किडनी रोगों से बचाएगी सजग-सक्रिय जीवनशैली
देश में किडनी रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। जहां प्राकृतिक जीवनशैली व खानपान संतुलित रखकर इस बीमारी से दूर रह सकते हैं। वहीं लक्ष्णों के प्रति सजग रहकर समय पर टेस्ट करवाते रहने से शुरुआत में इलाज करवाकर नीरोग रहना संभव है। इसी विषय को लेकर नयी दिल्ली स्थित नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. विक्रम कालरा से रजनी अरोड़ा की बातचीत।
बदलती जीवन शैली के चलते कई गंभीर बीमारियां पैर पसारती जा रही हैं जिनमें किडनी डिजीज भी शामिल हैं। आजकल 10 में से 1 व्यक्ति किडनी की किसी न किसी बीमारी का शिकार हो रहा है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, दुनिया में करीब 85 करोड़ लोग किडनी की बीमारी से जूझ रहे हैं। हर वर्ष करीब 30 लाख लोगों की मौत भी हो जाती है। प्रारंभिक स्तर पर ही इलाज शुरू कर दिया जाए तो इसे खराब होने से बचाया जा सकता है।
शरीर में किडनी की भूमिका
किडनी से जुड़ी बीमारियां
मरीज की स्थिति के हिसाब से किडनी बीमारी कई तरह की होती हैं जैसे एक्यूट किडनी फैल्योर : अनावश्यक रूप से दर्द निवारक दवाइयों का सेवन करने, एलर्जी के चलते यह बीमारी ज्यादा होती है। इसमें किडनी अचानक काम करना बंद कर देती है। लेकिन एक्यूट किडनी फैल्योर पर उपचार और डायलिसिस से काबू पा सकते हैं। क्रॉनिक किडनी फेल्योर : डायबिटीज, ब्लड प्रेशर के मरीज क्रॉनिक किडनी फैल्योर का शिकार होते है। इसमें किडनी धीरे-धीरे खराब हो जाती है और दुबारा ठीक नहीं हो पाती। ब्लड में क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड बाहर न निकलकर शरीर में स्टोर होना शुरू हो जाते हैं। जिससे किडनी फैल्योर हो जाता है। किडनी स्टोन : किडनी में यूरिक एसिड जमा होने लगता है जो धीरे-धीरे स्टोन का रूप ले लेता है। नेफ्रोटिक सिंड्रोम : इसमें यूरिन में प्रोटीन का रिसाव होने से शरीर में प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है और कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ जाता है। अंगों में सूजन आ जाती है और किडनी फेल्योर का खतरा रहता है। यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन : यूरिन रुक-रुक कर आता है और जलन भी होती है।
ये माने जाते हैं कारण
आरामपरस्त जीवनशैली, गलत खानपान व आदतें किडनी खराब होने के लिए जिम्मेदार होती हैं। इनसे किडनी पर भी दबाव पड़ता है, किडनी की कार्यक्षमता प्रभावित होती है और खराब भी हो जाती है। वहीं हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारी में नसों पर दबाव पड़ता है जिससे किडनी अचानक काम करना बंद कर सकती है। ऐसे ही आनुवंशिक, पॉलिसिस्टिक किडनी , किडनी डिस्प्लेसिया, यूटीआई जैसे कारणों से भी किडनी काम ठीक से नहीं कर पाती। शरीर में नमक-चीनी का लेवल बढ़ने से भी किडनी को नुकसान होता है। वहीं खाने में ऊपर से नमक डालना भी किडनी खराब कर सकता है। आहार में ज्यादा प्रोटीन , प्रोटीन सप्लीमेंट्स का सेवन, स्टेरॉयड या दर्दनिवारक दवाइयों का अधिक प्रयोग, कम तरल पदार्थ लेना, यूरिन रोके रहना, व्यायाम न करना, एल्कोहल या तंबाकू का सेवन करना भी किडनी की सेहत बिगाड़ते हैं।
किडनी में रोग के लक्षण
प्राइमरी स्टेज में आमतौर पर किडनी खराब होने के लक्षण पकड़ में नहीं आते। फिर भी कुछ लक्षण किडनी में गड़बड़ी का इशारा करते हैं, जिनसे सचेत हो कर डॉक्टर को कंसल्ट करना चाहिए। इन लक्षणों में शरीर के विभिन्न हिस्सों में सूजन आना जैसे-चेहरे, पैर और टखनों में, कमजोरी, थकान व एकाग्रता की कमी, भूख कम लगना, पेट में जलन-दर्द, घबराहट रहना, मांसपेशियों में खिंचाव और ऐंठन होना, कमर के नीचे दर्द होना, बार-बार यूरिन पास करने की इच्छा या यूरिन रुक-रुक कर आना, यूरिन के साथ ब्लड आना व रात में बार-बार यूरिन पास करना आदि शामिल हैं।
जांच के तरीके
डॉक्टर मरीज का ब्लड प्रेशर और किडनी की कार्यप्रणाली की जांच करते हैं। इसके लिए मरीज के ये टेस्ट किए जाते हैं-किडनी की फिल्टर क्षमता को जांचने के लिए ग्लोमेरूलर फिल्टरेशन रेट (जीआरएफ) टेस्ट, ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट, अल्ट्रासाउंड, बॉयोप्सी।
ऐसे होता है उपचार
मरीज और रोग की स्थिति के हिसाब से उपचार किया जाता है। डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर को पहले नियंत्रित किया जाता है। एक्यूट किडनी फैल्योर के मरीज का उपचार अगर सही समय पर शुरू कर दिया जाता है, तो दवाइयों की मदद से मरीज जल्दी ठीक हो सकता है। लेकिन अगर किडनी 90 फीसदी से ज्यादा खराब हो चुकी है, तो मरीज को डायलिसिस पर रखा जाता है। स्थिति गंभीर होने पर किडनी ट्रांसप्लांट करना पड़ता है।
किडनी स्वस्थ रखने के लिए सावधानियां
नियमित रूप से व्यायाम करें और वजन नियंत्रित रखें। समय-समय पर मेडिकल चेकअप कराते रहें। ब्लड शूगर और ब्लड प्रेशर नियंत्रित रखें। दर्दनिवारक दवाइयां या स्टेरॉयड लेने से बचें। संतुलित और पौष्टिक आहार लें। रोजाना 3-4 लीटर पानी या लिक्विड डाइट जरूर लें।