मोको कहां ढूंढ़े बंदे, मैं तो हूं खेत खलिहान में
सहीराम
पता आपका कुछ है भगवान जी और रहते आप कहीं और हो। पंडे-पुजारियों ने बताया कि आप मंदिर में रहते हो। लेकिन अब भक्तजन कह रहे हैं कि आप तो मस्जिद में... नहीं-नहीं मस्जिद के नीचे डेरा जमाए हो। पहले बताते थे कि शंकर भगवान कैलास पर्वत पर रहते हैं, ब्रह्माजी क्षीरसागर में रहते हैं। ऊपर कोई स्वर्ग लोक है, कोई देवलोक है, इंद्रलोक है, जहां से देवता फूल बरसाया करते हैं। इसीलिए तो हम हाथ जोड़कर ऊपर देखते हैं आपकी कृपा के लिए। लेकिन अब पता चल रहा है कि आप तो ऊपर हो ही नहीं। आप तो नीचे हो, मस्जिद के नीचे। हमें तो यही बताया गया था कि नीचे पाताल लोक है। और पाताल लोक का पता तो आपका नहीं बताया गया था। वैसे कबीर बाबा ने आपकी तरफ से यह ऐलान किया था कि न मैं मंदिर, न मैं मस्जिद, न काबे कैलाश में। मोको कहां ढ़ूंढ़े से बंदे मैं तो तेरे पास में। लेकिन समस्या यही है कि अपने पास जो कुछ है, उसे हम देखते ही नहीं। लेकिन बाबा रविदास ने देख लिया था, इसीलिए तो उन्होंने अपनी कठौती में ही गंगा तलाश ली थी।
ज्ञानियों ने तो हमेशा यही कहा है कि आप तो घट-घट के वासी हैं। आपका कण-कण में वास है। लेकिन घट-घट और कण-कण में देखने की बजाय हम तो आपकी तलाश में फावड़ा लिए घूम रहे हैं- कहीं इस मस्जिद के नीचे तो नहीं, इस मजार को खोद कर देखें क्या, उस दरगाह में बड़ी भीड़ है, कहीं उसी के नीचे तो नहीं। हमारी हालत तो वैसी ही हो रही है, जैसा ज्ञानियों ने कहा है कि कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढ़ूंढ़े बन माही। देखिए तपस्वियों ने आपको पाने के लिए कंदराओं में जाकर तपस्या की, कोई हिमालय पहुंचा तो कोई जंगल पहंुचा। किसी ने योग किया, किसी ने हठयोग किया। लेकिन ज्ञानियों ने आपका पता हमेशा बड़ा सरल ही बताया-किसी ने कहा कि भगवान गरीब के झोपड़े में मिलेगा। लेकिन वहां तो भूख रहती है। किसी ने कहा वो खेत में मिलेगा, खलिहान में मिलेगा। लेकिन खेत-खलिहान वाले तो खुद ही दिल्ली आ रहे हैं।
किसी ने कहा कि वह मेहनत में मिलेगा। लेकिन मेहनत से तो दो वक्त की रोटी ही नहीं मिलती। किसी ने कहा कि वह ईमानदारी में मिलेगा। लेकिन यहां तो दिन-रात घोटाले हुए जा रहे हैं। किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए, वाली निदा फाजली साहब की तर्ज पर ज्ञानियों ने कहा कि वह बच्चे की मुस्कान में मिलेगा। लेकिन बच्चे के होठों पर मुस्कान है कहां, वह या तो कुपोषण का मारा हुआ है या होम वर्क का। लेकिन यह तय है कि फावड़ा लेकर न किसी साधु संत ने भगवान को तलाशा और न किसी ज्ञानी ने। फिर यह कौन हैं-जो फावड़ा लिए भगवान तलाश रहे हैं।