भगवान गणेश के आशीर्वाद से जीवन में सुख-शांति का प्रवाह
चेतनादित्य आलोक
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने में दो चतुर्थी तिथियां आती हैं- एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। इनमें से कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को ‘संकष्टी चतुर्थी’ के रूप में जाना जाता है, जबकि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को ‘विनायक चतुर्थी’ कहा जाता है। ये दोनों ही चतुर्थियां ‘गणेश चतुर्थी’ कहलाती हैं और भगवान गणेश को समर्पित होती हैं। गणेश चतुर्थी का एक नाम ‘गणेश चौथ’ भी है। अगहन या मार्गशीर्ष महीने की संकष्टी चतुर्थी ‘मार्गशीर्ष संकष्टी चतुर्थी’ अथवा ‘गणाधिप संकष्टी चतुर्थी’ के नाम से जानी जाती है। गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन श्रद्धालु भगवान गणेश जी की विशेष पूजा-अर्चना, आराधना करते हैं।
नारद पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को पूरे दिन का उपवास रखकर पूजा करनी चाहिए और संध्या समय संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत की कथा सुननी चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन घर में पूजा करने से घर के भीतर मौजूद नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं और घर में शांति बनी रहती है। गौरतलब है कि इस पूजा के प्रभाव से घर की सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं और भगवान गणेश प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। बता दें कि सूर्योदय से शुरू होने वाला संकष्टी चतुर्थी व्रत संध्या समय चंद्र दर्शन के बाद ही समाप्त होता है। इस दिन चंद्र दर्शन का भी विशेष महत्व होता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार संकष्टी चतुर्थी व्रत करने वाले श्रद्धालुओं के लिए संध्या समय चंद्र दर्शन करना बेहद शुभ फलदायी माना जाता है। सनातन धर्मावलंबियो द्वारा देश के कोने-कोने में किए जाने वाले इस व्रत को अलग-अलग भागों में प्रायः अलग-अलग नामों से जाना जाता है। दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में संकष्टी चतुर्थी व्रत को ‘गणेश संकटहरा’ अथवा ‘संकटहरा चतुर्थी’ के नाम से भी जाना जाता है। देखा जाए तो इस चतुर्थी व्रत के ‘संकष्टी’ अथवा ‘संकटहरा’, नाम से ही स्पष्ट है कि यह व्रत संकटों को हरने वाला है।
शास्त्रों में भी बताया गया है कि बुद्धि एवं विवेक के देवता भगवान गणेश जी को समर्पित यह व्रत समस्त कष्टों को हरने वाला और धर्म, अर्थ, मोक्ष, विद्या, धन व आरोग्य प्रदान करने वाला है। इसलिए जब भी कभी मन संकटों से घिरा हुआ महसूस हो या जीवन में दुखों की आमद बढ़ जाए तो संकष्टी चतुर्थी का अद्भुत फल देने वाला व्रत के माध्यम से भगवान गणपति को प्रसन्न कर मनचाहे फल की कामना करनी चाहिए।
गौरतलब है कि जो भी व्यक्ति इस दिन पूरे मन से गणपति जी के लिए व्रत रखता है, उसके सभी कष्टों और दुखों का नाश हो जाता है। साथ ही, यह भी मान्यता है कि इस व्रत के शुभ प्रभाव से विघ्नहर्ता भगवान गणेश घर में आ रहे सभी विघ्नों और बाधाओं को हर लेते है। इनके अलावा यह व्रत आर्थिक समस्याओं से भी मुक्ति दिलाता है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन गणपति बप्पा की पूजा करने से घर में चारों ओर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार विधिपूर्वक इस दिन भगवान गणेश की उपासना करने से व्रती के जीवन में ग्रहों के अशुभ प्रभाव तो कम होते ही हैं, साथ ही, संतान को आरोग्य एवं लंबी आयु की प्राप्ति भी होती है। इस बार गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 18 नवंबर को है। यह कार्तिक महीने का अंतिम और नवंबर का पहला चतुर्थी व्रत होगा। इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा के लिए संध्या समय 05ः26 बजे से 05ः53 बजे तक शुभ मुहूर्त है।
पूजा विधि
- गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रातः उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर लाल रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
- स्वच्छ आसन या चौकी पर भगवान को विराजित करें।
- भगवान की प्रतिमा या चित्र के आगे धूप-दीप प्रज्वलित करें तथा लड्डू या तिल से बने मिष्ठान का भोग लगाएं।
- भगवान श्रीगणेश को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए श्रीगणेश मंत्रों का जाप करें।
- गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन श्रीगणेश स्त्रोत का पाठ करना अत्यंत शुभ फलदायी माना जाता है।
- संध्या समय शुभ मुहूर्त में व्रत-कथा पढ़ने के बाद चंद्रदेव का दर्शन कर श्रद्धापूर्वक उन्हें अर्घ्य दें।
- तत्पश्चात योग्य ब्राह्मण को दक्षिणा आदि प्रदान करें एवं दीन-दुखियों को दान करें।
पूजा संपन्न करने के बाद ही व्रती पारण कर अपना व्रत खोलें।
क्या नहीं करें
- गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिनव्रती झूठ बोलने तथा किसी की बुराई करने से बचें।
- ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।
- तामसिक भोजन आदि जैसे मांस, मदिरा का सेवन कदापि नहीं करें।
- क्रोध पर नियंत्रण रखें और संयम तथा मानवीय मर्यादाओं का पालन करें।