प्रेरक प्रसंगों से जीने की राह
कमलेश भारतीय
पुस्तक : 108 गुण, 324 लघुकथाएं संपादक : चंद्र भानु आर्य प्रकाशक : न्याणती शिक्षा कल्याण समिति, दिल्ली पृष्ठ : 296 मूल्य : रु. 200.
पंचतंत्र की कथाएं एक राजा के राजकुमारों के लिए लिखी गयी और कही गयी प्रेरक व ज्ञान देने वाली रचनाएं थीं। चंद्र भानु आर्य द्वारा प्रस्तुत 108 गुण : 324 लघुकथाएं पुस्तक का मिजाज व तेवर कुछ-कुछ पंचतंत्र से मिलता-जुलता है। इनके रचनाकार पहले ‘हम भी ऐसे जीना सीखें’ व ‘हंसते हुए तुम’ जैसी पुस्तकें अर्पित कर चुके हैं।
वह कहानी लेखन सहित पांच पुस्तकें संपादित कर चुके हैं। उन्हें शिक्षण का लम्बा अनुभव है। वह न्यामती जैसी पत्रिका का संपादन भी करते हैं।
इस पुस्तक में मनुष्य के विभिन्न 108 गुणों की छोटी-छोटी व्याख्या के बाद उसी गुण से जुड़ी प्रेरक लघुकथाएं संयोजित की हैं जो नयी पीढ़ी को राह दिखाने में सफल रही हैं। पर इन्हें लघुकथाएं कहने में संकोच हो रहा है। ये प्रेरक रचनाएं या प्रसंग हैं, लघुकथाएं नहीं। वैसे संपादक चंद्र भानु आर्य भी स्वयं स्पष्ट करते हैं कि दैनिक ट्रिब्यून सहित कुछ समाचारपत्रों में ये बोधकथा, प्रेरक प्रसंग और प्रतीकात्मक उपदेशों के रूप में प्रकाशित होती रही हैं।
हम भी ऐसे जीना सीखें मूलतः जीने की राह के अंतर्गत बचे प्रसंगों का ही संकलन है। खुशी की बात है कि चंद्र भानु आर्य न कोई विमोचन करवाते हैं और न हो कोई प्रचार। इनकी पुस्तकें अपने सारगर्भित विषय व प्रस्तुति से हजारों की संख्या में पाठकों तक पहुंचती हैं।
इस सफलता के बावजूद मेरा निवेदन है कि इन्हें लघुकथाएं न कहा जाये। ये बहुत प्रेरक प्रसंग हैं और पंचतंत्र की परम्परा को आगे बढ़ाते हैं। कहा भी है कि ये कल, आज और कल की तीनों पीढ़ियों से मिलने का मनभावन प्रयास है। इन्हें इसी रूप में स्वीकार किया जाये।
पुस्तक की प्रिंटिंग और प्रस्तुतीकरण बेहद सुंदर व आकर्षक है। ये वास्तव में युवा पीढ़ी की आंख खोलने वाले प्रसंग हैं।