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गये कहां, बस आते-जाते रहते हैं चुनाव

07:49 AM Jul 16, 2024 IST
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आलोक पुराणिक

सेंट चालू नंद द्वारा रचित चुनाव कथा के कतिपय खास अंश इस प्रकार हैं :-
चुनाव अभी गये ही थे कि फिर आ गये। चुनाव यानी लोकसभा चुनाव अभी गये थे कि अब उपचुनाव आ गये।
उपचुनाव जायेंगे, तो विधानसभा चुनाव आ जायेंगे, उस राज्य के। उस राज्य के विधानसभा खत्म हुए, तो फिर उस राज्य के उपचुनाव आ जायेंगे। फिर जी उस नगर निगम के चुनाव आ जायेंगे, जिसका बजट तमाम राज्यों के बजट से ज्यादा है।
चुनाव से चुनाव तक कुल मिलाकर ही लोकतंत्र की यात्रा है। नेता एक चुनाव से दूसरे चुनाव तक जाता है फिर तीसरे चुनाव तक जाता है। पब्लिक का जिम्मा बस यही है कि नेताओं का और चुनाव का इंतजार करे। भारतवर्ष दरअसल कृषि प्रधान नहीं, चुनाव प्रधान देश है। चुनना ही मूल गतिविधि है। जो चुना जाता है, फिर अगले चुनाव की तैयारी में लग जाता है। जो नहीं चुना जाता है, वह भी अगली बार चुने जाने की तैयारी में लग जाता है। इस धरा धाम पर दो ही कैटेगरियां हैं, एक जो चुने जाते हैं, और दूसरी कैटेगरी उनकी, जो चुनते हैं।
जो चुनते हैं, उन्हें हम जनता कहते हैं, और जो चुने जाते हैं उन्हें नेता कहते हैं। जनता सालो साल जनता ही रहती है, नेता अलबत्ता कुछेक साल में बड़ा नेता हो जाता है, कई फार्म हाउस, कई पेट्रोल पंप और तमाम संपत्तियों का मालिक हो जाता है। चुनाव की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कई गरीब राज्यों के नेता बहुत अमीर इसलिए हो जाते हैं कि वहां चुनाव लगातार बार-बार होते रहते हैं। झारखंड जैसे राज्य, जो मूलत: गरीब राज्य है, में बहुत-बहुत अमीर नेता पाये जाते हैं। ऐसा इसलिए संभव है कि चुनाव बार-बार होते हैं। नेता जो चुना जाता है, उसकी सबसे पहली प्राथमिकता वह खुद होता है फिर उसके बालक बच्चे आते हैं, फिर भतीजे वगैरह आते हैं। भतीजों की यूं बहुत रोल है राजनीति में पर भतीजा बेटे और बेटी के बाद ही आता है। महाराष्ट्र में चाचा शरद पवार का भतीजा अजित पवार उनके खिलाफ इसलिए हो गया कि चाचाजी रिटायर ही न हो रहे हैं और रिटायर भी हुए,तो अपनी बेटी को ही गद्दी सौंपेंगे। वूमेन इम्पावरमेंट बहुत अच्छी बात है, पर भतीजा इम्पावरमेंट भी जरूरी है।
चुनाव अंतत गोली देने का खेल है, जो जिसके साथ होता है, वह उसके साथ नहीं होता। वह और भी कई जगह होता है। यह बात स्मार्ट नेता जानते हैं, जो यह बात नहीं जानते, वह नेता भी न रह पाते, वह सिर्फ जनता बन जाते हैं। और लोकतंत्र में किसी भी नेता का खराब से खराब दु:स्वप्न यही हो सकता है कि वह जनता के लेवल पर उतार दिया जाये। खैर, नेता दुर्गति के बाद भी नेता ही होता है। और जनता जनता ही रहती है, जनता में जो स्मार्ट होते हैं, वो नेता भी बन सकते हैं।

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