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नहरों के संरक्षण खातिर हम हैं चौकीदार

07:07 AM Aug 18, 2024 IST
नहरों के संरक्षण खातिर हम हैं चौकीदार

हरीश भारद्वाज

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आपने सुंदरलाल बहुगुणा, सीचेवाल, राजेंद्र सिंह आदि बड़े-बड़े पर्यावरणविदों के नाम सुने होंगे जिन्होंने बड़े-बड़े आंदोलन किए हैं लेकिन इन तमाम बड़े नामों से दूर एक ऐसे शिक्षक-पर्यावरणविद हैं जो स्वच्छ पेयजल की मुहिम को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए पिछले दो वर्षों से प्रतिदिन हाथ में तख्ती लेकर नहर के पुल पर खड़े हो जाते हैं और लोगों को नफा-नुकसान समझाते हुए नहर के पानी में कोई भी सामान प्रवाहित करने से रोकते हैं। उनकी मुहिम का असर भी होने लगा है। तीन वर्ष पहले अकेले दम पर नहरों की सफाई के लिए निकले इस शिक्षक ने पूरा कारवां खड़ा कर दिया। यहां हम जिक्र कर रहे हैं जाट कॉलेज रोहतक के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभागाध्यक्ष डॉ. जसमेर सिंह का।

जागरूकता के साथ ही सफाई भी

इसे जल संरक्षण का जुनून कहा जाए या स्वच्छ पेयजल को लेकर एक शिक्षक का गंभीर चिंतन। स्वच्छ पेयजल की मुहिम को लेकर अकेले दम पर नहरों की सफाई के लिए निकले डॉ. जसमेर सिंह के साथ आज काफी लोग जुटे हैं। उनके साथ दर्जनों सामाजिक संगठनों के अलावा करीब डेढ़ सौ से ज्यादा प्रतिष्ठित नाम जुड़ गए हैं। डॉ. जसमेर सिंह ने कॉलेज के बाद प्रतिदिन शाम 3:30 बजे दिल्ली रोड स्थित जवाहरलाल नेहरू नहर पर हाथ में ‘सुनो नहरों की पुकार’ स्लोगन लिखी पट्टी लेकर खड़े होकर लोगों को जागरूक करना शुरू किया था। उन्होंने न केवल लोगों को नहरों में किसी भी प्रकार का सामान डालने से रोका अपितु नहर से गंदगी निकाल कर सफाई करनी भी शुरू कर दी। शुरू में उन्हें आते-जाते लोगों की हंसी का पात्र भी बनना पड़ा, व्यंग्य भी सहने पड़े। लेकिन उनके जज्बे को देखते हुए धीरे-धीरे कॉलेज के उनके शिष्य एक-एक कर उनके साथ जुड़ने लगे। इसी प्रकार समाज के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत समाजसेवी प्रवृत्ति के लोग उनसे जुड़ते चले गए।

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मुश्किलों के बावजूद निरंतर प्रयास

आज 3 वर्ष बाद डॉ.जसमेर सिंह के अभियान से करीब डेढ़ सौ लोग जुड़ चुके हैं, जिनमें प्रमुख तौर पर डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर, समाजसेवी, छात्र, खिलाड़ी, साइकिलिस्ट, रक्तदाता संगठन एवं राजनेता शामिल हैं। डॉ. जसमेर सिंह के मुताबिक, यह काम इतना आसान नहीं था जितना उन्होंने समझा था लेकिन जब करने लगे तो इतना मुश्किल भी नहीं लगा। इस मिशन में सर्दी-गर्मी, बरसात या तीज-त्योहार कोई भी मौका ऐसा नहीं रहा जिस दिन हम नहर पर न गए हों। साथ ही हमने इस मिशन के तहत 26 जनवरी, 15 अगस्त हो या कोई और छोटा-बड़ा त्योहार, हर त्योहार नहरों की सफाई करके ही मनाते हैं। यहां तक कि दिवाली व होली भी अपनी टीम के साथ नहरों पर ही मनाए।

नुक्कड़ नाटकों के जरिये किया प्रचार

डॉ. जसमेर ने बताया कि शुरू में वह अकेले चले जरूर थे लेकिन कोई भी काम बिना टीम के नहीं किया जा सकता। छात्र जुड़े तो उन्होंने स्कूल, कॉलेज व पार्कों में नुक्कड़ नाटक करवा कर नहरों को साफ रखवाने का संदेश दिया। यही नहीं, सुनो नहरों की पुकार मिशन से जुड़े लोगों व छात्र-छात्राओं ने पार्कों व कॉलोनियों में जाकर नाटकों एवं जनसभाओं के माध्यम से लोगों को इस मुहिम से जोड़ने का प्रयास किया। इस मुहिम को उन्होंने सिर्फ रोहतक शहर तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि जिले के ज्यादातर गांवों समेत आसपास के 6-7 जिलों में भी यह मुहिम शुरू की। एनएसएस कैंपों में विशेष तौर पर नहरों को साफ रखने व स्वच्छ पेयजल का संदेश देने का प्रयास रहता है।

