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जीवंत विरासत के दीदार साहित्य के झरोखे से

10:45 AM Dec 17, 2023 IST
जीवंत विरासत के दीदार साहित्य के झरोखे से
कुतुब पर हेरिटेज-लिटरेचर वाक समूह वाक-ए-दिल्ली की टीम
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हेरिटेज वॉक किसी शहर या क्षेत्र की विरासत, संस्कृति और रीति-रिवाज जानने का जरिया है। ऐतिहासिक स्मारकों में जब दास्तानें सुनायी जाती हैं, तो ये इमारतें जीवंत हो जाती हैं। विरासत को अगर साहित्य की निगाहों से देखें, तो अपनी विरासत को बेहतर व सटीकता से समझा जा सकता है। इसी दिशा में नयी पहल की है दिल्ली के हेरिटेज-लिटरेचर वॉक समूह ने। इतिहास-साहित्य की नाटकीय प्रस्तुति इसका और भी बेहतर आयाम है।

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कवर स्टोरी

आलोक पुराणिक
लेखक प्राध्यापक व स्तंभकार हैं।

वर्ष 2023 में जो हाल-ए-हिंदुस्तान है, उसका एक सिरा 1947 से जुड़ता है और 1947 की आजादी का एक रिश्ता 1857 से पहले स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ता है। इस तरह से इतिहास वर्तमान में सांस लेता है, वर्तमान इतिहास से अलग नहीं है। हेरिटेज वॉक में लिटरेचर के रंग जोड़े हैं दिल्ली के हेरिटेज-लिटरेचर वॉक समूह ने। इतिहास के मामले में भारत बहुत समृद्ध है और लिटरेचर के मामले में भी। सिर्फ हेरिटेज से जुड़ी वॉक भी बहुत लोकप्रिय हो रही हैं। नलिनी वार्ष्णेय इनर्जी वर्कर हैं, स्टोरी-टैलर, दास्तान गो हैं, वह पंचतंत्र की कथाओं के जरिये वो सबक सिखाती हैं, जो आज की स्थितियों के हिसाब से महत्वपूर्ण हैं। नलिनी वार्ष्णेय भी एक तरह से हेरिटेज और लिटरेचर के क्षेत्र में ही काम कर रही हैं। हमारा साहित्य भी हमारी विरासत है और पंचतंत्र की कहानियों के जरिये बच्चों और बड़ों को ऐसी सीख देना तो बहुत महत्व का काम है, जो आज के हिसाब से एकदम सटीक बैठती है। नलिनी वार्ष्णेय के अनुसार विरासत को अगर साहित्य की निगाहों से देखें, तो संतुलित और सटीक तरीके से अपनी विरासत को समझा जा सकता है। साहित्य और विरासत की सटीक व्याख्या का गहरा महत्व है। पुराने वक्त से जुड़ा साहित्य पुराने वक्त से जुड़ी चुनौतियों को, उपलब्धियों को सामने ला सकता है। अगर हम इतिहास और साहित्य, दोनों को किसी हेरिटेज लिटरेचर वॉक में सुनें, तो हमें अपने अतीत के शासकों को समझने में मदद मिलती है। नलिनी वार्ष्णेय के अनुसार इतिहास, साहित्य के साथ नाटक भी मिल जाता है, हेरिटेज-लिटरेचर वॉक में, तो उसका बहुत असर होता है।

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दास्तानें सुन जीवंत होती इमारतें


हेरिटेज वॉक के साथ अब कई तरह के लोगों का काफिला जुड़ रहा है। पेशे से कारोबारी संजय खन्ना इतिहास, संस्कृति से जुड़ा लेखन करते हैं संजयखन्ना 65.इन पर। संजय खन्ना का मानना है कि भारत का हर शहर स्थानीय विरासत, संस्कृति, परंपरा, दर्शन और रीति-रिवाजों के मामले में बहुत समृद्ध है। हेरिटेज वॉक के जरिये इन सबका ज्ञान हासिल किया जा सकता है। अपनी विरासत, अपनी संस्कृति, अपने रीति-रिवाज जानने का जरिया है हेरिटेज वॉक। ऐतिहासिक स्मारकों में जब दास्तानें सुनायी जाती हैं, तो जैसे इन इमारतों में जिंदगी आ जाती है। अपने देश के साथ मोहब्बत में डूबने का जरिया है हेरिटेज वॉक। संजय खन्ना बताते हैं कि दिल्ली में रहते हुए तीन दशक हुए, इन तमाम ऐतिहासिक स्मारकों में पहले भी गये, पर हेरिटेज-लिटरेचर वॉक में जाने पर, दास्तान सुनने पर, नयी जानकारियां मिलने पर नये ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य खुलते हैं। इतिहास के साथ साहित्य मिलने से हेरिटेज वॉक में खास असर पैदा हो जाता है।

