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गर्मजोशी के रिश्ते

07:58 AM Sep 13, 2023 IST

दिल्ली में संपन्न जी-20 शिखर वार्ता की सफलता से भारत ने खूब वाहवाही पायी। वहीं सम्मेलन की समाप्ति के बाद राजकीय यात्रा पर भारत आए सऊदी क्राउन प्रिंस की उपस्थिति में तमाम समझौते इस सम्मेलन के एक बोनस की तरह हैं। सऊदी अरब के साथ भारत के रिश्ते सदाबहार रहे हैं। लेकिन निवेश व अन्य मोर्चों पर साझेदारी ने रिश्तों को और गहराई दी है। वास्तव में हाल के वर्षों में प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच जो निकटता बढ़ी है, उसका प्रभाव अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति पर भी नजर आया है। हाल के दिनों में अमेरिका से सऊदी अरब के रिश्तों में खटास जगजाहिर है। जी-20 सम्मेलन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन व प्रिंस सलमान के मिले हाथों को थामे प्रधानमंत्री के हाथों वाला चित्र अंतर्राष्ट्रीय राजनय में चर्चा का विषय रहा। बहरहाल, भारत और सऊदी अरब के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता के ठोस परिणाम सामने आए। इस दौरान सार्वजनिक उपक्रमों व निजी क्षेत्रों के बीच पचास महत्वपूर्ण समझौते हुए। हाल के दिनों में जहां भारत से सऊदी अरब को निर्यात बढ़ा, वहीं आयात में भी खासी वृद्धि हुई। ऐसे दौर में जब कोरोना संकट व रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया की अर्थव्यवस्था हिचकोले खा रही है। इससे पहले भी जब 2019 में प्रिंस सलमान भारत आए थे तो उन्होंने सौ अरब डॉलर का निवेश करने की घोषणा की थी। अब इस दिशा में साझा टास्क फोर्स बनाने की घोषणा दिल्ली वार्ता में हुई है। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी खाड़ी देशों से बेहतर संबंध बनाने को अपनी प्राथमिकता देते रहे हैं। वे पिछले कुछ वर्षों में दो बार सऊदी अरब का दौरा भी कर चुके हैं। निस्संदेह, मध्यपूर्व में एक बड़ी ताकत होने के कारण सऊदी अरब से बेहतर रिश्तों के खास मायने हैं। कहीं न कहीं इस्लामिक देशों पर खासे प्रभाव वाले सऊदी अरब को भारत पाक पर दबाव बनाने वाले सहयोगी के रूप में भी देखता है। जिसके जरिये पाक के निरंकुश व्यवहार पर नकेल कसी जा सके।
हाल के वर्षों में भारत-सऊदी अरब के बीच सालाना व्यापार का पांच हजार करोड़ डॉलर तक पहुंचना दोनों देशों के बीच बेहतर होते रिश्तों की बानगी है। कई बड़ी भारतीय कंपनियों ने पिछले दिनों सऊदी अरब में दो सौ करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश किया। वहीं सऊदी अरब की कंपनियां दो साल पहले तक तीन सौ करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश भारत में कर चुकी थीं। दरअसल, प्रिंस सलमान सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करके उस टैग को हटाना चाहते हैं कि वह सिर्फ तेल से चलने वाली अर्थव्यवस्था है। तभी वे उत्पादन, पर्यटन, तकनीक आदि के क्षेत्र में बड़े निवेश को आमंत्रित करते हुए भारत को एक भरोसेमंद सहयोगी के रूप में देख रहे हैं। भारत भी सऊदी अरब के लिये उभरते बाजार के रूप में निवेश का भरोसेमंद स्थल है। जब भारत विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था से तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की ओर बढ़ने का उद्घोष करता है तो निवेशकों के लिये एक भरोसा पैदा होता है। वहीं दूसरी ओर भारतीय प्रतिभाओं व तकनीशियनों से भी सऊदी अरब को खासी उम्मीद है। जिसके जरिये वह अपने 2030 के विज़न को यथार्थ में बदल सके। जिसमें उसकी महत्वाकांक्षी ‘इको-सिटी’ बसाये जाने की योजना भी शामिल है। यही वजह कि ग्लोबल कम्युनिटी का हिस्सा बनने को आतुर सऊदी अरब भारत जैसे देशों से संबंध मजबूत कर रहा है। इसी कड़ी में महाराष्ट्र में सऊदी अरब के सहयोग से बनने वाला महत्वाकांक्षी ‘वेस्ट कोस्ट रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल्स प्रोजेक्ट’ दोनों देशों के बेहतर होते संबंधों की बानगी है। दूसरी ओर जी-20 सम्मेलन में जब प्रधानमंत्री ने ‘इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर’ की घोषणा की तो इसमें सऊदी अरब की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई। इस प्रोजेक्ट को चीन के ‘बेल्ट एंड रोड परियोजना’ के जवाब के रूप में देखा जा रहा है। बहरहाल, प्रिंस सलमान की वह टिप्पणी सुखद अहसास कराती है जिसमें उन्होंने कहा था कि सऊदी अरब की आबादी का सात फीसदी हिस्सा भारतीयों का है, जिनका वे अपने नागरिकों की तरह ख्याल रखते हैं। निस्संदेह, दोनों देशों के बीच हुए हालिया समझौते संबंधों को नये आयाम देंगे।

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