सत्य परख की दृष्टि
एक दिन एक शिष्य को सड़क पर पड़ी एक चमकती चीज मिली। उसने उसे अपने गुरु को दिखाकर उनसे पूछा, ‘क्या यह एक असली हीरा है?’ गुरु ने शिष्य से कहा, ‘पुस्तकालय जाओ और हीरों के बारे में जितनी भी जानकारी मिले, पढ़ आओ।’ शिष्य गया, उसने हीरों के बारे में सब कुछ पढ़ डाला और उनकी पर्याप्त जानकारी हासिल कर लौट आया। उसके आने पर गुरु ने कहा, ‘अब मैं यह बता सकता हूं कि तुम्हें सड़क किनारे जो कुछ पड़ा मिला, वह असली हीरा है।’ विस्मित शिष्य बोल पड़ा, ‘कैसी विचित्र बात है! आपने मुझे यह पहले ही क्यों नहीं बता दिया? क्या इसके पीछे कोई वजह है?’ गुरु ने कहा, ‘हां, मैं यह यकीन करता हूं कि किसी को भी नादान नहीं होना चाहिए। तुम्हें हर चीज खुद परखकर देखनी चाहिए। अब जबकि तुम्हें हीरों के बारे में पूरी जानकारी हो चुकी है, तुम इस बात की जांच खुद कर सकते हो कि मैं जो कुछ तुम्हें कह रहा हूं, यह सच है या नहीं। चाहे वह जिंदगी हो या फिर कीमती पत्थर, तुम खुद अपने विशेषज्ञ होने में सक्षम हो। कोई भी तुमसे अधिक अच्छी तरह सत्य को नहीं जानता, बशर्ते तुम्हें यह पता हो कि खुद के वास्तविक स्वरूप के साथ जीने का क्या मतलब होता है।’
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार