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Waqf Amendment Act : सुप्रीम कोर्ट ने किया वक्फ कानून पर रोक लगाने से इनकार, हिंसा पर जताई चिंता

02:50 PM Apr 16, 2025 IST
waqf amendment act   सुप्रीम कोर्ट ने किया वक्फ कानून पर रोक लगाने से इनकार  हिंसा पर जताई चिंता
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नई दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा)

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Waqf Amendment Act : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र से पूछा कि क्या मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति दी जाएगी।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि ‘‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ'' को कैसे अस्वीकृत किया जा सकता है, क्योंकि कई लोगों के पास ऐसे वक्फों को पंजीकृत कराने के लिए अपेक्षित दस्तावेज नहीं होंगे।

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‘‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ'' से तात्पर्य ऐसी प्रथा से है, जिसमें किसी संपत्ति को धार्मिक या धर्मार्थ बंदोबस्ती (वक्फ) के रूप में मान्यता उसके ऐसे प्रयोजनों के लिए दीर्घकालिक, निर्बाध उपयोग के आधार पर दी जाती है, भले ही मालिक द्वारा वक्फ की कोई औपचारिक, लिखित घोषणा न की गई हो।

पीठ ने कहा, ‘‘आप उपयोगकर्ता द्वारा ऐसे वक्फ को कैसे पंजीकृत करेंगे? उनके पास कौन से दस्तावेज होंगे? इससे कुछ पूर्ववत हो जाएगा। हां, कुछ दुरुपयोग है। लेकिन वास्तविक भी हैं। मैंने प्रिवी काउंसिल के फैसलों को भी पढ़ा है। उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को मान्यता दी गई है। यदि आप इसे पूर्ववत करते हैं तो यह एक समस्या होगी। विधायिका किसी निर्णय, आदेश या डिक्री को शून्य घोषित नहीं कर सकती। आप केवल आधार ले सकते हैं।'' मेहता ने कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग वक्फ अधिनियम के तहत शासित नहीं होना चाहता।

पीठ ने इसके बाद मेहता से पूछा, ‘‘क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे। इसे खुलकर कहें।'' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब 100 या 200 साल पहले किसी सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया जाता था, तो उसे अचानक वक्फ बोर्ड द्वारा अपने अधीन नहीं लिया जा सकता था और अन्यथा घोषित नहीं किया जा सकता था। पीठ ने कहा, ‘‘आप अतीत को दोबारा नहीं लिख सकते।'' मेहता ने कहा कि संयुक्त संसदीय समिति ने 38 बैठकें कीं और संसद के दोनों सदनों द्वारा इसके पारित होने से पहले 98.2 लाख ज्ञापनों की पड़ताल की।

प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने यह भी कहा कि एक उच्च न्यायालय को इन याचिकाओं पर विचार करने के लिए कहा जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘दो पहलू हैं जिन पर हम दोनों पक्षों से बात करना चाहते हैं। सबसे पहले, क्या हमें इस पर विचार करना चाहिए या इसे उच्च न्यायालय को सौंप देना चाहिए? दूसरा, संक्षेप में बताएं कि आप वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं और क्या तर्क देना चाहते हैं? हम यह नहीं कह रहे हैं कि कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने और निर्णय लेने में सुप्रीम कोर्ट पर कोई रोक है।''

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन अधिनियम का हवाला दिया और कहा कि वह उस प्रावधान को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ कर सकते हैं। सिब्बल ने पूछा, ‘‘सरकार कैसे तय कर सकती है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ करने का पात्र हूं या नहीं?'' उन्होंने कहा, ‘‘सरकार यह कैसे कह सकती है कि केवल वे लोग ही वक्फ कर सकते हैं जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं?''

कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि वक्फ अधिनियम का प्रभाव पूरे भारत में होगा और याचिकाओं को उच्च न्यायालय को नहीं भेजा जाना चाहिए। वक्फ अधिनियम का विरोध करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ करना इस्लाम की एक स्थापित प्रथा है और इसे छीना नहीं जा सकता।

केंद्र ने हाल ही में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अधिसूचित किया, जिसे दोनों सदनों में तीखी बहस के बाद संसद से पारित होने के बाद पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई। राज्यसभा में विधेयक के पक्ष में 128 और विरोध में 95 सदस्यों ने मत दिया। वहीं, लोकसभा में इसके पक्ष में 288 तथा विरोध में 232 वोट पड़े। इस तरह यह दोनों सदनों से पारित हो गया था।

एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), जमीयत उलमा-ए-हिंद, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक), कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद की याचिकाओं सहित 72 याचिकाएं अधिनियम की वैधता को चुनौती देने के लिए दायर की गई हैं। केंद्र ने आठ अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में एक ‘कैविएट' दायर कर मामले में कोई भी आदेश पारित करने से पहले सुनवाई की अपील की थी। किसी पक्ष द्वारा उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में यह सुनिश्चित करने के लिए ‘कैविएट' दायर की जाती है कि उसका पक्ष सुने बिना कोई आदेश पारित न किया जाए।

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