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श्रीराम-सीता विवाह की याद दिलाती विवाह पंचमी

08:00 AM Dec 02, 2024 IST

चेतनादित्य आलोक
शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को जगत के नायक भगवान श्रीराम और जगत जननी माता सीता का शुभ विवाह उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में संपन्न हुआ था। इसीलिए इस तिथि को प्रत्येक वर्ष ‘विवाह पंचमी’ का विशेष कल्याणकारी पर्व मनाया जाता है। बता दें कि विवाह पंचमी के शुभ अवसर पर भगवान श्रीराम एवं माता सीता का विवाह कराने की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। इस वर्ष विवाह पंचमी पर्व 6 दिसंबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा।

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मनोवांछित फल

उल्लेखनीय है कि प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व प्रायः देश के सभी राज्यों में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भी भक्त इस महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को शुभ मुहूर्त में पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति भाव के साथ जगन्नायक भगवान श्रीराम एवं जगज्जननी माता सीता के विवाह कार्यक्रम का आयोजन कर भगवान की युगल जोड़ी की पूजा-अर्चना और आराधना आदि करते अथवा ब्राह्मण से कराते हैं, उन पर भगवान श्रीराम और माता सीता की कृपा होती है। इसके परिणामस्वरूप उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है तथा उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिन कन्याओं के विवाह में बाधा आ रही हो, उन्हें विवाह पंचमी के दिन श्रीसीताराम का पूजन एवं जानकी मंगल श्रीराम विवाह उत्सव मनाने से सारी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। यही नहीं, विवाह पंचमी पूजन कुंवारी कन्याओं को मनोवांछित वर, स्त्रियों को अखंड सौभाग्य और जनमानस को मनोवांछित फल प्रदान करता है।

श्रीरामचरित मानस की रचना

शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार महान संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने विवाह पंचमी के दिन ही हिंदुओं के महान ग्रंथ श्रीरामचरित मानस की रचना भी पूरी की थी। इसलिए इस शुभ अवसर पर ‘मानस’ का पाठ करने से प्रभु श्रीराम और माता सीता की कृपा प्राप्त होती है तथा पापों से मुक्ति मिलती है। वैसे श्रीरामचरित मानस की एक विशेषता यह भी है कि इसके पठन, गायन अथवा श्रवण करने से भक्त के भय एवं शंका का निवारण होता है। ऐसे में यदि समयाभाव के कारण संपूर्ण ग्रंथ का पाठ अथवा श्रवण करना संभव न हो तो कम-से-कम श्रीरामचरित मानस की कुछ प्रमुख चौपाइयों का पाठ अथवा श्रवण अवश्य करना चाहिए।

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अयोध्या में दिव्य-भव्य आयोजन

गौरतलब है कि विवाह पंचमी को सामान्यतः देशभर के तमाम मंदिरों विशेष रूप से भगवान श्रीसीताराम के मंदिरों को सजा-संवार कर भव्य एवं दिव्य रूप प्रदान किया जाता है। इस दिन मंदिरों में चौबीसों घंटे निरंतर भजन-कीर्तन, ध्यान, यज्ञ और पूजा-पाठ चलता रहता है। वहीं, अयोध्या में प्रत्येक वर्ष विवाह पंचमी का पर्व बड़े ही धूमधाम एवं भक्ति-भाव से मनाया जाता है। इस अवसर पर इन मंदिरों से ‘श्रीराम रथ यात्रा’ भी निकाली जाती है।

विवाह धनुष भंग के अधीन था

भगवान श्रीराम-सीता विवाह से संबंधित धर्मग्रंथों में मौजूद एक प्रसंग के अनुसार भगवान श्रीराम द्वारा शिव जी का धनुष तोड़े जाने के बाद महामुनि विश्वामित्र ने महाराज जनक से कहा था कि यद्यपि सीता का विवाह धनुष भंग के अधीन था और धनुष टूटते ही श्रीसीताराम का विवाह संपन्न हो गया, फिर भी महाराज दशरथ के पास संदेश भेजकर उन्हें बुलाया जाए और विधिवत‌् विवाह संपन्न कराया जाए। तात्पर्य यह है कि वैसे तो भगवान श्रीराम और माता सीता का शुभ विवाह विधिवत‌‌् विवाह पंचमी के दिन संपन्न हुआ था, किंतु वास्तव में जिस दिन भगवान श्रीराम ने भगवान शिव का धनुष तोड़ा था, उसी दिन महाराज जनक की प्रतिज्ञा के अनुसार माता सीता श्रीराम की हो गई थीं।

ब्रह्मादि देव बने साक्षी

कल्पना कीजिए कि जब हमारे सांवरे भगवान श्रीराम और माता जानकी दूल्हा-दुल्हन बने होंगे तो कैसा दिव्य और भव्य दृश्य रहा होगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम दूल्हा और माता सीता दुल्हन बनकर विवाह के बंधन में बंध रहे थे, तो समस्त देवी, देवतागण उस आयोजन के साक्षी बनने के लिए लालायित हो रहे थे। शास्त्रों में वर्णन है कि ब्रह्मदेव अपने चारों मुखों के आठों नेत्रों से, कुमार कार्तिकेय जी अपने सभी बारहों नेत्रों से और देवराज इंद्र अपने समस्त सहस्र नेत्रों से उस दिव्य और भव्य आयोजन को आरंभ से लेकर अंत तक देखे और धन्य हुए थे।

पूजन-विधि

विवाह पंचमी के दिन प्रातः उठकर नित्यकर्म से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण करें। उसके बाद श्रीराम और माता सीता को तिलक लगाकर उन्हें फल-फूल, नैवेद्यादि अर्पित करें। पूजा के दौरान बालकाण्ड में दिए गए विवाह प्रसंग का पाठ करें। संभव हो तो संपूर्ण श्रीरामचरित मानस का पाठ करें। तत्पश्चात सुख-समृद्धि की कामना करते हुए भगवान श्रीराम और माता सीता की आरती करें। पूजा के बाद योग्य ब्राह्मण को दक्षिणादि प्रदान करें एवं दीन-दुखियों को दान करें।

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