For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

वायनाड त्रासदी

06:23 AM Aug 01, 2024 IST
वायनाड त्रासदी
Advertisement

केरल के वायनाड जनपद स्थित कई इलाकों में मंगलवार की रात्रि में भूस्खलन की कई घटनाओं में डेढ़ सौ से अधिक लोगों की मौत और सैकड़ों की गुमशुदगी निश्चित रूप से एक बड़ी मानवीय त्रासदी है। देर रात आई आपदा ने जन-धन की हानि को बढ़ाया है। भूस्खलन से उपजी बड़ी मानवीय त्रासदी इस बात का प्रमाण है कि प्राकृतिक रौद्र को बढ़ाने में मानवीय हस्तक्षेप की भी बड़ी नकारात्मक भूमिका रही है। भूस्खलन और उसके बाद तेज बारिश से राहत व बचाव के कार्यों में बाधा आने से फिर स्पष्ट हुआ है कि कुदरत के रौद्र के सामने आज भी सारी मानवीय व्यवस्था बौनी साबित होती है। ऐसी आपदाएं हमें सबक देती हैं कि भले ही हम कुदरत का कोहराम न रोक सकें लेकिन जन-धन की हानि को कम करने के प्रयास जरूर किये जा सकते हैं। वायनाड के इलाके में तमाम केंद्रीय व राज्य की एजेंसियां तथा सेना राहत-बचाव कार्य में जुटी हैं। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया जा रहा है और विस्थापितों को राहत शिविरों में पहुंचाया जा रहा है। साथ ही लापता लोगों को तलाशने का काम युद्ध स्तर पर जारी है। हालांकि, तेज बारिश व विषम परिस्थितियों से राहत कार्य में बाधा पहुंच रही है। प्रथम दृष्टया इस तबाही को एक प्राकृतिक आपदा के रूप में वर्णित किया जा रहा है, लेकिन जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील इलाके और वन क्षेत्र को लगातार हुए नुकसान जैसे कारकों के प्रभाव को भी नकारा नहीं जा सकता। उल्लेखनीय है कि बीते वर्ष भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा जारी भूस्खलन के मानचित्र के अनुसार भारत के भूस्खलन की दृष्टि से सबसे अधिक संवेदनशील जिलों में दस जिले केरल में स्थित हैं। जिसमें वायनाड 13वें स्थान पर हैं। वर्ष 2021 के एक अध्ययन के अनुसार केरल में सभी भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील इलाके पश्चिमी घाट में स्थित हैं। जिसमें इडुक्की, एर्नाकुलम, कोट्टायम, वायनाड, कोझिकोड और मलप्पुरम जिले शामिल हैं। जाहिर है इस चेतावनी को तंत्र ने गंभीरता से नहीं लिया।
दरअसल, यही वजह है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता और वायनाड के पूर्व सांसद राहुल गांधी ने केंद्र सरकार से पश्चिमी घाट के पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति को रोकने के लिये एक कार्ययोजना तैयार करने का आग्रह किया है। निस्संदेह, मौजूदा परिस्थितियों में जरूरी है कि विभिन्न राज्यों में ऐसी आपदाओं से बचाव की तैयारी करने और निपटने के लिये तंत्र को बेहतर ढंग से सुसज्जित करने के तौर-तरीकों पर भी युद्धस्तर पर काम किया जाए। यदि ऐसी आपदाओं से बचाव के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित कर ली जाती है तो जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकता है। विडंबना है कि केरल के मामले में ऐसा नहीं हो पाया है। इसमें दो राय नहीं कि हाल के वर्षों में देश में आपदा प्रबंधन की दिशा में प्रतिक्रियाशील तंत्र सक्रिय हुआ है और जान-माल की क्षति को कम करने में कुछ सफलता भी मिली है, लेकिन इस दिशा में अभी बहुत कुछ करना बाकी है। इसके साथ ही पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास और पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रभाव के बारे में विशेषज्ञों की चेतावनियों पर ध्यान देने की जरूरत है। जिसके लिये राज्य सरकारों की सक्रियता, उद्योगों की जवाबदेही और स्थानीय समुदायों की जागरूकता की जरूरत है। वायनाड की त्रासदी का बड़ा सबक यह है कि हमें प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण ढंग से इस्तेमाल के प्रति नये सिरे से प्रतिबद्ध होना होगा। लेकिन विडंबना यह है कि विगत के वर्षों में वायनाड में कई बार हुई भूस्खलन की घटनाओं को राज्य शासन ने गंभीरता से नहीं लिया है। यह अच्छी बात है कि सभी राजनीतिक दलों व केंद्र तथा राज्य सरकार ने आपदा के प्रभावों से मुकाबले में एकजुटता दिखायी है। हालांकि, विषम परिस्थितियों व मौसम की तल्खी के कारण नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी प्रभावित इलाकों में नहीं पहुंच पाए, लेकिन आपदा पीड़ितों के राहत, बचाव के लिये देश व तंत्र की एकजुटता निश्चित ही पीड़ितों का मनोबल बढ़ाएगी।

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
×