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कुछ भी हो अगले वर्ष तुम फिर आना

08:26 AM Oct 16, 2024 IST

भूपेन्द्र भारतीय

सत्य पर असत्य की विजय के लिए अगले बरस तुम फिर जल्दी आना। तुम्हारे बगैर बाजार अधूरा लगता है। तुम्हें फिर आना ही होगा। तुम्हें नेताओं व सरकारी अधिकारियों की उम्र लग जाए। मेरा बस चले तो तुम्हें जलाने ही नहीं दूं। लेकिन मेरे बस में कुछ नहीं है। मैं ठहरा भीड़ का एक अदना-सा नर। तुम्हें जलाने वाले किसी को आगे आने नहीं देते। सब तुम्हें हर बरस मारते हैं और खुश होते हैं। लेकिन मैं दुखी होता हूं। तुम्हें नहीं पता, ये लोग तुम्हारे नाम पर व्यापार करते हैं। अपनी-अपनी दुकान खोले बैठे हैं। अपनी-अपनी बुराई को छुपाने के लिए तुम्हारा सहारा लेते हैं। लेकिन इनके अंदर का रावण आज तक नहीं मरा।
मैंने इस बरस भी तुम्हें जबरन जलते देखा। मुझे पता है तुम इन नेताओं के हाथों नहीं जलना चाहते हो। क्या करें, तुम्हें जलाने के लिए जनता ने ही इन्हें चुना है। ये तुम्हें मारने-जलाने के लिए हर बरस बड़ी सरकारी मदद लेते हैं। कितनी ही नगरपालिकाओं में तुम्हारे नाम पर लंबे-चौड़े बिल फटते हैं और बदनाम तुम होते हो। बिल तुम्हें मारने के लिए बनाते हैं और ‘कहते हैं कि एक बार फिर बड़ा पुतला बनाना होगा।’ जितना बड़ा पुतला उतनी बड़ी विजय होगी। उसके लिए बड़ा बजट चाहिए। उन्होंने पाप को इस बजट से मिटाया और जनता को ‘असत्य पर सत्य की विजय का’ संदेश दिया है।
तुम्हें तमाम बुद्धिजीवियों की कसम, तुम अगले बरस फिर जल्दी आना, नहीं तो ये बेचारे बुद्धिजीवी अगले बरस फिर बड़े-बड़े स्तंभ कैसे लिखेंगे! तुम्हारे फिर नहीं मरने पर समाज के नाम संदेश देने वाले फिर क्या बोलेंगे। व्याख्यान कैसे देंगे। तुम नहीं आये तो विकास रुक जाएगा। जीडीपी अपने मार्ग से भटक जाएगी। तुम नहीं आये तो सोशल मीडिया पर तुम्हारे जलते पुतले व प्रेरणादायक संदेश सोशल मीडियावीर कैसे भेजेंगे।
हां, अगले बरस तुम आओ तो एक मुंह ही लेकर आना। यहां एक से अधिक मुंह वालों की कमी नहीं। अब हमारे इधर भी दस मुंह से ज्यादा वाले पाये जाने लगे हैं। तुम्हारी वाली कला भी बहुत से लोग सीख गए हैं। तुम अगली बार थोड़ा जल्दी आना। मैं तुमसे ज्यादा सिर वाले लोगों को तुम्हें दिखाने के लिए हमारे देश के सरकारी कार्यालयों में ले चलूंगा। तुम इन्हें देखकर सिर पकड़ लोगे। ये तुमसे भी बड़े मायावी हैं। तुम्हें जलाने वाले कार्यालय का भी मैं तुम्हें दर्शन करवाऊंगा। तुम देखोगे कि ये लोग तुम्हें जलाने के लिए कितने बिल फाड़ते हैं और तुम्हें जलाने में भी घपले कर देते हैं। इनका ऐसा करने के पीछे, यह तर्क है कि इनका इससे घर चलता है। अब तुम्हारे जलने से किसी का घर चलता है तो एक बार फिर जलने के लिए आ जाना। तुम्हें जलने-मरने से भला क्या कुछ होता है। जनता के लिए तुम्हारा मरना धंधा व मनोरंजन बन गया है। तुम फिर आना, तुम्हें इससे पुण्य मिलेगा रावण!

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