मृत पशु भी बहा देते हैं

नहर में बहाये जाने वाले सामान के बारे में डॉ. जसमेर सिंह बताते हैं, एक तरफ तो लोग पवित्र वस्तुएं नहर में अर्पण करते हैं वहीं मृत पालतू पशुओं को भी मिट्टी देने की जगह नहर में ही बहा देते हैं। उन्होंने बताया कि रोहतक जेएलएन नहर पर साइफन बना हुआ है जहां प्रतिदिन दो-तीन मृत पशु नहर में बहकर आ ही जाते हैं। पिछले वर्ष गायों में लंपी बीमारी आई थी तब सैंकड़ों मृत गायें आ गई थी। स्वाइन फ्लू आया तो उन्होंने सैकड़ों मृत सूअर जेसीबी की सहायता से निकलवाये।
डॉ. जसमेर सिंह कहते हैं कि उन्हें न शासन से शिकायत न प्रशासन से और न ही आमजन से, यह सिर्फ लोगों की धारणा बदलने की बात है। दरअसल, गांव हो या शहर, इस क्षेत्र में पेयजल का मुख्य स्रोत कुएं, जोहड़, तालाब आदि थे जो लगभग सभी समाप्ति की ओर हैं। अब नहरों का पानी ही पेयजल का मुख्य स्रोत है , इसे किसी भी प्रकार प्रदूषित होने से बचाना है। उन्होंने कहा कि दूषित पेयजल से किसी को हेपेटाइटिस सी, किडनी व लीवर के रोग और कैंसर जैसी बीमारियां न हों यही उनका प्रयास है। अगली पीढ़ी को जल स्वच्छ मिले, भरपूर मिले यही ध्येय है।

पटरी और पुलों पर गंदगी

मिशन के सदस्य बताते हैं कि अधिकतर लोग जागरूक नहीं हैं। लोग नहर में या उसकी पटरी पर जो पूजा सामग्री, प्लास्टिक डिस्पोजल के अवशेष, थर्माकोल, मूर्तियां, तस्वीरें व पालीथिन आदि डालते हैं, उसके लिए सिंचाई विभाग से ज्यादा आम लोग जिम्मेदार हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सख्ती और प्रशासन के कई प्रतिबंधों के बावजूद नहरों में मलबा विसर्जन हो रहा है।

साथ-साथ आस्था का भी सम्मान

लोग नहर में प्रवाहित करने के लिए जो भी सामान लेकर आते हैं, उसका नहर के साथ ही एक गड्ढा खोदकर उसमें निष्पादन कर दिया जाता है ताकि भगवान व पूजा से जुड़ी चीजों का निरादर न हो। डॉ. जसमेर सिंह ने बताया कि विशेष ध्यान रखा जाता है कि लोगों की आस्था भी न प्रभावित हो और नहरों का पानी भी प्रदूषण मुक्त रहे। लोगों द्वारा मिशन के सदस्यों को सौंपी गई सामग्री, प्रसाद, मूर्तियां, तस्वीरें और आस्था से जुड़ी विभिन्न सामग्री को गड्ढा खोदकर मंत्रोच्चारण करके और गंगा जल छिड़ककर भूमि को अर्पित किया जाता है। डॉ. जसमेर आगे बताते हैं कि लोग विसर्जित करने के लिए जो मूर्तियां लेकर आते हैं मिशन की टीम के सदस्य उनको इकट्ठा कर लेते हैं। बाद में सभी मूर्तियों को गाड़ियों में भरकर जींद जिले के गतौली धाम ले जाया जाता है। जहां प्रत्येक पूर्णिमा को हवन कर इन सभी मूर्तियों के पदार्थों को अलग-अलग कर लिया जाता है। सारे सामान का चूड़ा बनाकर ईंट का आकार दे दिया जाता है, बाद में जहां भी कहीं मंदिर बनता है तो इन ईंटों को मंदिर की नींव में लगाकर आस्था का आस्था से मिलान कर दिया जाता है।

