प्रकृति की अद्भुत कारीगरी
समीर चौधरी
शिलोंग से लगभग 90 किमी की ड्राइव के बाद मावलिननोंग है, जहां से पाडू गांव बस थोड़े से फासले पर है। इसी पाडू गांव में पाडू पुल है, जो कि मेघालय का सबसे विख्यात और सुंदर लिविंग रूट ब्रिज है। लिविंग रूट ब्रिज यानी पेड़ की जीवित जड़ों से तैयार किया गया पुल। क्या जमीन पर खड़े हुए पेड़ों की जड़ों से भी पुल तैयार किया जा सकता है? ज़रूरत आविष्कार की जननी होती है। मेघालय के ज़मीनी और मौसमी हालात ऐसे हैं कि पेड़ भी खड़े रहें और उनकी जड़ों से पुल बनाकर नदी, नाले, खाई आदि आसानी से पार किए जा सकें। मेघालय में कंक्रीट के सामान्य पुल बनाना कठिन है। हालांकि, मेघालय के स्थानीय लोगों ने इन पुलों का निर्माण अपनी यातायात ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किया था और आज भी यह इसी काम आ रहे हैं, लेकिन इनकी विशिष्टता पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गई है। इन्हें देखने के लिए दुनियाभर के लाखों पर्यटक हर साल मेघालय आते हैं।
यूं तो मेघालय में अनगिनत लिविंग रूट ब्रिज हैं। लेकिन इस राज्य की यात्रा करते हुए इनमें कुछ खास हैं और वही पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। पाडू पुल, जो कि सिंगल-डेकर लिविंग रूट ब्रिज है और विशिष्ट अनुभव प्रदान करता है। नौ पुलों के बारे में जानने से पहले यह दिलचस्प रहेगा कि लिविंग रूट ब्रिज तैयार कैसे किए जाते हैं। लिविंग रूट ब्रिज बनाने के लिए गहन श्रम, संयम और महारत की आवश्यकता होती है। इन्हें देखकर मालूम होता है कि देशज लोगों को प्रकृति की गहरी जानकारी है और उनकी इंजीनियरिंग प्रथाएं सस्टेनेबल हैं। पेड़ों से जो एरियल रूट्स निकलती हैं, उन्हें ग्रामीण ध्यानपूर्वक पानी की धारा की ओर गाइड कर देते हैं, उन्हें बढ़ने देते हैं और बहुत ही नाप-तोल के उन्हें आपस में बांध देते हैं। कुछ सालों बाद जड़ों का यह नेटवर्क एक परिपक्व और मजबूत पुल संरचना में तब्दील हो जाता है। यह लिविंग रूट ब्रिज जीवित जड़ें होती हैं जो निरंतर बढ़ती रहती हैं और मौजूद नेटवर्क को मजबूत करती रहती हैं।
इन पुलों का निर्माण और मेंटेनेंस शुरू होता है दो रबर फिग पेड़ों को विपरीत किनारों पर लगाकर और फिर इंतज़ार करना कि पेड़ मजबूत हो जाएं। अगले चरण में एरियल रूट्स को गाइड किया जाता है पानी की धारा में। इस गाइडेंस में बीटल नट का तना, बांस या पत्थर प्रयोग किए जाते हैं। समय के साथ आपस में गुंथी हुई जड़ों का एक मजबूत नेटवर्क तैयार हो जाता है, जो लोगों के बोझ को बर्दाश्त कर सकता है। एक और तरीके में अन्य पेड़ों के खोखले तने इस्तेमाल किए जाते हैं पानी के ऊपर जड़ों को गाइड करने के लिए, जब तक कि विपरीत पेड़ों की जड़ें आपस में जुड़ न जाएं। और भी तरीके हैं, लेकिन सभी का उद्देश्य दो विपरीत किनारों पर लगे पेड़ों की जड़ों को इस तरह से मिलाना है कि जड़ें महिला की चोटी के बालों की तरह आपस में गुंथ जाएं। पुलों की देखभाल के लिए ग्रामीण सामुदायिक प्रयास करते हैं। जड़ों को नियमित काटना-छांटना होता है।
मेघालय में सबसे लंबा लिविंग रूट ब्रिज मवकिरमोट गांव में है, जो कि पूर्वी खासी पहाड़ी ज़िले में है। इसकी लंबाई 53 मीटर है, जिससे आप इन देशज लोगों के कौशल का अंदाज़ा लगा सकते हैं। इसे देखते हुए अहसास होता है कि किन अजीबोगरीब तरीकों को अपनाकर इंसान प्रकृति के साथ जीते हैं। यह पुल हरियाली से घिरा हुआ है और आसपास के लैंडस्केप का शानदार नज़ारा पेश करता है। उम्शिंग रूट ब्रिज चेरापूंजी में है और इसकी खासियत यह है कि यह डबल-डेकर है यानी पुल के ऊपर एक और पुल है। दो विपरीत किनारों पर लगे पेड़ों की जड़ों को ऊपर-नीचे दो जगह से जोड़कर दो पुल बनाए गए हैं। शिलोंग से लगभग 85 किमी पर त्यर्ना गांव है, जहां से ट्रेक करते हुए चेरापूंजी पुल तक पहुंचा जा सकता है। ट्रेक में 3-4 घंटे लगते हैं, लेकिन 3,000 कदम चलते हुए बोरियत नहीं होती क्योंकि प्रकृति की सुंदरता दिल मोह लेती है। मावलिननोंग के ही निकट रिवाई गांव में मावसव पुल है, जो कि ओवरब्रिज-सा प्रतीत होता है। मावलिननोंग एशिया का सबसे साफ-सुथरा गांव है और इसका पुल इसी के नाम से है, जो प्रकृति और मानव कारीगरी का खूबसूरत नज़ारा पेश करता है।
बहरहाल, जब मेघालय लिविंग रूट ब्रिज देखने जाएं तो कुछ बातों का अवश्य ख्याल रखें। मेघालय में इन पुलों की भरमार है, इसलिए जो मार्ग लेना है, उसकी योजना पहले से बना लें। स्थानीय गाइड को अवश्य लेंें। ट्रेक बहुत कठिन हो सकता है, इसलिए सही किस्म के जूते पहनें ताकि फिसलने से बच सकें।
इ.रि.सें.