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बलिदान के साथ ही जिनका जीवन संघर्ष भी प्रेरक

07:20 AM Feb 01, 2024 IST
बलिदान के साथ ही जिनका जीवन संघर्ष भी प्रेरक
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डॉ. रामजीलाल
पंजाब केसरी’ के नाम से विख्यात प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय का बलिदान देश की आजादी में अप्रतिम है। ये अमर बलिदानी 28 जनवरी, 1865 को फरीदकोट के गांव ढुडिके में जन्में व बाद में वर्ष 1880 में वकालत की पढ़ाई के लिए लाहौर के सरकारी कॉलेज में प्रवेश लिया। उस समय लाहौर राजनीतिक गतिविधियों व ‘राष्ट्र प्रेमियों की नर्सरी’ का मुख्य केंद्र था जिनमें वे सक्रिय हो गये। पारिवारिक संस्कारों, शिक्षा व देश में आजादी के संघर्ष के माहौल ने उन्हें वैचारिक व राजनीतिक रूप से सक्रियता हेतु प्रेरित किया। कई क्षेत्रों में उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा की छाप छोड़ी। उन्होंने 1886 में रोहतक व हिसार में वकालत शुरू की और हिसार को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया। विचारों से वे आर्य समाजी थे व हिंदू सुधारवादी आंदोलन के सूत्रधार रहे। उन्हें हिंदू महासभा का अग्रणी नेता माना जाता है। वे स्वदेशी आंदोलन से जुड़े। वहीं बाद में स्वाधीनता आंदोलन के दौरान राजनीतिक रूप से कांग्रेस पार्टी के नेता के रूप में सक्रिय रहे।

लेखन व पत्रकारिता

लाला लाजपत राय पत्रकार व लेखक के रूप में बेहद सक्रिय रहे। उन्होंने कई समाचार पत्रों- पत्रिकाओं जैसे ‘आर्य गजट’ , द पंजाबी और द पीपल (सभी अंग्रेजी साप्ताहिक), और दैनिक बंदे मातरम (उर्दू) की स्थापना और संपादन किया। इनके लेख द ट्रिब्यून व अन्य पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होते थे। उन्होंने श्रीकृष्ण, शिवाजी, स्वामी दयानंद सरस्वती, मैजिनी, गैरिबॉल्डी इत्यादि की जीवनियां लिखी। उनकी सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकों में द स्टोरी ऑफ माई डिपोर्टेशन (1908), आर्य समाज (1915), द यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका: ए हिंदूज इंप्रेशन (1916), इंग्लैंड’ज डेट टू इंडिया: ए हिस्टोरिकल नैरेटिव ऑफ ब्रिटेन्स फिस्कल पॉलिसी इन इंडिया (1917) और अनहैप्पी इंडिया (1928) हैं।

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स्वदेशी आंदोलन में भूमिका

7 अगस्त 1905 को कोलकाता से शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन में लाला लाजपत राय की प्रमुख भूमिका रही। इसी के तहत उन्होंने स्वदेशी उद्योग, स्वदेशी बैंक तथा स्वदेशी कंपनियों की स्थापना पर बल दिया ताकि ब्रिटिश उद्यमियों का मुकाबला किया जा सके। इनमें पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी इंश्योरेंस कंपनी जैसे स्वदेशी संगठन शामिल हैं।

कांग्रेस पार्टी के तहत राजनीतिक संघर्ष

लाला लाजपत राय को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चौथे अधिवेशन में 1888 में विशेष तौर से आमंत्रित किया गया। उन्होंने हिसार में राष्ट्रीय कांग्रेस की इकाई की स्थापना की। कांग्रेस पार्टी के त्रिदेव -लाल ,बाल ,पाल गर्म घटक व उग्र राष्ट्रवाद के अग्रिम श्रेणी के नेता थे। बंगाल के विभाजन के विरोध में 1905 में आंदोलन चलाया गया तो हिसार में आंदोलन की कमान लाजपत राय को सौंपी गई। रावलपिंडी के भाषण (11 अप्रैल 1907) तथा किसान आंदोलन का नेतृत्व करने के कारण सरदार अजीत सिंह (भगत सिंह के चाचा) और लाला लाजपत राय पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ और 6 महीने के लिए मांडले जेल, बर्मा के लिए निष्कासित कर दिया गया।

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असहयोग आंदोलन के दौरान कारावास

1917 में उन्होंने अमेरिका में इंडियन होम रूल लीग और मासिक पत्रिका यंग इंडिया की स्थापना की। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन (1920- 1922) शुरू किया जिसमें भाग लेने के कारण लाला जी दो साल जेल में रहे। बाद में विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए।

साइमन कमीशन का विरोध और बलिदान

तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा साइमन कमीशन की घोषणा की गई जिसका विरोध समस्त भारत में किया गया। 30 अक्तूबर 1928 को साइमन आयोग जब लाहौर पहुंचा तो आयोग के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। ‘साइमन कमीशन गो बैक’ के नारे गूंज रहे थे। लाहौर के पुलिस अधीक्षक द्वारा शांतिपूर्ण भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज करने का आदेश दिया गया जिस दौरान वे गंभीर घायल हो गए। अस्पताल में उपचार के दौरान 17 नवंबर 1928 को 63 वर्ष की आयु में वे शहीद हो गये। लाला लाजपत राय के आखिरी शब्द थे ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।’ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय की शहादत नया मोड़ था जिसने कई क्रांतिकारियों को आजादी के आंदोलन में बड़ी भूमिका के लिए प्रेरित किया।

-लेखक करनाल स्थित दयाल सिंह कॉलेज के  पूर्व प्राचार्य हैं।

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