स्थानीय अग्रणी लोगों का सहयोग-समर्थन

सुनो नहरों की पुकार मिशन के मुख्य संरक्षक डॉ. जसमेर सिंह के मुताबिक, कई साधु संत, डेरा संचालक, शहर व पीजीआईएमएस रोहतक के कई डॉक्टर उनके इस मिशन में सहयोग करने व उनका मनोबल बढ़ाने को नहर के पुल पर आकर उनके साथ खड़े होते हैं ताकि लोग जल संरक्षण के प्रति जागरूक हो सकें। पर्यावरणविद शिक्षक दीपक छारा, डॉ. शमशेर धनखड़, स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत साइकिलिस्ट मुकेश नैनकवाल, रक्तवीर अजय हुड्डा, शिक्षक एवं साइकिलिस्ट स्वीटी मलिक, हरियाणवी फिल्म कलाकार निर्मल पन्नू, वेटरन खिलाड़ी रणबीर मलिक, वेदपाल नैन,रंगकर्मी रघुविंद्र मलिक, शिक्षाविद वेद प्रकाश श्योराण, कैप्टन जगबीर मलिक, स्वामी गोविंद करतार के अलावा कई विद्यार्थी ऐसे नाम हैं जो प्रतिदिन इस मिशन में सहयोग देने को नहर पर खड़े होकर इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं। इनमें 16 वर्ष के युवा शामिल हैं तो 82 वर्ष के बुजुर्ग भी।

त्योहारों के दिनों में नहरों पर पहरा

तीज-त्योहारों एवं छुट्टी के दिन जहां आमजन अपना समय परिजनों के साथ व्यतीत करते हैं वहीं, सुनो नहरों की पुकार मिशन के सदस्य इन दिनों अपना पूरा समय नहर पर बिताते हैं। मिशन के स्वयंसेवक नवरात्रों में अष्टमी, नवमी व दसवीं पर जल प्रहरी के तौर पर सुबह सात बजे से नहरों के पुलों पर तैनात हो सारा दिन आमजन को नहर में कुछ भी न डालने के लिए प्रेरित करते हैं। कई टन प्लास्टिक, मूर्तियां, थैलियां, तस्वीरें पेयजल में जाने से रोककर स्वच्छ पेयजलापूर्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं। ज्यादातर लोग इनके आग्रह को स्वीकार कर पूजा से जुड़े ऐसे सामान नहरों में डालने की बजाय नहर पर बनाए गए स्थल विशेष पर रख देते हैं। लेकिन जागरूकता की कमी में कई लोग आंख बचाकर नहरों में ही सामग्री प्रवाहित करते हैं।

मिशन के सदस्यों के प्रयास

सुनो नहरों की पुकार मिशन के सदस्य रोहतक के नजदीक दोनों नहरों बीएसबी व जेएलएन पर हाथों में पट्टियां लेकर दिल्ली बाईपास के नजदीक पुल पर, बोहर गांव के पुल पर, सेक्टर एक के पुल पर व ओमेक्स सिटी के साथ लगते पुल पर लोगों को सामग्री व प्लास्टिक को नहरों में न डालने को लेकर जागरूक करते हैं, जिनमें महिलाएं भी हैं और पुरुष भी।

जागरूकता कैंप

सुनो नहरों की पुकार मिशन के सदस्य लोगों को जागरूक करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। किसी का जन्म दिवस हो तो स्वास्थ्य व रक्तदान कैंप लगाते हैं। पौधरोपण भी करते हैं। इन कैंपों में समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों व संत समाज के लोगों को आमंत्रित किया जाता है। वहीं, एनएसएस कैंप, नुक्कड़ नाटकों व स्कूल-कॉलेजों में जाकर जल संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाता है। जल के महत्व को समझाते हुए जल के सभी स्रोतों को साफ रखने उनमें कोई भी ऐसा सामान प्रवाहित न करने के लिए प्रेरित करते हैं। मिशन से जुड़े साइकिलिस्ट मुकेश नैनकवाल अब तक करीब 2000 किलोमीटर साइकिल चलाकर लोगों को जल संरक्षण के प्रति जागरूक कर चुके हैं। सुनो नहरों की पुकार मिशन के सदस्य डॉ. रविंद्र नांदल अब तक स्कूलों में जाकर करीब एक लाख विद्यार्थियों को पानी बचाने की शपथ दिला चुके हैं। कृषि अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त डॉ. नांदल स्कूलों और कॉलेजों में पहुंचकर विद्यार्थियों व स्टाफ सदस्यों को पानी बचाने और प्रदूषित न करने के प्रति जागरूक करते हैं। वहीं त्योहारों व नवरात्र पर नहर विभाग के अधिकारी भी साथ देते हैं।

