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हवा से पानी निकलेगा नमी से बिजली बनेगी

08:24 AM Jan 28, 2024 IST

मुकुल व्यास
हवा से पानी संचित करने और बिजली बनाने का विचार कुछ अजीबोगरीब लगता है लेकिन दुनिया के वैज्ञानिक इस दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं। दुनिया की आबादी के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध कराना एक बहुत बड़ी चुनौती है। पृथ्वी पर सिर्फ 3 प्रतिशत पानी स्वच्छ है, जिसमें से 2.5 प्रतिशत पानी ग्लेशियरों, ध्रुवीय बर्फीली टोपियों, वायुमंडल और मिट्टी में कैद है। सिर्फ 0.5 प्रतिशत जल ही स्वच्छ जल के रूप में उपलब्ध है। अब बदलती जलवायु और बढ़ते प्रदूषण ने कई लोगों के लिए स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता को और कम कर दिया है। दुनिया में 2.2 अरब से अधिक लोग पानी की कमी वाले देशों में रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि हर साल 35 लाख लोग पानी से संबंधित बीमारियों के कारण अपनी जान गंवाते हैं। ऐसे में पानी को आसानी से उपलब्ध कराने वाली तकनीक समय की मांग है।

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वायुमंडलीय जल संचयन तकनीक

बेहतर पेयजल की सबसे अधिक आवश्यकता दुनिया के उन क्षेत्रों में है जहां सबसे ज्यादा धूप पड़ती हैं। यही वजह है कि स्वच्छ पानी प्राप्त करने के लिए कुछ वैज्ञानिक सूर्य के प्रकाश का उपयोग करना चाहते हैं। खारे पानी को स्वच्छ जल में बदलने के लिए अलवणीकरण संयंत्र उन क्षेत्रों में संभव हैं जो तटों के करीब हैं लेकिन दूरदराज के शुष्क क्षेत्रों में जहां पानी की भारी कमी है, हवा में मौजूद वाष्प ताजे पानी का एकमात्र स्रोत है। चीन में शंघाई जिओ टोंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक नई सौर ऊर्जा संचालित वायुमंडलीय जल संचयन तकनीक विकसित की है जो शुष्क क्षेत्रों में लोगों को जीवित रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में पीने का पानी उपलब्ध कराने में मदद कर सकती है। शोधकर्ताओं ने एप्लाइड फिजिक्स रिव्यूज़ पत्रिका में इस तकनीक का ब्योरा दिया है। अध्ययन के प्रमुख लेखक रूझू वांग का कहना है कि इस वायुमंडलीय जल संचयन तकनीक का उपयोग घरेलू पेयजल, औद्योगिक पानी और शरीर की साफ़-सफाई के लिए पानी की दैनिक जल आपूर्ति बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।

हाइग्रोस्कोपिक जेल से जल उत्पादन

वायुमंडल से पानी निकालना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए विज्ञानी हाइड्रोजेल पॉलिमर और नमक का उपयोग करते हैं। लेकिन शोधकर्ताओं को हाइड्रोजेल में नमक प्रविष्ट करते समय कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है क्योंकि नमक का अधिक अंश हाइड्रोजेल के फूलने की क्षमता को कम कर देता है। इससे नमक का रिसाव होता है और हाइड्रोजेल की पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है। शोधकर्ताओं ने नए प्रयोग में पाया कि जब 1 ग्राम पॉलिमर में 5 ग्राम तक नमक डाला गया, तो जेल अच्छी तरह से फूल गया और उसमें नमक को ग्रहण करने के गुण बने रहे। शोधकर्ताओं ने पौधों से निकले पदार्थों और लवणों का उपयोग करके एक सुपर हाइग्रोस्कोपिक जेल का संश्लेषण किया जो बड़ी मात्रा में पानी को अवशोषित करने और उसे बनाए रखने में सक्षम था। ध्यान रहे कि हाइग्रोस्कोपिक जेल में वायुमंडल की नमी से पानी एकत्र करने की क्षमता होती है। एक किलोग्राम सूखा जेल शुष्क वायुमंडलीय वातावरण में 1.18 किलोग्राम पानी और आर्द्र वायुमंडलीय वातावरण में 6.4 किलोग्राम तक पानी सोख सकता है। जेल तैयार करने में सरल और सस्ता था व बड़े पैमाने पर तैयार करना संभव है। नई तकनीक जल उत्पादन के अलावा भविष्य के अनुप्रयोगों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इनमें नमी घटाना,कृषि सिंचाई आदि शामिल है।

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हवा से बिजली बनाने की नैनो तकनीक

