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मिली ग़ाज़ा को सज़ा  कौन करेगा अब राज

07:15 AM Nov 19, 2023 IST
मिली ग़ाज़ा को सज़ा  कौन करेगा अब राज
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पुष्परंजन
अहमद इस्माइल यासीन का जन्म जून 1936 में अल-मजदल के पास अल-जुरा गांव में हुआ था। उनके तीन बेटे और आठ बेटियां थीं। जब वह पांच वर्ष के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। उनका पालन-पोषण उनकी मां सादा अब्दुल्ला अल-हबील ने किया। उन्होंने पांचवीं कक्षा तक अल-जुरा प्राइमरी स्कूल में शिक्षा प्राप्त की, लेकिन 1948 में फलस्तीन में नकबा (पलायन) के बाद उन्हें अपने परिवार के साथ गाजा पट्टी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। अहमद इस्माइल यासीन के परिवार को उसी गुरबत और अभाव का सामना करना पड़ा,जिससे दूसरे शरणार्थी  गुज़रते रहे।
यासीन और उसके दोस्त अपने परिवारों और रिश्तेदारों के लिए भोजन मांगने के लिए मिस्र के सैन्य शिविरों में जाते थे। बाद में गाज़ा के रेस्टोरेंट में भी काम किया। साल 1952 की गर्मियों में, सोलह वर्षीय यासीन की गर्दन की हड्डी समुद्र के किनारे कुछ दोस्तों के साथ खेलते समय टूट गई, जिसके परिणामस्वरूप उनके अंग पूरी तरह से निष्क्रिय हो गए। विकलांगता के बावज़ूद उन्होंने स्नातक तक की पढ़ाई की। वर्ष 1964 में उन्होंने गाजा में पढ़ाते हुए अंग्रेजी का अध्ययन करने के लिए काहिरा के ऐन शम्स विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। हालांकि, 1965 में मुस्लिम ब्रदरहुड समर्थकों की गिरफ्तारी ने उन्हें परीक्षा में बैठने के लिए मिस्र जाने से रोक दिया। यासीन को यूएनआरडब्ल्यूए स्कूलों में अरबी और इस्लामी शिक्षा पढ़ाने की नौकरी मिल गई। उनके शिक्षण से वेतन का अधिकांश हिस्सा उनके परिवार की मदद में चला जाता था। इस्माइल यासीन ने गाजा की मस्जिदों में कुछ समय उपदेशक के रूप में भी काम किया। इस्माइल यासीन मौलवी हो चुके थे। उन दिनों मोहम्मद यासीन वेस्ट बैंक और गाजा में उपदेश दिया करते थे। इस्राइल ने 1967 में छह दिवसीय युद्ध के बाद वेस्ट बैंक, गाजा और पूर्वी यरुशलम के इलाकों पर कब्जा कर लिया था। इस कब्जे के खिलाफ फलस्तीनी विद्रोह (प्रथम इंतिफादा) को वहां के लोगों ने देखा।
दो दशक बाद,मौलवी यासीन ने दिसंबर 1987 में गाजा में ब्रदरहुड की राजनीतिक शाखा के रूप में हमास (हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया) की स्थापना की। उस समय हमास का उद्देश्य फ़लस्तीनी इस्लामिक जिहाद (पीआईजे) का मुकाबला करना भर था। यासीन हमास के आध्यात्मिक गुरु स्वीकार किये गये। फिर 19 मई 1989 को इस्राइलियों ने हमास के सैकड़ों सदस्यों समेत उन्हें गिरफ्तार कर लिया। एक इस्राइली सैन्य अदालत ने यासीन को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। इजेद्दीन अल-कसम ब्रिगेड (हमास की सैन्य शाखा) की एक गुरिल्ला इकाई ने यासीन को जेल से बाहर निकालने का प्रयास किया। तेरह दिसंबर 1992 को निसिम टोलेडानो नामक एक इस्राइली पुलिसकर्मी का अपहरण कर लिया और इस्राइलियों के एक्सचेंज के तहत अक्तूबर 1997 में अंततः यासीन रिहा कर दिये गये। यासीन तब बीमार थे। अम्मान अस्पताल से कुछ दिनों इलाज के बाद वह गाज़ा लौट आए, जहां उनके और यासिर अराफात के नेतृत्व वाले फलस्तीनी प्राधिकरण के बीच तनाव बढ़ने लगा।