इतिहास के खुलते पन्ने
शिक्षिका और रेडियो जॉकी आरजे सिमरन गिल कहती हैं कि हेरिटेज वॉक से हमारी आंखें खुलती हैं, हमें कई सवालों के जवाब मिलते हैं। भारत को अगर सोने की चिड़िया माना जाता था, तो यह चिड़िया फुर्र कहां और कैसे हो गयी। हमें अपने हिंदुस्तान के इतिहास को समझकर हिंदुस्तान के खुशी और गमों का अंदाजा होता है। हेरिटेज वॉक में जो इतिहास समझाया जाता है, उसे पढ़कर ही समझ में आता है कि किसी इमारत के ऐतिहासिक संदर्भ हैं क्या। भारत में गुलाम वंश था क्या। इतिहास की समझ सिर्फ स्कूलों तक सीमित नहीं होनी चाहिए। स्कूल के आगे भी पढ़ाई के जहां और भी हैं। इतिहास खुद को बार-बार दोहराता है, यह हमने सुना है। अगर हमें अतीत में की गयी गलतियों से बचना है, तो पहले तो पता होना चाहिए कि अतीत में इतिहास में क्या-क्या हुआ है। इस लिहाज से हेरिटेज वॉक का रोल महत्वपूर्ण है।

विरासत के प्रति संवेदनाएं

सुजिता, अध्यापक

स्कूल अध्यापिका सुजिता गुप्ता नियमित तौर पर हेरिटेज वॉक में जाती हैं। उनका मानना है कि हेरिटेज वॉक में उन्हें जो जानकारियां मिलती हैं, उनसे उन्हें अपने इतिहास का, अपनी समृद्ध विरासत का पता लगता है और उससे उनकी संवेदनशीलता अपनी विरासत के प्रति बढ़ जाती है। निवेदिता खांडेकर इस तरह के वॉक-आयोजनों से जुड़ी रही हैं।

निवेदिता खांडेकर, हेरिटेज लिटरेचर वाक की नियमित सहभागी

निवेदिता के मुताबिक-इस तरह की हेरिटेज वॉक के बहुत आयाम हैं। निवेदिता खांडेकर बताती हैं कि दिल्ली के गुरुद्वारों का बहुत संपन्न इतिहास है। एक वॉक दिल्ली के गुरुद्वारों पर ही फोकस की जा सकती है।

इतिहास-साहित्य की नाटकीय प्रस्तुति
मीनाक्षी अग्रवाल पैरेंटिंग कोच हैं, माता-पिताओं को बच्चों को लालन पालन के संबंध में मार्गदर्शन देती हैं। वह कहती हैं कि आज के य़ुवा भविष्य की चिंताओं में इतने परेशान रहते हैं, उन्हें पुराने दिनों में जाना चाहिए, वहां से कुछ सबक ले लेने चाहिए। मीनाक्षी अग्रवाल का मानना है कि इतिहास के साथ साहित्य और नाटक मिला दिया जाये, तो सारी प्रस्तुति रोचक हो जाती है। मीनाक्षी अग्रवाल ऐसी हेरिटेज वॉक में जा चुकी हैं, जिनमें इतिहास के चरित्रों को नाटकीय प्रस्तुतियों के माध्यम से सजीव और साकार किया गया है। मीनाक्षी अग्रवाल युवाओं को विशेष सलाह देती हैं कि वे ऐसी हेरिटेज वॉक के जरिये अपने अतीत से रूबरू हों।
बिंदु जग्गी हेरिटेज लिटरेचर वॉक को विशिष्ट अनुभव मानती हैं। साहित्य और इतिहास का ऐसा रिश्ता जुड़ता है कि जो दास्तान हमको हेरिटेज वॉक में सुनायी जाती है, उसके बारे में और ज्यादा जानने का मन होता है। जिन लोगों के उद्धऱण दास्तान में, हेरिटेज लिटरेचर वॉक में दिये जाते हैं, उनका लिखा और अधिक पढ़ने का मन होता है। फिर से उन साहित्यकारों को पढ़ने का मन होता है, जिन पर वक्त की धूल जमती जा रही है। बिंदु जग्गी का कहना है कि हेरिटेज-साहित्य की मिली-जुली प्रस्तुति से साहित्य की तरफ जाने का मन होता है। इस तरह से साहित्य और हेरिटेज दोनों के प्रति हमारी संवेदनशीलता बढ़ती है।

