में कहना है कि उसे अपना बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए धन चाहिए। उसे मालूम है कि जीवाश्म ईंधन की मांग भविष्य में काफी घटेगी और वह इसके नतीजों के मद्देनज़र दीर्घकालीन तैयारी करने में लगा है। इस कार्यक्रम को ‘विजन-2030’ का नाम दिया गया है, इसके तहत सल्तनत के आर्थिक ढर्रे में आमूल-चूल परिवर्तन, तेल की कमाई पर निर्भरता घटाना और विशालकाय बुनियादी ढांचा निर्माण कार्य के जरिये रोजगार पैदा करना है। यह दृष्टिपत्र स्पष्टतः अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुमान से जुड़ा है कि 2030 के बाद जीवाश्म ईंधन की मांग में कमी आने लगेगी।
इस पश्चिमी एशियाई देश के ज़हन में अवश्य ही यह बात भी होगी कि कोविड महामारी के दौरान कच्चे तेल का दाम टूटकर 9 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया था। हालांकि यह बहुत छोटी अवधि के लिए रहा, फिर भी इसने भारत को अपने सामरिक तेल भंडारण हेतु बड़ी मात्रा में तेल-फरोख्त का मौका दिया। लेकिन निश्चित रूप से यह काल तेल-निर्यातक मुल्कों के लिए घाटे का रहा, जो अब अपने उत्पाद की मांग घटने से पहले ज्यादा-से-ज्यादा आर्थिक स्रोत जुटाना चाहते हैं।
रूस के मामले में, यूक्रेन युद्ध के लिए धन की जरूरत के चलते वैश्विक तेल कीमतें ऊंची रखना उसकी रणनीति का हिस्सा है। रूस खुद भी घरेलू मोर्चे पर अनेकानेक तंगियों से जूझ रहा है, जिसके कारण गैसोलीन और डीज़ल निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है।
सवाल है कि क्या भारत और दो सबसे बड़े तेल निर्यातक खिलाड़ियों के बीच अच्छे रिश्ते होने से रियायती दर पर तेल पाने में मदद मिलेगी? पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद, पिछले साल रूस ने भारत को सस्ते दाम पर तेल दिया था। यह सौदा परस्पर लाभदायक प्रबंध रहा। यूक्रेन युद्ध शुरू के होने के तुरंत बाद वाले समय में बाकी देश आकाश छूती कीमत यानि 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक मूल्य पर तेल ले रहे थे। रियायत तो अभी भी उपलब्ध है लेकिन निश्चित रूप से पहले के मुकाबले कम। नतीजतन भारत को फिलहाल कच्चा तेल 93.93 डॉलर प्रति बैरल मिल रहा है जबकि जून में दाम 74.93 डॉलर प्रति बैरल था।
दूसरी ओर, सऊदी अरब ने अभी तक दक्षिणी गोलार्ध के मुल्कों को कोई रियायत नहीं दी है। पिछले कुछ से समय से एकमात्र राहत तब मिलने लगी जब भारत ने अपनी खरीद का बड़ा अंश खाड़ी देशों की बजाय रूस से लेना शुरू किया। खाड़ी देशों द्वारा एशियाई खरीदार मुल्कों के लिए तथाकथित छूट अब यही है कि प्रति बैरल अतिरिक्त शुल्क 10 डॉलर की बजाय 3.5 डॉलर लगेगा।
ओपेक संगठन के अग्रणियों की इस हठधर्मिता के चलते भारत के पास अर्थव्यवस्था पर बोझ सहने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। इसका मतलब यह है कि महंगाई के दबाव और मौजूदा वित्तीय घाटे में और इजाफा हो सकता है। लेकिन विडंबना यह है कि आने वाले अनेक वर्षों में भारत सहित पूरी दुनिया जीवाश्म ईंधन उत्पादक मुल्कों की मनमर्जी की बंधक बनी रहेगी क्योंकि इसमें कोई शक नहीं कि निकट भविष्य में भी यह ईंधन धरती पर ऊर्जा का मुख्य स्रोत बना रहेगा।

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लेखिका आर्थिक मामलों की वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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