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आखिर मजदूर क्यों नहीं चुनाव का मुद्दा? 

11:40 AM May 01, 2024 IST
आखिर मजदूर क्यों नहीं चुनाव का मुद्दा  
कैथल में मंगलवार को काम कर रहे मनरेगा मजदूर। -हप्र
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ललित शर्मा/हप्र
कैथल, 30 अप्रैल
आम दिहाड़ीदार मजदूर को साल भर में कम से कम 100 दिन के रोजगार की कानूनी गारंटी देने के लिए शुरू की गयी मनरेगा स्कीम के तहत काम के दिन सिमट कर महज 23 दिन रह गए हैं जबकि मजदूर साल भर में कम से कम 200 दिन काम की मांग करते रहे हैं। आलम यह है कि मनरेगा को कांग्रेस सरकार की 60 साल की विफलताओं का स्मारक बताकर इसमें मजदूरों के हित में और भी बहुत कुछ जोड़ने का वादा करने वाली भाजपा सरकार ने भी इसका बजट घटाकर 1.98 प्रतिशत से 1.33 प्रतिशत कर दिया है। मजदूर वर्ग में इस बात को लेकर भारी नाराजगी है कि देश के आम चुनाव में यूं तो बहुत मुद्दे उछल रहे हैं लेकिन कोई भी पार्टी मजदूरी को चुनावी मुद्दा नहीं बना रही है। मजदूर नेताओं का कहना है कि सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, वह नहीं चाहती कि मजदूर आत्मनिर्भर हो। राजनीतिक दल मिलजुल कर मजदूरों को राशन डिपो पर मिलने वाले दाल-चावल का मोहताज रखना चाहते हैं। देश की दो तिहाई आबादी राशन डिपो की मोहताज है भी..इसलिए मजदूर की मजदूरी चुनावी मुद्दा बननी ही चाहिए।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश के कुल बजट का वर्ष 2013-14 में 1.98 प्रतिशत पहले मनरेगा पर खर्च किया जाता था। वर्ष 2023-24 में यह घटकर 1.33 प्रतिशत रह गया है। हरियाणा की बात करें तो यहां वर्ष 2023-24 में 6 लाख 22 हजार 982 परिवारों ने मनरेगा के तहत मजदूरी की मांग की थी। सरकार ने 6 लाख 21 हजार 786 लोगों को काम की पेशकश की जबकि 5 लाख 24 हजार 298 मजदूरों को काम मिला। कार्य दिवस एक करोड़ 23 लाख 19 हजार 795 बनते हैं। इन आकड़ों के अुनसार मजूदर को मजदूरी मिलने का औसत सिर्फ 23 दिन आता है। मजदूरों का कहना है कि साल भर में सिर्फ 23 दिन काम करके किसका घर चल सकता है, यह सरकार को जरूर सोचना चाहिए।
आंकड़े बताते हैं कि 4 लाख 20 हजार 205 परिवारों में से राज्य में केवल 2557 परिवारों को ही 100 दिन का काम मिला, जोकि कानून की 100 दिन की गारंटी के हिसाब भी पूरा नहीं है। कैथल जिले में तो 100 दिन काम की एवज में 19 दिन ही काम मिल पाया है। इस अधिनियम में मजदूरों को कुछ अन्य सुविधाएं भी देने का प्रावधान है लेकिन कुछ ही सुविधाएं मिल रही हैं।

इन सुविधाओं का है प्रावधान

इसके तहत घर से लेकर 5 किलोमीटर की दूरी तक काम उपलब्ध करवाना है। यदि इससे दूर भेजेंगे तो मजदूरी का 10 प्रतिशत यात्रा भत्ते के नाम पर अतिरिक्त देना होगा। जहां मजदूर काम करता है वहां स्वच्छ पेयजल, छाया का प्रबंध, प्राथमिक चिकित्सा बाक्स, एक पालना गृह, चोट लगने पर इलाज का प्रबंध कराना, 15 दिन में मजदूरी का भुगतान करना।

क्या है योजना

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम योजना 2 फरवरी, 2006 को शुरू हुई। पहली बार देश के 100 से ज्यादा जिलों में यह योजना लागू की गई। इसी प्रकार अप्रैल 2007 में 100 और जिले शामिल किए गए। इसमें हरियाणा के 2 जिले सिरसा और महेन्द्रगढ़ को शामिल किया गया। इसके बाद अगले राउंड में मेवात व अम्बाला शामिल हुआ। इसके बाद वर्ष 2009 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम लागू हुआ। ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी ज्यादा थी। मजदूर संगठनों की मांग थी कि काम का मौलिक अधिकार हो। इन सब बातों को देखते हुए सरकार ने यह योजना शुरू की।
मजदूरों के लिए रोजगार गारंटी अधिनियम लागू के होने के बाद मजदूरों को 100 दिन काम नहीं मिल पाता है। राज्य में 100 दिन काम की बजाय करीब 24 दिन काम मिल रहा है। प्रावधान तो बेरोजगारी भत्ते का भी है लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज तक प्रदेश में किसी को बेरोजगारी भत्ता नहीं मिला। अधिनियम लागू के होने बाद पर्याप्त बजट नहीं है और लगातार बढ़ रही महंगाई के हिसाब से दिहाड़ी भी नाकाफी है। मजदूरों को काम 100 की बजाय 200 दिन होना चाहिए और दिहाड़ी 600 रुपए होनी चाहिए। अधिनियम पूर्ण रूप से लागू होना चाहिए।
- प्रेम चंद, राज्य महासचिव, अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन
यह आंकड़े तो ठीक हैं, लेकिन मजदूरों को काम कम मिला इस बारे में कुछ नहीं कह सकतीं क्योंकि उन्होंने थोड़े दिन पहले की ज्वांइन किया है। इस वर्ष अधिक से अधिक मजदूरों को अधिक से अधिक काम मिले इसके लिए वे योजनाएं बना रहे हैं। यह भी प्रयास है कि जो काम आचार संहिता में मिल सकता है वह भी उपलब्ध करवाया जाए और इसके बाद इस काम को स्पीड से आगे बढ़ाया जाए।
- सी जया श्रद्धा, एडीसी एवं सीईओ डीआरडीए, कैथल
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