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अपनी वाकपटुता से जिन्होंने खत्म किया था औरंगजेब का खूंखार हुक्म

07:00 AM Apr 03, 2024 IST

अरुण नैथानी/ ट्रिन्यू
नैथाणा (पौड़ी), 2 अप्रैल
एक वाकचातुर्य व कूटनीतिज्ञ सेनापति के लिये ही यह संभव था कि क्रूर औरंगजेब के दरबार से मृत्युदंड पाने के बाद न केवल अपना जीवन बचाया, बल्कि पुरस्कार के साथ अपने राज्य का जजिया कर भी माफ कराया। ऐसे ही विस्मृत योद्धा वीर पुरिया नैथाणी को लगभग तीन सौ सालों बाद उनके वंशजों ने प्रतिष्ठा दी है। उनकी जन्मस्थली नैथाणा में प्रतिमा के स्थापना-समारोह में देश-विदेश के उनके वंशजों ने भागेदारी की। इस क्षेत्र के लिए यह सुखद संयोग है कि वीर पुरिया के योगदान को उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया है।
विगत दिवस स्मारक के लोकार्पण के अवसर पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में रंगमंच के कलाकारों ने उनके जीवन पर आधारित नाटिका पेश की। परंपरागत लोकवाद्यों की प्रस्तुति के बीच उनके वंशजों, जनप्रतिनिधियों, 30 गांवों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। श्रीपुरिया सेवा ट्रस्ट उनकी स्मृति में सामुदायिक केंद्र भी बना रहा है। अभियान को सिरे चढ़ाने हेतु ट्रस्ट संरक्षक निर्मल प्रकाश व प्रधान सुनील ने 32 गांवों व शहरों में बसे प्रवासी नैथाणावासियों से इस यज्ञ में आर्थिक सहयोग रूपी आहुति डलवायी।
ग्राम नैथाणा में वीर पुरिया स्मारक की आधारशिला 27 अक्तूबर, 2021 को रखी गई। लंदन में रहने वाले प्रो. सतीश चंद्र नैथानी ने चार लाख का चेक देकर अभियान की शुरुआत की। उत्तराखंड सरकार की आंशिक मदद में पुरातत्व विभाग की पांच लाख रुपये की प्रतिमा भी शामिल है। स्मारक के निर्माण में करीब 24 लाख रुपये का खर्च आया।
उत्तराखंड में गढ़वाल के मध्ययुगीन नरेशों के इतिहास में विलक्षण प्रतिभा के धनी वीर पुरिया का नाम कुशल कूटनीतिज्ञ-सेनापति के रूप में दर्ज है। उन्होंने कई युद्धों में गढ़वाल राज्य की सीमाओं को अक्षुण्ण बनाया। उनकी वाकपटुता व हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रयासों से प्रसन्न औरंगजेब ने गढ़वाल पर लगा जजिया कर माफ किया था।
पूर्णमल उर्फ पुरिया नैथाणी का जन्म शुक्लपक्ष पूर्णमासी भाद्रपद यानी 22 अगस्त, 1648 को पौड़ी के ग्राम नैथाणा में गेंदामल के घर हुआ। तत्कालीन गढ़ नरेश पृथ्वी शाह के करीबी मंत्री शंकर डोभाल, प्रसिद्ध ज्योतिषज्ञ भी थे। उन्होंने पुरिया जी की जन्मपत्री देखकर असाधारण भविष्य को दर्शाते ग्रहों को पहचाना। वह उन्हें अपने साथ ले गए और पिता के भरण-पोषण हेतु पेंशन की व्यवस्था की। कुशाग्र बुद्धि के मेधावी पुरिया की शिक्षा-दीक्षा राजकुमारों के साथ हुई। राजगुरु के सान्निध्य में उन्होंने संस्कृत, इतिहास, भूगोल, अस्त्र-शस्त्र, धर्मशास्त्रों व घुड़सवारी की शिक्षा हासिल की। कालांतर मंत्री डोभाल की पुत्री से उनका विवाह हुआ।

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रोशनआरा की शादी में बने थे शाही मेहमान

वीर पुरिया वर्ष 1668 में गढ़वाल नरेश पृथ्वीपति शाह के प्रतिनिधि बनकर औरंगजेब की बेटी रोशनआरा के विवाहोत्सव में शामिल हुए। उन्होंने अपनी प्रतिभा से औरंगजेब को प्रभावित किया। एक छत्रप से कोटद्वार के एक बड़े भूभाग को औरंगजेब के निर्देश पर मुक्त कराया, जिसके लिए गढ़ नरेश ने सैकड़ों बीघा जमीन पुरिया जी को प्रदान की। वहीं वर्ष 1680 में औरंगजेब के दरबार में अपने वाकचातुर्य से आर्थिक रूप से कमजोर गढ़वाल की जनता को जजिया कर से मुक्त कराया। वीर पुरिया के सांप्रदायिक सद्भाव के तर्कों से औरंगजेब इतना प्रभावित हुआ कि उसने गढ़ नरेशों की राजधानी देवलगढ़ में प्राचीन मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिये आर्थिक मदद दी। ऐतिहासिक सफल यात्रा के बाद गढ़वाल नरेश ने उन्हें अपना सेनापति बनाया। उन्होंने कई युद्धों, विद्रोहों व हमलों से राजवंश की रक्षा की।

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