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... जब हर घर से निकले थे रण बांकुरे

11:38 AM Aug 14, 2022 IST
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तरुण जैन/हप्र

रेवाड़ी, 13 अगस्त

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आजादी के मतवालों का एक गांव है लूखी। जिला रेवाड़ी के इस गांव के लोगों में देशभक्ति के जज्बे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आजादी की लड़ाई में लगभग हर घर से एक युवा नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में शामिल हुआ। इस गांव ने 46 स्वतंत्रता सेनानी दिए। इसलिए इस गांव को स्वतंत्रता सेनानियों का गांव भी कहा जाता है।

गांव लूखी में आजादी के लिए संघर्ष के समय की एकमात्र वीरांगना कला देवी (88) जीवित हैं। यहां के नाबालिग छोटनलाल उनके भाई बोहतराम जेल गए थे। यहां के 101 वर्षीय लाजपतराय यादव का निधन 10 माह पूर्व हुआ था। उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध व भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और 1939 में जेल भी गए। मृत्यु से पूर्व उनसे हुई बातचीत में उन्होंने कहा था कि उनका जन्म गुलामी के दौर में हुआ। लेकिन उन्हें संतोष है कि आजादी के दौर में वे आंख मूंदेंगे। लाजपत राय के चाचा सोहनलाल भी आजादी की लड़ाई में शामिल हुए थे।

गांव में स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति में एक स्मारक बनाया गया है। यहां नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा लगाई गई है। इस स्मारक पर लगाए गए पट्ट पर 46 में से 39 योद्धाओं के नाम अंकित हैं। स्वतंत्रता सेनानियों के इस गांव का हर कोई व्यक्ति खुद पर गर्व करता है, लेकिन यहां मूलभूत सुविधाओं की कमी उन्हें सालती है। यहां के अशोक कुमार एवं उनके साथ कुछ अन्य लोग बताते हैं कि गांव में स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है। गांव की फिरनी का कार्य भी पूरा नहीं हुआ है। वैसे इस गांव के खाते में एक और बड़ी उपलब्धि है। उनके गांव में पं. सोहनलाल आर्य ने बेटियों की शिक्षा पर जोर दिया। इसी का परिणाम है कि आज 100 से अधिक महिला-पुरुष टीचर कार्यरत हैं या रिटायर हो गए हैं।

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