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उम्मीदवार का इंतजार, कांग्रेसियों को सैलजा की दरकार

07:39 AM Mar 28, 2024 IST
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दिनेश भारद्वाज / ट्रिन्यू
सिरसा, 27 मार्च
मौसम में गरमाहट शुरू हो गई है लेकिन चुनावी पारा अभी उफान पर आने में वक्त लेगा। हरियाणा में लोकसभा के चुनाव छठे चरण में होने हैं। ऐसे में राजनीतिक दल भी जल्दबाजी में नहीं हैं। भाजपा पहली ऐसी पार्टी है, जो 10 में से अभी तक 6 सीटों पर अपने प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतार चुकी है। इनमें सिरसा संसदीय सीट भी है। जहां से भाजपा ने मौजूदा सांसद सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर पूर्व सांसद डा. अशोक तंवर पर बड़ा दांव खेला है।
तंवर चूंकि अभी तक सिरसा के रण में अकेले हैं, और चुनावी प्रचार की शुरुआत कर चुके हैं। चुनाव छठे फेज में होने का फायदा भी है। प्रत्याशियों को प्रचार करने का पूरा वक्त मिल सकेगा। चौटाला का गढ़ कहे जाने वाले सिरसा में तंवर के मुकाबले अभी कांग्रेस, इनेलो व जजपा के उम्मीदवार आने हैं।
नज़रें ज्यादा कांग्रेस उम्मीदवार पर हैं। वोटरों में भी उत्सुकता है कि इस बार कांग्रेस किसे रण में उतारती है। चूंकि 2019 में कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ने वाले डा. अशोक तंवर तो खुद के मोर्चे के अलावा दो राजनीतिक दलों का अनुभव हासिल करने के बाद भाजपाई हो चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस का नया चेहरा ही मैदान में आएगा। वैसे सिरसा को पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव कुमारी सैलजा के प्रभाव वाला एरिया भी माना जाता है। वह दो बार यहां से सांसद हर चुकी हैं। वहीं उनके पिता स्व़ चौ़ दलबीर सिंह ने 4 बार सिरसा का संसद में प्रतिनिधित्व किया था।
खेमों में बंटी कांग्रेस में सैलजा के चुनाव लड़ने पर भी दो-राय है। सैलजा समर्थक चाहते हैं कि उन्हें सिरसा से चुनाव लड़ना चाहिए। वहीं हुड्डा खेमे से जुड़े नेता अंदरखाने चाहते हैं कि सैलजा की जगह किसी दूसरे नेता को टिकट दिया जाए। कारण साफ है - अगर सैलजा चुनावी रण में आती है तो यहां के सभी कांग्रेसियों को ग्राउंड पर काम करना होगा। मेहनत करना मजबूरी इसलिए होगी, क्योंकि लोकसभा के करीब 6 महीने बाद विधानसभा के चुनाव भी होने हैं।
आम लोगों व राजनीति से जुड़े लोगों का कहना है - अगर सैलजा सिरसा से चुनावी रण में आई तो यह सीट हॉट हो जाएगी और कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी। मौजूदा सांसद के प्रति एंटी-इन्कमबेंसी के चलते ही भाजपा ने इस बार टिकट बदला है। वैसे खुद सैलजा इस बार लोकसभा की बजाय विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा पहले ही प्रकट कर चुकी हैं।

भाजपा के लिए बंजर रहा है सिरसा

विधानसभा के हिसाब से सिरसा भाजपा के लिए बंजर भूमि की तरह है। 2014 की तरह 2019 में भी सिरसा में ‘कमल’ खिलाने की कोशिशें सिरे नहीं चढ़ पाईं। 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने सिरसा संसदीय क्षेत्र से अच्छे अंतर से जीत हासिल की। इन चुनावों में भाजपा की सुनीता दुग्गल सभी 9 हलकों से लीड लेकर निकलीं लेकिन 6 महीने बाद हुए विस चुनावों में भाजपा महज दो सीटों - फतेहाबाद व रतिया में ही जीत हासिल कर पाई। टोहाना और नरवाना जेजेपी के खाते में गई। सिरसा से हलोपा के गोपाल कांडा चुनाव जीते। रानियां से निर्दलीय चौ. रणजीत सिंह और ऐलनाबाद से इनेलो के अभय चौटाला चुनाव जीते। वहीं कालांवाली से कांग्रेस के शीशपाल केहरवाला और डबवाली से अमित सिहाग ने जीत हासिल की।

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कांग्रेस में चल रहा मंथन

कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि स्क्रीनिंग कमेटी की अभी तक हुई बैठकों में सैलजा का नाम सिरसा की बजाय अंबाला से ही चर्चा में रहा है। वहीं सिरसा के लिए बनाए गए पैनल में कालांवाली विधायक शीशपाल केहरवाला, पूर्व सांसद चरणजीत सिंह रोड़ी और पूर्व मुख्य संसदीय सचिव जरनैल सिंह का नाम बताया जा रहा है। सिरसा से अब पार्टी किस चेहरे पर दांव लगाती है, यह देखना दिलचस्प होगा।

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