ताकि इतिहास शिक्षण बने रोचक

मनीषा वर्मा, अध्यापक

आर्मी वेलफेयर एजुकेशन सोसाइटी में मनीषा वर्मा प्रशिक्षक (समावेशी शिक्षा) का मानना है कि इतिहास को रोचक तरीके से समझाने के लिए जरूरी है कि उन्हें व्यावहारिक तरीके से पढ़ाया जाना चाहिए। मनीषा वर्मा हेरिटेज वॉक में नियमित तौर पर शामिल होती हैं। मनीषा का मानना है कि ऐतिहासिक इमारतों में जाकर संबंधित इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए। दरअसल, स्कूली शिक्षा में इतिहास को बहुत ही अरुचिकर तरीके से पढ़ाया जाता है। लोग इतिहास को परेशान-से होकर पढ़ते हैं स्कूली जीवन में। रोचक हेरिटेज वॉक की इतिहास शिक्षण में भूमिका होनी चाहिए, ताकि छात्र छात्राओं को मौका मिले कि वह किसी ऐतिहासिक स्मारक स्थल पर जाकर उसके इतिहास को समझें। उससे जुड़े ऐतिहासिक चरित्रों को समझें। उन इमारतों से जुड़े चरित्रों से संबंधित लिटरेचर को समझें। लिटरेचर और इतिहास मिल जाते हैं, तो फिर रोचकता का नया प्रवाह पैदा हो जाता है। नाटक भी इसमें जुड़ जाये तो नया असर पैदा हो जाता है।

नीता बंगा, नियमित वाकर

नीता बंगा थियेटर और फिल्म कलाकार हैं,वह हेरिटेज वॉक में नियमित तौर पर जाती रहती हैं। नीता बंगा का कहना है कि विदेशों में इस तरह की हेरिटेज वॉक बहुत आयोजित होती हैं। विदेश में तो वह इस तरह की वॉक में बहुत जाती रही हैं और अब भारत में भी इस तरह की हेरिटेज वॉक को बहुत महत्वपूर्ण मानती हैं। नीता बंगा बताती हैं कि हेरिटेज-लिटरेचर वॉक में बहुत जानकारियां मिलती हैं। कई साहित्यकारों का जिक्र आता है, कई किताबों का जिक्र आता है, उन सबकी यादें ताजा हो जाती हैं। वहीं थियेटर कलाकार अपर्णा का मानना है कि हेरिटेज वॉक में जाकर हमें तमाम नाटकों के चरित्रों के बारे में हमारी समझ बेहतर होती है। जैसे इतिहास में मुहम्मद बिन तुगलक बहुत महत्वपूर्ण चरित्र है। तुगलक पर नाटक भी खेले जाते हैं। तुगलक से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों पर जाकर हमें तुगलक बेहतर समझ में आते हैं, इस समझ का इस्तेमाल हम अपने नाटकों में कर सकते हैं।
सामाजिकता और सरोकार
सामाजिक विज्ञान के अध्यापक महेश कुमार हेरिटेज वॉक की शैक्षिक भूमिका भी रेखांकित करते हैं। हेरिटेज वॉक से जरिये हम इतिहास को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। हेरिटेज वॉक के जरिये भौतिकवादी युवा पीढ़ी को अपने अतीत से जोड़ने का प्रयास हो रहा है। हेरिटेज वॉक का एक आयाम यह है कि इसमें अपनी रुचि के लोगों से रूबरू होते हैं। आमने-सामने की मुलाकात से सामाजिकता का विस्तार होता है। दिल्ली जैसे शहर में तो हेरिटेज वॉक की खास भूमिका है। इतिहासकारों का कहना है कि आज की आधुनिक दिल्ली बनने से पहले दिल्ली सात बार उजड़ी और बसी है, जिनके अवशेष अब भी देखे जा सकते हैं। निवेदिता खांडेकर का मानना है कि हेरिटेज वॉक के जरिये हम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी बेहतरीन काम कर सकते हैं। निवेदिता बताती हैं कि हम ऐसा करते रहे हैं कि हम लोगों को पहले लेकर जाते हैं दिल्ली में वजीराबाद के उधर वाले हिस्से में जहां वो साफ यमुना देख लें फिर उन्हें लेकर जाते हैं, शहर की गंदी यमुना दिखाने के लिए। लोगों को खुद अंदाजा हो जाता है कि दिल्ली में यमुना के साथ किया क्या जाता है।