(मध्य)हमास संस्थापक यासीन

सितंबर 2000 के अंत में दूसरे फलस्तीनी इंतिफादा के फैलने के बाद, इस्राइली कब्जे वाले अधिकारियों ने स्पष्ट रूप से हमास के उन नेताओं की व्यवस्थित रूप से हत्या करने का फैसला किया, जिन्होंने उस विद्रोह में सक्रिय रूप से भाग लिया था। छह सितंबर 2003 की बात है, जब यासीन को गाजा में एक अपार्टमेंट में रहते निशाना बनाया था। वह अपने छात्र और साथी इस्माइल हानिया के साथ मौजूद थे। तब वो बच गये, मगर 22 मार्च 2004 को एक इस्राइली अपाचे हेलीकॉप्टर ने उन पर तीन मिसाइलें दागीं, जब वह गाजा पट्टी के सबरा क्वार्टर में एक इस्लामिक सेंटर मस्जिद से बाहर निकल रहे थे। इस हमले में यासीन व उनके सात साथी मारे गए। हमले में उनके दो बेटे भी घायल हो गए। शेख़ यासीन की जगह, इस्माइल हानिया ने हमास की कमान संभाली। लेकिन इस बीच इस्माइल अबू शानाब, डॉ. अब्दुल अज़ीज रनतिसी जैसे हमास के दिग्गज़ नेताओं को भी इस्राइली फोर्स ने अलग-अलग हमलों में मार डाला।
अमेरिका की तरह ही दूसरे देश भी मानते हैं कि हमास के भीतर कई गुट हैं। सात अक्तूबर का ऑपरेशन इस तथ्य को स्पष्ट रूप से प्रमाणित भी करता है। क्योंकि हमास और उसके लेबनानी-ईरानी सहयोगी हिजबुल्ला संगठन के नेतृत्व ने यह कहा भी है कि वह योजना रहस्यमय थी, जिसे आंदोलन के अधिकांश नेताओं को पहले से जानकारी दिए बिना अंजाम दिया गया था। हिज्बुल्लाह के हवाले से कई पश्चिमी देशों ने हमास की राजनीतिक और सैन्य शाखाओं के बीच अंतर करने की आवश्यकता पर भी बल दिया है। हिज़बुल्ला की तरह हमास के भी कई नेता मिडल ईस्ट और पश्चिमी देशों में शरणागत हैं।
ओस्लो समझौता क्या ठंडे बस्ते में?
साल 1988 में हमास ने अपना चार्टर प्रकाशित किया था, जिसमें इस्राइल के विनाश और फ़लस्तीन में एक इस्लामी समाज की स्थापना का संकल्प लिया गया। हमास को जो लोग नियंत्रित कर रहे थे, उन्हें इस्राइल का अस्तित्व स्वीकार्य नहीं था, लेकिन फलस्तीनी लिबरेशन आर्गेनाइजेशन के जो लोग समझौते का रास्ता निकालना चाहते थे, उनसे बातचीत नॉर्वेजियन समाजशास्त्री टेर्जे लार्सन और 1992 में सत्ता में आई इस्राइल की लेबर पार्टी सरकार के सदस्य योसी बेइलिन द्वारा शुरू की गई थी। कई स्तर पर मेल-मुलाक़ात व संवाद के बाद, राष्ट्रपति विलियम जे. क्लिंटन ने 13 सितंबर 1993 को वाशिंगटन में एक औपचारिक हस्ताक्षर समारोह की मेजबानी की, जिसमें इस्राइली प्रधानमंत्री यित्जाक राबिन और पीएलओ अध्यक्ष यासिर अराफात ने हाथ मिलाया।