वैज्ञानिकों ने हवा से बिजली प्राप्त करने का तरीका भी खोजा है। एक नए अध्ययन के अनुसार छोटे छिद्रों से ढका हुआ कोई भी पदार्थ हवा की नमी से ऊर्जा प्राप्त कर सकता है। अमेरिका में एमहर्स्ट स्थित मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी के इंजीनियरों ने हवा से बिजली प्राप्त करने के लिए एक नैनो तकनीक विकसित की है। इस तकनीक से 100 नैनोमीटर से कम व्यास वाले अत्यंत सूक्ष्म छिद्रों (नैनोपोर) वाली किसी भी सामग्री का उपयोग लगातार बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है। एक नैनोमीटर एक मीटर का अरबवां हिस्सा होता है। इस आविष्कार में दो इलेक्ट्रोड और पदार्थ की एक पतली परत शामिल है। इस पदार्थ पर 100 नैनोमीटर से कम व्यास वाले छोटे छिद्रों का आवरण होना चाहिए। इस उपकरण में पानी के मॉलिक्यूल ऊपरी चैंबर से निचली चैंबर तक गुजरते हैं। इस प्रक्रिया में वे छोटे छिद्रों के किनारों से टकराते हैं। इससे चैंबरों के बीच विद्युत चार्ज का असंतुलन पैदा होता है। यह उपकरण बैटरी की तरह काम करता है। यह समूची प्रक्रिया बादलों द्वारा बिजली पैदा करने के तरीके से मिलती है। इंजीनियरों ने इस तकनीक का नाम ‘जेनेरिक एयर-जेन इफेक्ट’ रखा है। इस तकनीक का उपयोग बड़े स्तर पर किया जा सकता है।
इस तकनीक से विभिन्न पदार्थों के जरिये कम लागत पर निर्बाध विद्युत उत्पादन किया जा सकता है। एडवांस्ड मटेरियल्स पत्रिका में प्रकाशित इस रिसर्च के प्रमुख लेखक, शियाओमेंग लियू ने कहा कि इस रोमांचक तकनीक ने हवा की नमी से स्वच्छ और टिकाऊ बिजली के उत्पादन के लिए एक बड़ा दरवाजा खोल दिया है।

सूक्ष्म छिद्रों वाली परत है जरूरी

रिसर्चरों ने प्रयोगशाला में एक छोटे पैमाने पर बादल निर्मित किया जो निरंतर बिजली पैदा करता है। इस मानव निर्मित बादल का मुख्य आधार ‘जेनेरिक एयर-जेन इफेक्ट’ है। नई रिसर्च याओ और सह-लेखक डेरेक लोवली द्वारा 2020 में की गई रिसर्च का ही विस्तार है। पिछली रिसर्च में दिखाया गया था कि जियोबैक्टर बैक्टीरिया से उगाए गए प्रोटीन के सूक्ष्म तारों से बनी एक विशेष सामग्री का उपयोग करके हवा से बिजली प्राप्त की जा सकती है। इस खोज के बाद वैज्ञानिकों ने महसूस किया कि हवा से बिजली उत्पन्न करने की क्षमता सामान्य हो सकती है। दूसरे शब्दों में कोई भी सामग्री हवा से बिजली पैदा कर सकती है बशर्ते उसमें कोई गुण हो। यहां गुण से अभिप्राय पदार्थ में सूक्ष्म छिद्रों की मौजूदगी से है। ये छिद्र 100 नैनोमीटर से छोटे या मानव बाल की चौड़ाई के एक हजारवें हिस्से से कम होने चाहिए।
याओ और उनके सहयोगियों ने महसूस किया कि वे इस संख्या के आधार पर एक बिजली हार्वेस्टर डिजाइन कर सकते हैं। यह हार्वेस्टर 100 नैनोमीटर से छोटे सूक्ष्म छिद्रों से युक्त सामग्री की एक पतली परत से बनाया जाएगा। हार्वेस्टर को वस्तुतः सभी प्रकार की सामग्री से डिजाइन किया जा सकता है। अधिक नमी वाले वर्षावन वातावरण और कम नमी वाले शुष्क वातावरण के लिए अलग-अलग हार्वेस्टर बनाए जा सकते हैं। चूंकि वातावरण में नमी हर समय मौजूद रहती है,ये हार्वेस्टर चौबीसों घंटे काम कर सकते हैं। पूरी पृथ्वी नमी की मोटी परत से ढकी हुई है। यह नमी स्वच्छ ऊर्जा का एक बहुत बड़ा स्रोत बन सकती है।
-लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

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