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यूं हंस भला सकता है कौन

06:18 AM Sep 30, 2023 IST

सहीराम

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किसी के हंसने पर इतना हंगामा क्यों है। किसी ने किसी को थोड़ा हंसा दिया, इस पर इतना बवाल क्यों है। हंसना-हंसाना तो नियामत है। हंसना-हंसाना इतना आसान कहां है। किसी सूफी शायर ने कहा है कि गम भरी दुनिया में तेरी हंस भला सकता है कौन, या तो दीवाना हंसे या तू जिसे तौफीक दे। अब आप ही बताओ जनाब क्या वह युवा हंसेगा, जो बेरोजगार है और इतना बेरोजगार है कि प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर उन्हें बधाई तक नहीं देता, उल्ाटे बेरोजगारी दिवस मनाता है। क्या वह विद्यार्थी हंसेगा-जिसका कालेज अगर सरकारी है तो शिक्षक नहीं हैं और प्राइवेट है तो फीस दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है और अब तो तीन साल का डिग्री कोर्स तक चार साल का हुआ जा रहा है। क्या वह किसान हंसेगा, जिसकी फसल मंडी में मिट्टी के मोल बिकती है और एमएसपी की मांग करे तो नकार मिलती है। क्या वह मजदूर हंसेगा, जिस पर छंटनी की तलवार लटकी हुई है। ऐसे में जिनके अच्छे दिन आए हैं वे हंसे तो हंसे वरना तो भाई लॉफ्टर थेरैपी वाले ही हंस सकते हैं ताकि स्वस्थ रहें। योग गुरु की बात अलग है, जो योग कराते हुए भी हंसते हैं और व्यापार करते हुए भी हंसते हैं। लगता है उन्हें ऊपर वाले ने तौफीक दी है, दीवाने वे बिल्कुल भी नहीं।
अच्छी बात यह है कि अब भाजपा नेता भी हंसने लगे। वरना तो याद है न राहुल गांधी ने कहा था कि भाजपा सांसद संसद में ऐसे बैठते हैं कि अगर उन्हें भूलकर भी हंसी आ गयी तो पता नहीं क्या हो जाएगा। अरे भाई जब प्रधानमंत्री ऐसे बैठेंगे तो वे भी तो मुंह चढ़ाकर ही बैठेंगे न। लेकिन जब प्रधानमंत्री कांग्रेस का मजाक बनाते हुए हंसते हैं तो क्या वे हंसते नहीं हैं। नहीं हम कुलदीप सिंह सेंगर की बात नहीं कर रहे, न ही ब्रजभूषण शरण सिंह की बात कर रहे हैं। उनके अट्टहास को हंसी कहना मुश्किल है। आप नेता संजय सिंह तो भाजपा सांसदों की संसद की हंसी को भी अट्टहास करार दे चुके। लेकिन नयी संसद में यह अच्छी प्रथा शुरू हुई है कि अब भाजपा नेता भी हंसने-हंसाने लगे हैं। कई बार तो लगता है कि संसद का विशेष सत्र बुलाया ही इसीलिए गया था कि सांसद लोग थोड़ा हंसना-हंसाना सीखें। इसके लिए हंसना सिखाने वाले रमेश बिधूड़ी भी बधाई के पात्र हैं और हंसना सीखने वाले डॉ. हर्षवर्धन और रविशंकर प्रसाद भी बधाई के पात्र हैं। वरना तो डॉ. हर्षवर्धन को जिस तरह से मंत्रिमंडल से विदा किया गया था, किसी ने सोचा था कि वे कभी हंसेंगे। और रविशंकर प्रसाद को तो किसी ने हंसते हुए शायद ही कभी देखा हो। लेकिन बिधूड़ी जी ने उन्हें भी हंसना सिखा दिया।

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