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ओस्लो समझौता इस्राइल-फलस्तीनी संबंधों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, जिसका उद्देश्य शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाना और वेस्ट बैंक के अधिकांश हिस्सों में फलस्तीनी स्व-शासन के विस्तार को अवसर प्रदान करना था। इस ऐतिहासिक समझौते की बिना पर फलस्तीनी प्राधिकरण (पीए) नामक एक नव निर्मित इकाई के तहत वेस्ट बैंक और गाज़ा के कुछ हिस्सों के लिए सीमित स्व-शासन की स्थापना की। हमास ने ओस्लो समझौते की निंदा की, शेख अहमद यासीन ने स्पष्ट कर दिया कि हम इसे नहीं मानने वाले। अब न तो शेख़ यासीन हैं, न ही उस तेवर के नेता, जो अपनी ज़मीन पर रहकर इस्राइल से लड़ते रहे। हमास की वर्तमान लीडरशिप सुविधाभोगी है, यह स्वीकार करना चाहिए। यूं देखने के वास्ते हमास द्विराष्ट्र सिद्धांत को मानने से मना करता रहा। मगर, हमास का एक धड़ा दो देशों के अस्तित्व को स्वीकार करने से इनकार नहीं कर रहा, फलस्तीनी राजदूत अदनान अबू अलहाइज़ा भी एक बातचीत में इस तथ्य को मानते हैं।
गाज़ा पर किसका आधिपत्य?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि गाज़ा अपने अस्तित्व में रहेगा या नहीं? इस्राइली फोर्स जिस तेज़ी से आगे बढ़ रही, और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को बेंजामिन नेतन्याहू जिस तरह से ठेंगे पर रख रहे हैं, उससे साफ लग रहा है कि जीती हुई इस ज़मीन को इस्राइल आने वाले दिनों में छोड़ेगा नहीं। गाज़ा इस्राइल का अभिन्न अंग बन जाएगा, ऐसा तेल अवीव में बैठे विश्लेषक भी मान रहे हैं। नेतन्याहू भले युद्ध अपराधी घोषित कर दिये जाएं, मगर उनकी लीकुड पार्टी गाज़ा की फतह से अपनी ज़मीन मज़बूत करेगी, इस बात से इनकार नहीं कर सकते। सांप्रदायिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो ईरान के शिया नेतृत्व से मदद लेना भी हमास लीडरशिप की सबसे बड़ी गलती रही है। गाज़ा की इस लड़ाई में ईरान ने अपना उल्लू सीधा कर मध्य-पूर्व रुसूख़ बढ़ाया है, इस बात को हमास के वे नेता शायद देर से समझ पायें, जो पूरी तरह अयातुल्ला खा़मेनई पर भरोसा करते रहे। मगर वही बात, सबकुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया?वो चेहरे, जो हमास को कंट्रोल करते हैं
इस्माइल हानिया हमास के टॉप लीडर हैं। मगर उनके अलावा दूसरे चेहरे भी इस संगठन को कंट्रोल करते हैं। सालेह अल-अरौरी कथित तौर पर हमास की लेबनान शाखा के प्रमुख हैं। उन्होंने 2021 में आहूत आंतरिक चुनावों के बाद वेस्ट बैंक का नेतृत्व भी संभाला, जबकि खालिद मेशाल को प्रवासी कार्यालय का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था, जो क़तर में रहते हैं। ‘ख़ान यूनिस का कसाई’ नाम से कुख्यात याहया इब्राहिम हसन सिनवार हमास के दूसरे टॉप लीडर हैं, जिसने 2017 में हमास का नेतृत्व संभाला था। हसन सिनवार ज़िंदा हैं, तो कहां भूमिगत हैं? यह भी एक रहस्य है। मोहम्मद दीफ का दूसरा नाम अल-मसरी है। दीफ को अबू खालिद के नाम से भी जाना जाता है, जो वर्तमान में हमास की सैन्य शाखा ‘अल-कसम ब्रिगेड’ के सर्वोच्च सैन्य कमांडर हैं। इनका अता-पता 7 अक्तूबर के हमले के बाद से नहीं है। दीफ़ का दाहिना हाथ मारवान इस्सा दूसरा महत्वपूर्ण चेहरा है हमास लीडरशिप में। खालिद मशान भी सुपरिचित चेहरा है हमास लीडरशिप में। कुवैत में जन्मे अब्दुल्ला बरगूती के अलावा अबू अल बारा उर्फ़ इस्सा इस्राइल की मोस्ट वांटेड लिस्ट में है। अल-अरौरी हमास की सैन्य शाखा, इज्ज अद-दीन अल-कसम ब्रिगेड के संस्थापक कमांडर हैं। 2023 तक उन्हें हमास के राजनीतिक ब्यूरो का उपाध्यक्ष और वेस्ट बैंक का हमास का सैन्य कमांडर माना जाता रहा है। सालेह अल-अरौरी लेबनान में रहते हैं। महमूद अल-जहार हमास के सह-संस्थापक और गाजा पट्टी में हमास लीडरशिप के प्रमुख सदस्य हैं। अल-जहार ने मार्च 2006 में हमास के प्रभुत्व वाली फलस्तीनी प्राधिकरण सरकार (जिसे पहली हानिया सरकार के रूप में भी जाना जाता है) में विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया, जिसे 20 मार्च 2006 को शपथ दिलाई गई थी। हमास कतर की राजधानी दोहा में कार्यालय चलाता है। इसके सर्वोच्च नेता इस्माइल हानिया, मूसा अबू मरजुक और खालिद मशाल दशकों पहले गाज़ा छोड़ चुके। निजी जेट विमानों पर सवार उनकी तस्वीरें दिखाकर पश्चिमी मीडिया बताता रहा कि ये लोग शाही जीवन शैली व्यतीत कर रहे हैं।

हमास की फंडिंग कहां से?

