For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

लोक संस्कृति के मुखर शब्द चित्र

06:32 AM Jun 23, 2024 IST
लोक संस्कृति के मुखर शब्द चित्र
Advertisement

सत्यवीर नाहड़िया
हरियाणा में प्राचीन काल से ही लोकनाट्य (सांग) परंपरा बेहद समृद्ध रही है। सांग के कथानक को आगे बढ़ाने के लिए जिस काव्य विधा का इस्तेमाल किया जाता रहा है, उसे रागिनी, रागनी या रागणी (राग की रानी) कहा जाता है। रागनी हरियाणवी लोकजीवन में सदा से रची-बसी रही है। समय के साथ रागनी ने अनेक उतार-चढ़ाव भी देखे हैं। कभी किस्सागोई तक सीमित रही लोकगायन की यह सिरमौर विधा अब अपना स्वतंत्र अस्तित्व भी रखती है। माटी की सौंधी महक से सराबोर ‘दुनियांंदारी’ एक ऐसा ही हरियाणवी काव्य संग्रह है, जिसमें पैंसठ विविध विषयी रचनाओं के माध्यम से समृद्ध हरियाणवी लोकसंस्कृति को अनूठे अंदाज में रेखांकित किया गया है।
हरियाणवी मां-बोली के रचनाकार रिसाल जांगड़ा ने इस काव्य संग्रह में भी पर्यावरण संरक्षण, नशा निवारण, तीज-त्योहारों, मेलों-ठेलों, खेत खलिहानों, लोकजीवन, किसी जीवट, नारी महिमा, महापुरुषों से जुड़े विभिन्न प्रेरक-प्रसंगों पर आधारित रोचक रचनाओं को शामिल किया है। धरती मांं नामक रचना में ग्लोबल वार्मिंग व जल संरक्षण पर एक बानगी देखिएगा :- लाग्या ताप बधण धरती का, दरखत मतना काट्टो। आंधाधुंध ना बरतो पाणी,मन लोभी नै डाट्टो।
इस संग्रह की तमाम रचनाओं में हरियाणवी लोक संस्कृति के मुंह बोलते शब्दचित्रों की मौलिकता को महसूस किया जा सकता है। एक ओर जहां रचनाकार ने पाखंड तथा अंधविश्वासों पर जमकर प्रहार किया है, वहीं उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या तथा नशे जैसी सामाजिक बुराइयों के प्रति जागरूकता के दायित्वबोध का निर्वहन भी किया है। ठेठ हरियाणवी लहजा, मुहावरेदार भाषा, कलात्मक प्रासंगिक आवरण इस कृति की अन्य विशेषताएं कही जा सकती हैं।
पुस्तक : दुनियांदारी रचनाकार : रिसाल जांगड़ा प्रकाशक : कुरुक्षेत्र प्रेस, कुरुक्षेत्र पृष्ठ : 104 मूल्य : रु. 200.

Advertisement

Advertisement
Advertisement