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जहां करते हैं शिव-पार्वती विश्राम

08:35 AM May 27, 2024 IST
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ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान शिव की सुबह, शाम और रात्रि तीनों प्रहर की आरती होती है। माना जाता है कि भगवान शिव यहां मां पार्वती के साथ रात्रि विश्राम करते हैं और दोनों चौसर खेलते हैं। आज भी मंदिर में रात्रि को चौसर-पासे, पालना और सेज सजाई जाती हैं।

सोनम लववंशी
ओंकारेश्वर एक प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग है, जो मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में है। नर्मदा नदी के किनारे मान्धाता पर्वत पर स्थित इस ज्योतिर्लिंग से कई अनोखी मान्यताएं जुड़ी है। उन्हीं में से एक यह है, कि यह मंदिर भगवान शिव का शयन स्थल है। तीनों लोक का भ्रमण करने के बाद शिव-पार्वती यहीं रात्रि विश्राम करते हैं। मंदिर में रोज भगवान शिव और माता पार्वती की शयन व्यवस्था होती है और मनोरंजन के लिए चौसर और पासे रखे जाते हैं, जो सुबह बिखरे हुए मिलते हैं। यहां भगवान शिव ममलेश्वर और अमलेश्वर दो लिंग रूप में विराजमान है।
हमारे देश के कण-कण में आस्था और भक्ति समाहित है। हमारी सनातन संस्कृति में देवी-देवताओं के प्रति गहरा लगाव है। उन्हीं में से एक है भगवान शिव जिन्हें हिंदू देवताओं में ऊंचा स्थान दिया गया है। वे पृथ्वी पर 12 ज्योतिर्लिंगों के रूप में विराजमान है। ज्योतिर्लिंग का तात्पर्य है ‘प्रकाश का स्तंभ।’ स्तंभ चिन्ह दर्शाता है कि जिसका न तो कोई आरंभ है न कोई अंत। अर्थात‍् भगवान शिव अनंत है। उज्जैन के महाकालेश्वर की तरह ही ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भी हिंदुओं की परम आस्था का केंद्र है। नर्मदा नदी के मध्य स्थित इस ज्योतिर्लिंग को ‘ओंकार पर्वत’ भी कहा जाता है। यहां मां नर्मदा नदी ॐ के आकार में बहती हैं। मान्यता है कि नर्मदा नदी के हर कंकर में शंकर विराजित हैं।

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शयन आरती का महत्व
जिस तरह उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में भस्म आरती का विशेष महत्व है। उसी तरह ओंकारेश्वर मंदिर की शयन आरती की मान्यता है। इस मंदिर में भगवान शिव की सुबह, शाम और रात्रि तीनों प्रहर की आरती होती है। मान्यता है कि भगवान शिव यहां मां पार्वती के साथ रात्रि विश्राम करते हैं और दोनों चौसर खेलते हैं। आज भी मंदिर में रात्रि को चौसर-पासे, पालना और सेज सजाई जाती हैं। रात्रि में मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। कोई मुख्य मंदिर के आसपास भी नहीं रहता। आश्चर्य की बात है कि जिस मंदिर में रात में कोई परिंदा भी मर नहीं मार सकता, वहां सुबह चौसर के पासे इस तरह बिखरे मिलते हैं, जैसे रात्रि में यहां उसे किसी ने खेला हो।
ममलेश्वर से जुड़ी कथा
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी एक कथा प्रचलित है कि राजा मान्धाता ने भगवान शिव की कठिन तपस्या की। जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें दर्शन देकर दो वर मांगने को कहा। राजा मान्धाता ने पहले वर में भगवान शिव को इसी स्थान पर विराजमान होने का वरदान मांगा और कहा कि आपके नाम के साथ मेरा नाम भी जुड़ जाए। तभी से भगवान शिव यहां पर विराजमान हैं और यह क्षेत्र आज भी मान्धाता के नाम से प्रसिद्ध है।
हर कंकर में शंकर
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग और मां नर्मदा को लेकर भी एक प्रसिद्ध किवदंती है। कहा जाता है की नर्मदा शिवजी की बहुत बड़ी भक्त थी। वह सदैव उनके समीप रहना चाहती थी। मां नर्मदा ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। इससे भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न हुए। उन्होंने मां नर्मदा की भक्ति से प्रभावित होकर उन्हें वरदान दिया कि वह नर्मदा नदी के एक द्वीप पर शिवलिंग के रूप में विराजमान होंगे। यही कारण है कि आज भी विश्वास है कि मां नर्मदा के हर कंकर में भगवान शंकर विराजमान है। कहते कि जब किसी मूर्ति की स्थापना की जाती है, तो उसकी प्राण-प्रतिष्ठा जरूरी होती है। लेकिन, नर्मदा नदी से निकले शिवलिंग में प्राण-प्रतिष्ठा की जरूरत नहीं होती, क्योंकि, इसमें भगवान शिव साक्षात विराजमान रहते हैं।
कुबेर को दिया वरदान
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में शिव के परम भक्त कुबेर ने भी तपस्या की थी। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें धन के देवता होने का वरदान दिया था। कुबेर ने भगवान शिव से यहां स्नान करने के लिए प्रार्थना की। शिवजी ने अपनी जटा से मां कावेरी को उत्पन्न किया। कावेरी नदी ओंकार पर्वत का चक्कर लगाकर नर्मदा नदी में समाहित होती है। नर्मदा और काबेरी नदी के दो धाराओं में बहने के कारण ही यहां टापू निर्मित होता है, जिसे मान्धाता पर्वत कहते हैं।
जल चढ़ाए बिना अधूरी यात्रा
ओंकारेश्वर में भगवान ओंकार को लेकर यह मान्यता है कि कोई भी तीर्थयात्री भले ही सभी तीर्थ क्यों न कर ले। जब तक ओंकारेश्वर आकर सभी तीर्थों का जल भगवान शिव को नहीं चढ़ाता, उसके तीर्थ अधूरे माने जाते हैं।
ओंकारेश्वर के दर्शनीय स्थल
इस तीर्थ क्षेत्र में कई धार्मिक स्थल है। जिसमें विराट अवतार, सीता वाटिका, मार्कण्डेय शिला, अन्नपूर्णा आश्रम, विज्ञान शाला, बड़े हनुमान, खेड़ापति हनुमान, गायत्री माता मंदिर, आड़े हनुमानजी, विष्णु मंदिर, कुबरेश्वर मंदिर, मामा-भांजे की कोठी, गौमुख घाट, संगम क्षेत्र आदि दर्शनीय स्थल है।


108 फीट ऊंची प्रतिमा
ओंकारेश्वर में मांधाता पर्वत पर आदि शंकराचार्य की 108 फ़ीट ऊंची अष्टधातु से बनी एक आकर्षक मूर्ति स्थापित है। वैसे तो आदि शंकराचार्य का जन्म केरल में हुआ, लेकिन उन्होंने बाल अवस्था में ही घर-संसार त्याग कर ओंकारेश्वर में शरण ली थी। बताया जाता है कि ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य ने चार साल तक वक्त बिताया था। इसी स्मृति को संजोए रखने के लिए यहां पर 108 फीट ऊंची आदि शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित की गई, जिसमें उनके बाल स्वरूप को दिखाया गया है।

सभी चित्र लेखिका

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