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जहां 108 भवनों में विराज रहे अलौकिक अाराध्य देव

10:00 AM Apr 22, 2024 IST
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शेर सिंह
हरी-भरी वादियों, नीली पहाडि़यों, घने जंगलों, स्‍वर्णिम समुद्री तटों एवं सुंदर झीलों से युक्‍त बंगाल की खाड़ी में स्थित उड़ीसा पूर्वी भारत का एक अनमोल रत्‍न कहलाता है। उड़ीसा में भुवनेश्‍वर, पुरी, कटक, कोर्णाक अपने अद्वितीय मंदिरों, समुद्र तटों, उत्‍कृष्‍ट स्‍थापत्‍य व मूर्ति कला एवं धार्मिक स्‍थलों के लिए विश्‍व विख्‍यात हैं।

प्राचीन इतिहास

उड़ीसा ही वह प्रदेश है जो प्राचीन काल में कलिंग देश के नाम से जाना जाता था। ईसा पूर्व चौथी-पांचवीं शताब्‍दी में ही इस क्षेत्र में समुद्री बंदरगाह विकसित हो गए थे। कलिंग प्राचीन इतिहास में चौथी शताब्‍दी से प्रसिद्ध हुआ, जब मगध में (पटना के समीप) नंद वंशीय राजा का शासन था। ईसा पूर्व 261 के आस-पास मौर्य वंशीय सम्राट अशोक ने कलिंग पर चढ़ाई कर दी थी, और कलिंग प्रदेश को जीत लिया था। लेकिन कलिंग युद्ध में हजारों सैनिकों के हताहत होने से धरती लाल हो गई थी। इससे आहत होकर सम्राट अशोक ने सदा के लिए युद्ध को त्‍याग दिया था, और बौद्ध धर्म को अपना लिया था।
आज का भुवनेश्‍वर कलिंग की राजधानी अथवा कलिंग युद्ध क्षेत्र से केवल कुछ ही किलोमीटर के फासले पर स्थित है। कहते हैं, यह वही स्‍थान है जहां कलिंग का युद्ध हुआ था। यह स्‍थान भुवनेश्‍वर-पुरी सड़क पर दायीं ओर पहाड़ी जैसी जगह पर स्थित है। इसके पास से ही एक धीमी गति से प्रवाहित नदी है, जिसे दया नदी के नाम से जाना जाता है। ऊपर मंदिर तक जाने के लिए अलग रास्‍ता है। रास्‍ते के चारों ओर काजू के हरे-भरे बाग हैं। काजू के ये हरे-भरे बाग सभी का ध्‍यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

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लिंगराज मंदिर

भुवनेश्‍वर अपने प्राचीन मंदिरों के लिए विख्‍यात है। भुवनेश्‍वर में लिंगराज का मंदिर सबसे बड़ा और भव्‍य है। लिंगराज मंदिर को केसरी वंशीय राजाओं ने 11वीं शताब्‍दी में बनाया था। भुवनेश्‍वर में स्थित अन्‍य सभी मंदिरों में से, लिंगराज का मंदिर सबसे विशाल एवं आकर्षक है। मंदिर के शिखर कलश से लहराता केसरिया त्रिकोणीय ध्‍वज दूर से ही नज़र आता है। यहां दसवीं-ग्‍यारहवीं शताब्‍दी में निर्मित अन्‍य मंदिरों में मुक्‍तेश्‍वर, राजा-रानी, परशुराम आदि के मंदिर सुप्रसिद्ध हैं। उड़ीसा को पूर्व का रत्‍न कहलाने का प्रमुख कारण इसके ऐतिहासिक नगरों भुवनेश्‍वर, पुरी, कटक आदि हैं। इन जिलों में जितने देव मंदिर, देवी-देवताओं के पूजा स्‍थल हैं, उतना पूर्वी भारत में संभवत: और कहीं नहीं हैं।

महाप्रसाद

लिंगराज मंदिर चारों ओर से किलेनुमा ऊंची दीवारों के भीतर, एक अलौकिक रूप-छटा लिए विद्यमान है। मंदिर की भव्‍यता कई शताब्दियों पूर्व भारत में मंदिर निर्माण कौशल को सहज ही दर्शाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का विशाल शिवलिंग स्‍थापित है। यहां प्रतिदिन तीन समय- प्रात:, दोपहर एवं सायंकाल में पूजा-अर्चना की जाती है, और सभी समय भगवान को भोग लगाया जाता है। मिट्टी के एक ही आकार वाले हांडों में प्रसाद के लिए भात-दालमा आदि पकाया जाता है। श्रद्धालुओं, भक्‍तजनों को इन्‍हें प्रसाद के रूप में दिया जाता है। ऐसे प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाता है। महाप्रसाद यहां का एक विशिष्‍ट भोजन एवं प्रसाद है।