ये सामान प्रवाहित करते हैं लोग

डॉ. जसमेर सिंह के मुताबिक, यहां सामान बहाने वालों में कई तरह के लोग शामिल हैं। इनमें ऐसे भी हैं जिनकी शादी नहीं हो रही होती तो वे शृंगार के सामान के साथ -साथ नए अंग वस्त्र व दूल्हे का सेहरा तक नहर में डालने आ जाते हैं। कई लोग अपने बीमार परिजनों के वजन के बराबर कोयला तुलवाकर नहर में डालने के लिए लाते हैं। डॉ. जसमेर बताते हैं कि तीन वर्ष में उन्होंने नहर से 200 से अधिक प्रकार का सामान निकाला है। अंधविश्वास इतना कि नहर में बहाने के लिए प्लास्टिक की थैलियां भर-भर कर लाते हैं। कोई शहद की बोतल लेकर आ रहा है तो कोई हल्दी की गांठ। कोई पतासे लेकर आ रहा है तो कोई तिल। कई लोग मांस लेकर आते है तो कई लोग तो‌ पुरानी झाड़ू, अधजली बीड़ी व सिगरेट भी थैली भरकर नहर में डालने के लिए ले आते हैं। वहीं चावल, चीनी, दूध , मिठाइयां, रेवड़ी, सब्जियां, ड्राई-फ्रूट, शराब, सरसों का तेल, कपड़े, तिल, जौ, कई अनाज, फ्रूट लाते हैं। हवन सामग्री की राख के साथ वे खाली रैपर तो डालते ही हैं। विडंबना यह कि समाज के अभिजात्य वर्ग के पढ़े-लिखे लोग कांच व प्लास्टिक से बनी देवी देवताओं की तस्वीरें, और उससे संबंधित सामान, प्लास्टिक व अन्य सामग्री से बने मंदिर, कोयला, सिंदूर, शराब के अलावा मृतकों के कपड़े, पुरानी दवाइयां, एक्स-रे व एमआरआई फिल्म, भंडारे की जूठन, पत्तल, दोने, प्लास्टिक डिस्पोजल सामान, घरेलू कूड़ा, बिजली की लड़ियां आदि बहुत सी ऐसी खतरनाक वस्तुएं हैं जो सब नहरों में फेंकी जाती हैं। वहीं शादी के कार्ड, शगुन के लिफाफे व बही-खाते तक नहरों में डाले जाते हैं। इसके अलावा धार्मिक ग्रंथ भी नहरों में प्रवाहित कर देते हैं। उनके पास छोटी धार्मिक पुस्तकों के अलावा 100 से ज्यादा बड़े ग्रंथों का संग्रह हो चुका है जिनमें रामचरितमानस व भगवद्गीता भी शामिल हैं।

नहर में पड़ी गंदगी देखकर मिली सीख

डॉक्टर जसमेर सिंह जिले के गांव रुड़की के निवासी हैं। करीब 3 वर्ष पूर्व रोहतक से गांव आते-जाते वक्त पुल पर लोगों को फूल व राख आदि प्रवाहित करते देखते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति सामान से भरी दो-तीन प्लास्टिक की थैलियां लेकर आया और नहर में फेंक दी। डॉक्टर जसमेर ने उसे टोकते हए कहा कि कम से कम प्लास्टिक की थैली तो निकाल लेते, इस नहर का पानी ही हम सबके घर में पेयजल के रूप में सप्लाई होता है। जसमेर बताते हैं कि उस समय नहर बंद थी। उन्होंने नीचे झांक कर देखा तो नहर में गंदगी के अंबार लगे हुए थे। उन्होंने उसी समय कुछ प्लास्टिक की थैलियों को खोलकर देखा तो हैरान रह गए। किसी थैली में कपड़े भरे हुए थे किसी में नारियल चुनरी तो किसी में सिंदूर, सीसा व शृंगार का सामान। सारा सामान ऐसा था जो पानी में घुलकर भयंकर बीमारियों को जन्म देता है। उन्होंने उसी दिन से लोगों की काउंसलिंग शुरू कर दी। फेसबुक व व्हाट्सएप आदि सोशल मीडिया के जरिये लोगों को नफा-नुकसान समझाते हुए जागरूक करना शुरू कर दिया। करीब 10 दिन बाद उन्होंने ‘सुनो नहरों की पुकार’ स्लोगन लिखी पट्टी लेकर दिल्ली बाईपास स्थित जवाहरलाल नेहरू नहर पर खड़े होकर लोगों को जागरूक करना शुरू दिया।

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