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हमास जब से आतंकवादी संगठन घोषित हुआ, सबसे पहले उसकी आर्थिक नाकेबंदी की गई। अमेरिका और यूरोपीय संघ के बैंकों में उसके अकाउंट फ्रीज़ किये गये। पश्चिम में कुछ इस्लामिक चैरिटी ने हमास समर्थित सामाजिक सेवा समूहों को पैसा दिया था, जिसे अमेरिकी शासन ने जब्त करवा दिया। हमास को कुछ दशकों से फ़लस्तीनी प्रवासियों और खाड़ी के देशों में बसे निजी दानदाताओं से धन मुहैया कराया जा रहा है। पूर्वी एशिया में मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे समृद्ध इस्लामिक देश हमास के लिए फंड इकट्ठे कर रहे हैं। हाल के दिनों में भारत के कुछ संगठनों ने हमास के लिए धन जुटाना शुरू किया है। यूं 7 अक्तूबर 2023 को हमास हमले से पहले भी गाज़ा की आर्थिक हालत ख़स्ता ही थी। मिस्र और इस्राइल ने 2006-07 में गाजा के साथ अपनी सीमाओं को बड़े पैमाने पर बंद कर दिया, जिससे क्षेत्र के अंदर और बाहर माल और लोगों की आवाजाही प्रतिबंधित हो गई। दोनों देशों ने अपनी नाकाबंदी बरकरार रखी है, इस क्षेत्र को दुनिया के अधिकांश हिस्सों से काट दिया है और दस लाख से अधिक गज़ान फलस्तीनियों को अंतर्राष्ट्रीय सहायता पर निर्भर रहने के लिए मजबूर कर दिया गया है। इस्राइल ने क़तर को करोड़ों डॉलर की सहायता हमास को प्रदान करने की अनुमति दे रखी है। अन्य विदेशी सहायता आम तौर पर पीए और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के माध्यम से गाज़ा तक पहुंचती है। नाकेबंदी के बाद के कई वर्षों तक, हमास ने सुरंगों के एक परिष्कृत नेटवर्क के माध्यम से माल ले जाने पर कर लगाकर राजस्व एकत्र किया था। लगभग 500 ट्रक रोज़ाना गाज़ा आते थे। इससे क्षेत्र में भोजन, दवा और बिजली उत्पादन के लिए सस्ती गैस के साथ-साथ निर्माण सामग्री, नकदी और हथियार जैसी बुनियादी चीजें आती गईं। साल 2013 में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी के सत्ता संभालने के बाद, काहिरा की हमास के प्रति कटुता बढ़ती गई। फतह अल-सिसी ने हमास को अपने मुख्य घरेलू प्रतिद्वंद्वी, मुस्लिम ब्रदरहुड के विस्तार के रूप में देखा। मिस्र की सेना ने अपने क्षेत्र में से गुज़रने वाली अधिकांश सुरंगों को बंद कर दिया। कुछ वर्ष पहले मिस्र ने सिनाई प्रायद्वीप में आइसिस के खिलाफ अभियान चलाया था। साल 2018 में मिस्र थोड़ा नरम हुआ और सीमा पार से कुछ वाणिज्यिक सामानों को गाजा में प्रवेश करने की अनुमति देना शुरू कर दिया। साल 2021 तक, हमास ने मिस्र के रास्ते सामानों पर करों से प्रति माह 12 मिलियन डॉलर से अधिक की वसूली की। आज की तारीख़ में ईरान हमास के सबसे बड़े दानदाताओं में से एक है, जो धन, हथियार और प्रशिक्षण देने वाले मामलों में योगदान दे रहा है। एक आकलन के अनुसार, ईरान वर्तमान में हमास, पीआईजे समेत अन्य फ़लस्तीनी समूहों को सालाना लगभग 100 मिलियन डॉलर तक का सहयोग दे रहा है। क़तर, ईरान के बाद तुर्किये तीसरा देश है, जो हमास को खुलकर मदद देता रहा। वर्श 2002 में राष्ट्रपति रेज़ेप तैयप एर्दोआन के सत्ता में आने के बाद तुर्की हमास का एक और कट्टर समर्थक और इस्राइल का आलोचक रहा है। हालांकि अंकारा का कहना है कि वह केवल राजनीतिक रूप से हमास का समर्थन करता है।

लेखक ईयू एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक हैं।

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