वास्तुकला निर्माण

लिंगराज मंदिर हिन्‍दू वास्‍तुकला निर्माण का एक अद्भुत उदाहरण है। मंदिर की बाहरी दीवारों में पत्‍थरों को तराश कर बनाई गई विभिन्‍न देवी-देवताओं की आकृतियां एवं मूर्तियां हैं। जीवन के सत्‍य को दर्शाती मंदिर की भित्ति पत्‍थरों पर नारी के विभिन्‍न रूप उकेरे गए हैं। ये आकृतियां विभिन्‍न मुद्राओं तथा भिन्‍न-भिन्‍न अवस्‍थाओं में हैं। कहीं दिगंबर अवस्‍था में जीवन का सच दर्शाया गया है। स्‍त्री-पुरुष की आकृतियों के अतिरिक्‍त, पशु-पक्षी, पेड़-पौधों के चित्र भी अत्‍यंत सूक्ष्‍मता से उकेरे गए हैं। पशुओं में सिंहों की संख्‍या सर्वाधिक है। मंदिर के प्रवेश द्वार शिखर के स्‍तूपों तथा खम्‍भों में सिंहों की आकृतियां-मूर्तियां विभिन्‍न मुद्राओं में स्‍थान-स्‍थान पर पत्‍थरों को काट कर, तराश कर बनाई गई हैं।

अलौकिक एवं अद्धितीय

चट्टानों को काटकर, तराश कर बनाई गई शिव, पार्वती, गणेश आदि की प्रस्‍तर प्रतिमाएं सूक्ष्‍म से सूक्ष्‍म भाव- भंगिमाओं को दर्शाते हैं, जो अलौकिक एवं अद्वितीय हैं। सजीव व बोलती-सी ये मूर्तियां, उस समय के शिल्‍पकारों, कलाकारों की महान एवं विलक्षण कला कौशल को देख, दर्शक-श्रद्धालु अचंभित रह जाते हैं। वास्‍तव में यह मूर्तिकला की पराकाष्‍ठा है, जो उस समय हिन्‍दू मंदिरों के निर्माण का स्‍वर्ण युग के नाम से जाना जाता है।

भारी संख्या में मंदिर

लिंगराज मंदिर परिसर में कुल 108 छोटे-बड़े मंदिर हैं। हिन्‍दुओं के लगभग सभी आराध्‍य देवगणों के मंदिर इस परिसर में मौजूद हैं। इनमें नारायण जी, नरसिंह, शिव-पार्वती, लक्ष्‍मी-नारायण, गणेश, कार्तिक, वैद्यनाथ, शिव-काली, राम-सीता, कृष्‍ण आदि के हैं। इन मंदिरों के अपने-अपने पुजारी हैं। भुवनेश्‍वर के 10 किलोमीटर की परिधि के भीतर, एक कम एक लाख पच्‍चीस हजार मंदिर हैं। लेकिन उपलब्‍ध अभिलेखों एवं जानकारी के अनुसार, लगभग सात हजार से अधिक मंदिरों का उल्‍लेख नहीं मिलता है।
लिंगराज मंदिर में बारहों महीने प्रतिदिन दूर-पास से आने वाले भक्‍तगणों, श्रद्धालुओं एवं दर्शनार्थियों की भारी भीड़ लगी रहती है। लेकिन शिवरात्रि के दिन प्रात:काल से ही मंदिर में अत्‍यधिक भीड़ हो जाती है। जिस ओर भी दृष्टि डालें, अपार जनसमूह नज़र आता है। रात्रि में मंदिर में इतनी अधिक संख्‍या में लोग शिव जी एवं शिवलिंग के दर्शन व पूजा-अर्चना के लिए उमड़ पड़ते हैं कि एक साथ आए लोग भीड़ में खोकर एक-दूसरे को ढूंढ़ने लगते हैं।
लिंगराज मंदिर जिस ओर स्थित है, उसे पुराना नगर या ओल्‍ड टाउन कहा जाता है। लिंगराज मंदिर का रख-रखाव भारतीय पुरातत्‍व विभाग द्वारा किया जाता है। उड़ीसा को यदि पूर्वी भारत का रत्‍न कहा जाता है, तो इस में कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

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