रिश्तों में गर्मजोशी
पिछले साल के अंत में जब नेपाल की राजनीति में हुए नाटकीय घटनाक्रम के बाद कम्युनिस्ट नेता पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो कयास लगाये जा रहे थे कि अब नेपाल पूरी तरह चीन के प्रभाव में जा सकता है। इसकी वजह लंबे समय से भारत के खिलाफ नेपाल से चलाया जा रहा अभियान भी था। अब जब प्रचंड ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के रूप में भारत को चुना तो कई आशंकाओं पर विराम लगा। फिर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जिस गर्मजोशी से उनकी मुलाकात हुई और महत्वपूर्ण समझौतों को अंतिम रूप दिया गया, उससे दोनों देशों के रिश्ते फिर से पटरी पर आते दिखे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मुलाकात में सीमा विवाद और अग्निवीर जैसे विवादास्पद विषयों से परहेज किया गया। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी का बयान कि दोनों देश अपने संबंधों को हिमालय की ऊंचाई तक ले जाएंगे, भविष्य को लेकर नई उम्मीद जगाता है। कहना अतिरंजित होगा कि दोनों देशों के रिश्ते इस यात्रा से हिट-सुपरहिट हो गये, लेकिन रिश्तों पर जमी अविश्वास की बर्फ किसी हद तक पिघली जरूर है। दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच ऊर्जा, व्यापार व परिवहन को लेकर हुए समझौते नई उम्मीद जगाते हैं। निस्संदेह, भारत व नेपाल के बीच सदियों से सामाजिक, आर्थिक व समृद्ध सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। कहा जा सकता है कि दोनों देशों में रोटी-बेटी का रिश्ता रहा है। प्रचंड की हालिया भारत यात्रा के दौरान हुए महत्वपूर्ण समझौतों ने उन्हीं संबंधों को नये सिरे से ऊर्जा प्रदान की है। जो निश्चित रूप से द्विपक्षीय रिश्तों को नये आयाम देगी। निश्चय ही कुछ समय से रिश्तों में चली आ रही तल्खी पर अब विराम लग सकेगा। नेपाल के साथ भारत की लंबी सीमा लगती है और देश के पांच राज्य उससे प्रभावित होते हैं। कुछ राजनीतिक पंडित इस गर्मजोशी के मूल में नेपाल से सटे राज्यों में आगामी आम चुनाव में लाभ लेने की मंशा भी जताते हैं।
बहरहाल, दक्षिण एशिया में शांति के दृष्टिगत दोनों देशों के मधुर संबंध वक्त की जरूरत भी हैं। हाल के वर्षों में दोनों देशों के संबंधों में आई खटास को दूर करना भी बेहद जरूरी था क्योंकि चीन इस स्थिति का लाभ उठाने का कोई मौका नहीं चूकना चाहता है। वह नेपाल की अंदरूनी राजनीति में लगातार हस्तक्षेप करता रहा है। उसकी शह पर ही नेपाल में यह कुप्रचार किया जाता रहा है कि भारत उसके कई इलाकों पर कब्जा करना चाहता है। वहीं दूसरी ओर कई विकास परियोजनाओं में चीन की लगातार बढ़ती भागीदारी भी भारत की चिंता का विषय रहा है। बहरहाल, मतभेद व मनभेद को दूर करके आपसी सामंजस्य व सौहार्द के जरिये दोनों देशों में रिश्ते मजबूत करने के हालिया प्रयासों के दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं। निश्चय ही संवाद से ही दोनों देशों के संबंध बेहतर हो सकते हैं। साथ ही क्षेत्र में समृद्धि और शांति की राह प्रशस्त हो सकती है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के चलते नेपाल में पन बिजली उत्पादन की अपार संभावनाओं के मद्देनजर भारत ने नई परियोजनाओं में सहयोग का वायदा किया है। भारत ने केवल नेपाल से बिजली खरीद रहा है बल्कि नेपाली विदेश नीति को संबल के लिये देश के माध्यम से बांग्लादेश को बिजली आपूर्ति में सहयोग भी करेगा। इससे तीनों देशों के संबंधों को संबल मिलेगा। यही वजह है कि प्रचंड ने नरेंद्र मोदी की ‘पहले पड़ोसी’ की नीति को सराहा है। निश्चित रूप से इस बार की प्रचंड की भारत यात्रा के दौरान नेपाल के लिये भारतीय कार्गो ट्रेन की शुरुआत, मोतिहारी से नेपाल में अमेलखगंज तक तेल पाइपलाइन, इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट, व्यापार सुगमता के लिये डिजिटल भुगतान समझौते दोनों देशों के संबंधों को नई ऊंचाई देंगे। वहीं बिजली उत्पादन के लिये दीर्घकालीन समझौता दूरगामी सोच का विस्तार है। दूसरी ओर दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों को नई ऊंचाई देने के लिये रामायण सर्किट योजना पर प्रचंड की सहमति दोनों देशों के लिये शुभसंकेत ही है। जाहिर है दोनों देशों के दीर्घकालीन हितों की पूर्ति के लिये रिश्तों की यह गर्मजोशी बेहद जरूरी है।