सुकोमल अहसासों के जीवंत बिंब
पुस्तक : कहा मन ने लेखिका : कृष्णलता यादव प्रकाशक : आनंद कला मंच प्रकाशन, भिवानी पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 300.
प्रगति गुप्ता
जब भावों और संवेदनाओं से जुड़ी अनुभूतियों के ज्वार अपने चरम पर होते हैं, विविध विधाओं में सृजन होते हैं। कविता संग्रह ‘कहा मन ने’ की लेखिका भी इस बात को स्वीकारती हैं। काव्य कभी सौम्य तो कभी ज्वालामुखी-सा उतरता है, जिसमें कवि विभिन्न भावों से जुड़े अर्थों की खोज करता है। शीर्षक कविता- हो न हो, तलाश है इसे/ अपने प्रियवर की/ ढूंढ़ ही लेगा उसको यह-/ कहा है मन ने और परिंदे ने भर ली/ उडारी जोरदार।
अनेक कविताएं जैसे प्रेम, सच में तुम, कितना अच्छा हो, जीवन में प्रेम और प्रेम में जीवन को तलाशती हैं। सुकून का बोध, शायद किसी ने, गुर क्रांति के, हाशिए के लोग, सेवकाई इत्यादि जैसी कई अभिव्यक्तियों में सर्वहारा वर्ग से जुड़े भाव हैं। आज के जटिल समय में नन्ही के प्रश्न वाजिब हैं- मां सही बताना/ आपके दिनों में भी/ रहा था जमाना/ इतना ही खूंखार?
कवयित्री प्रकृति का चित्रण करते समय मानवीय मूल्यों और दर्शन के रंग भरती हैं। कहा बादल ने, बीज संस्कृति के, ढंग तुम्हारा, श्री-समृद्धि अपनी होगी, पात से, तरल-सरल निधि, प्रकृति से दूर, गति ही जीवन कविताओं के भाव सुंदर है- गुनगुनाते भंवरे और/ आते-जाते वाहन/ बिन बोले शंखनाद/ कर जाते हैं/ गति जीवन है/ ठहराव मृत्यु।
संग्रह में विमर्श और राजनीति से जुड़ी भी अनेक कविताएं और व्यंग्य हैं- खंगालन- प्रक्रिया/ निश्चय ही/... खुद से खुद तक का सफर। बहुरूपिया मन जैसी अन्य कई कविताएं सोचने पर विवश करती हैं। सरल, सहज भाषा में लिखी गई कविताएं पाठकों को पसंद आएंगी।