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ये कैसी परीक्षा ले रहे हो प्रभु

06:42 AM Jun 14, 2024 IST
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मुकेश राठौर

एक समय था जब परीक्षा शब्द सुनते ही तन-बदन में डर-सा भर जाता था। आचार्य रामचंद्र शुक्ल का परीक्षा पर लिखा निबंध पढ़कर यह डर और घर कर जाता था। क्या करें ‘पर’ इच्छा वाला यह परीक्षा शब्द है ही ऐसा। ‘सवाल दूसरे की इच्छा का हो तो डरना लाज़िमी है।’ हालांकि, परीक्षा का डर तो आज भी जस का तस है लेकिन इस डर के आगे और पीछे के डर ने परीक्षार्थियों को खासा डरा रखा है। आप पूछेंगे कि परीक्षा से पहले और परीक्षा के बाद कैसा डर?
दरअसल, परीक्षा की घोषणा, परीक्षा की आयोजना से लेकर परीक्षा के सफल परिणाम आने तक में लाखों रोड़े आड़े आते हैं। अव्वल चिंता तो यह कि समय से परीक्षा कार्यक्रम की घोषणा हो जाए और तदनुसार परीक्षाएं संपन्न हो जाएं तो समझो गंगा घोड़े नहाएं! लेकिन यह सब कहने-सुनने की बातें हैं। हमारे यहां नर्सरी से लेकर नीट तक परीक्षाओं का दो-चार बार कार्यक्रम न बदला तो क्या बात हुई! कई बार किसी पर्चे के दिन किसी बड़े वोट बैंक वाले समाज के महापुरुष की जयंती आ गई तो पर्चा कैंसिल... तो कभी धुलेंडी को बचाते-बचाते पर्चे के दिन रंग पंचमी पड़ गई तो पर्चा कैंसिल... तो कभी अटक में पर्चा लीक हुआ तो कटक में पर्चा कैंसिल। माने खा जाए दाढ़ी वाले और कुटाए बेचारे मूंछ वाले।
दूसरी चिंता परीक्षा का होना। माने बुलव्वे के बाद भोजन। कई बार परीक्षाओं में प्रश्न-पत्रों के लिफाफे खोलते समय बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और नजर आता है। जब-जब भी ऐसा होता है परीक्षक और पर्यवेक्षकों की नजरें एक-दूसरे को देखती रह जाती हैं। परीक्षार्थियों की नजर मत पूछो। कई बार यह होता है कि किसी प्रश्न के दो-दो उत्तर तो कभी किसी प्रश्न में ही उत्तर देख परीक्षार्थी निरुत्तर हो जाते हैं। कभी ब्याह में मनौती के गीत गंवाने की मांग होती है। ...तो कभी अच्छा भला दिला-दिलाया पर्चा निरस्त होकर बेचारे परीक्षार्थियों को नई घोड़ी नया मैदान लाकर छोड़ दिया जाता है।
तीसरी चिंता परीक्षा परिणाम की होती है। एक समय था जब बोर्ड और बड़ी परीक्षाओं के परिणाम लाख कोशिशों के बावजूद पचास फीसदी पर आकर ठिठक जाते थे। पहले उत्तीर्ण होते-होते रह गए मूल्यांकन के मारों को कृपांक दिए जाते थे, आज यहां वहां, जहां-तहां मत पूछ कहां-कहां कृपांक दिए जा रहे हैं। इन दिनों परीक्षा परिणाम है कि बुलेट की रफ्तार से अंधाधुंध चले आ रहे हैं। कई बार तो पढ़ने-लिखने वाले बच्चों को कुचल डालते हैं। अब टीवी चैनलों की तरह हर बच्चा अपने को नंबर वन बता रहा है। बताइए न जब सभी गांव बीच रहने लगें तो गांव बाहर कौन रहेगा भला!!

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