For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

मन से मौसम

12:25 PM Aug 23, 2021 IST
मन से मौसम

अभिषेक ओझा

Advertisement

ट्विटर पर एक वायरल फोटो देख ‘व्हेअर आई नीड टु स्टडी’ मन में एक प्रश्न उठा कि ये सब भी लगता है पढ़ाई में? हमें तो लगता था पढ़ाई के लिए किताब चाहिए और मन चाहिए। पर मजा भी आया क्योंकि कई बातें याद आ गयी…। बात उन दिनों की है जब हमारे अपार्टमेंट में इतने लोग आते-जाते रहते कि मेरे एक दोस्त कहते, ‘बाबा, इसे अब धर्मशाला घोषित कर दो।’ वीकेंड पर तो अक्सर पांच-छह लोग हो जाते। उन दिनों हम लोग कभी-कभार खाना भी बना लेते। अक्सर बाहर खाते। अतिथियों में से कुछ खाना बनाने के विशेषज्ञ भी थे तो धीरे-धीरे रेड्डी की चटनी, शर्मा की कढ़ी जैसे व्यंजन आविष्कृत हो चुके थे। इससे हुआ ये कि कुछ-कुछ बर्तन और खाना बनाने के अन्य सामान जमा होते गए। धीरे-धीरे हम भी बनाने लग गए। हमारे एमबीए कर रहे मित्र ने एक रविवार घोषणा की, ‘आज मैं दाल-चावल बनाऊंगा।’ पर किचन में जिस गति से गए थे, उससे भी तेज गति से लौट आए। कहने लगे-टमाटर नहीं हैं। दाल नहीं बनेगी। ‘यार तुम बनाओ, अगर दाल कह दे कि बिना टमाटर मैं नहीं बन रही। कर लो जो करना है! तो मुझे बताना।’ कुढ़ कर उन्होंने दाल बनायी। खाते समय बोले, ‘यार अच्छी बन गयी है। मुझे नहीं पता था बिना टमाटर के भी दाल बनती है।’

वैसे ही एक हमारे बड़े अच्छे मित्र। एक दिन उन्हें फ़िटनेस का भूत सवार हुआ। पहले खूब रिसर्च की। उन्होंने एक जिम ढूंढ़ निकाला जो पैसे लेता था, इस बात की गारंटी के साथ कि अमेरिका में लगभग हर जगह उनकी शाखाएं हैं। फ़िलहाल उन्होंने पहला काम ये किया कि साल भर की प्रीमियम मेंबरशिप ले ली। मन तो हुआ था कि कहूं ‘कहानी पढ़े हो फ़ेडिप्पिडिस की? नंगे पैर ही दौड़ गया था। और आज तक उसके नाम पर मैराथन होता है।’ मेरे दिमाग़ में चल रहा था कि हमारे गांव की कोई दादी की उमर की औरत होती तो वार्तालाप कैसा होता! स्वाभाविक प्रश्न होता कि दौड़ने के लिए इन सब की क्या ज़रूरत? इसी प्रकार फ़ोटोग्राफ़ी का शौक़ चढ़ा तो कैमरा ख़रीदा। किताब ले आए। पहला कैमरा औने-पौने दाम में बेचकर दुनिया का लगभग सबसे महंगा कैमरा ले आए। मैंने कहा-भाई इतनी अच्छी गाड़ियां हैं। केवल टायर की ही खींचोगे? हमारी भी खींच दो। तो बोले ‘नहीं बे आर्टिस्टिक एंगल से खींचना होता है। कोर्स में बताया था, पहली क्लास में।’ ऐसे ही कई शौक आए और गए। बात आप समझ ही गए होंगे। वैसे ये सब लिख-पढ़ कर कुछ बदलना तो है नहीं पर रमानाथ अवस्थी की कविता की एक सुंदर पंक्ति है ‘कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए!’

Advertisement

साभार : उवाचओझा डॉट इन

Advertisement
Advertisement
×