मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

भोगे यथार्थ के शब्द

11:36 AM Jun 18, 2023 IST

अजय सिंह राणा

Advertisement

‘तुमने बस यह ही तो कहा था’ पुस्तक प्रोफेसर रूप देवगुण द्वारा रचित लघु कविता-संग्रह है जिसमें उन्होंने अपने मनोभावों को 96 कविताओं के माध्यम से प्रकट किया है। यह एक सामान्य-सी भाषा में लिखा गया काव्य-संग्रह है, जिसमें जीवन के सभी पहलुओं के दर्शन होते हैं।

इस काव्य-संग्रह की भाषा साहित्यिक न होकर बेहद साधारण है। कविताओं की रचना अनुभूति के रूप में हृदय से उमड़ कर कवि की कलम से लिखी जाती है। कवि के रचनाबद्ध भाव अगर पाठक के मन को आनंदित कर दें तो वह असल में असली कविता है। यहां इस रस की कमी खलती रही।

Advertisement

हालांकि, कुछ कविताएं मन को कचोटती हैं लेकिन सुकून नहीं पहुंचा पाती। सामान्य पाठक इनका आनंद ले सकते हैं क्योंकि कविताओं का विषय आमजन की ज़िन्दगी से उठाया गया है। जिसे समझने और जानने में ज्यादा परिश्रम नहीं करना पड़ता।

कवि ने अपने इस काव्य-संग्रह में जीवन के प्रत्येक क्षण को महत्वपूर्ण मानकर जीवन के एक-एक अनुभव को कविता में स्थान प्रदान किया है। कवि ने सौंदर्य की परिधि में प्रत्येक वस्तु को समेट लिया है, इसलिए उसमें सभी तत्वों का घालमेल हो गया है। कवि की कविताएं भाषा के यथार्थ को प्रकट करने में तो सक्षम हैं। उनकी कविताओं के कुछ अंश पेश हैmdash; ‘तुमने बस यह ही तो कहा था कि मन करता है मेरा पहाड़ पर जाने को, बस ऊंचे-ऊंचे पहाड़ लगे दिखने लगे…’

‘छत पर जब मैं सोता तो चांद-सितारों से ज्यादा बातें करता, ठंडी हवा पूछती थी उसका हाल-चाल।’

अंत में यह काव्य-संग्रह लेखक का सार्थक प्रयास है जिसकी विषय-वस्तु जीवन का भोगा हुआ यथार्थ है और सिर्फ परिस्थितियों की उपज है।

पुस्तक : तुमने बस यह ही तो कहा था कवि : प्रो. रूप देवगुण प्रकाशक : आनंदकला मंच पब्लिकेशन, भिवानी पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 200.

Advertisement