नलिनी वार्ष्णेय
स्टोरी टैलर

हेरिटेज औऱ साहित्य के गढ़
दिल्ली के करीब के राज्य हरियाणा और पंजाब में हेरिटेज औऱ साहित्य के गढ़ हैं। मध्यकाल के इतिहास में पंजाब और हरियाणा के शहर, इलाके बहुत महत्वपूर्ण तरीके से आते हैं। हरियाणा का पानीपत तो इस देश की तीन ऐसी लड़ाइयों का स्थल रहा है, जिन्होंने इस देश की नियति को तय किया है। पानीपत का महत्व सिर्फ इतिहास की दृष्टि से ही नहीं। पानीपत के तीसरे युद्ध को लेकर कई साहित्यिक रचनाएं भी हुई हैं। मराठी भाषा में पानीपत उपन्यास का प्रकाशन हुआ। इसका हिंदी में भी अनुवाद हुआ। साल 1526 में पानीपत का पहला युद्ध बाबर और इब्राहीम लोदी के बीच लड़ा गया। पानीपत का दूसरा युद्ध 1556 में हेमू और बैरम खां के बीच लड़ा गया। बैरम खान उन रहीम के पिता थे, जिन्हें हिंदी दोहे लिखने में महारत हासिल थी और रहीम खुद भी सेनानी थे। पानीपत का तीसरा युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच लड़ा गया 1761 में, जिसने मराठा ताकत को कमजोर किया। अकेले पानीपत में ही तीन-तीन युद्धों की दास्तान और इनसे जुड़े साहित्य की जानकारी हेरिटेज-लिटरेचर वॉक में दी जा सकती है। साल 1192 का ऐतिहासिक तराईन युद्ध मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच लड़ा गया। इसने भी हिंदुस्तान की नियति तय करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। तराईन युद्ध का इलाका अब के हरियाणा में पड़ता है। पंजाब का सरहिंद फतहगढ़ इलाका बहुत ही महत्वपूर्ण है। विदेशी आक्रमणकारियों की दृष्टि से यह इलाका हमेशा संवेदनशील रहा है। लोगों को पता लगना चाहिए। पुरानी दास्तान में अगर साहित्य जुड़े तो दास्तान बहुआयामी हो जाती है। अब ऐसे लोगों द्वारा हेरिटेज वॉक चलायी जा रही हैं, जो सिर्फ इतिहास के विद्यार्थी नहीं रहे। एमबीए, थिएटर आर्टिस्ट, पत्रकार भी हेरिटेज वॉक चलाते हैं और अपने अंदाज में हेरिटेज से लोगों को जोड़ रहे हैं। इस तरह से हेरिटेज की जानकारियां रोचक तरीके से दी जाती हैं, तो तमाम परिप्रेक्ष्यों के हिसाब से दी जाती हैं। स्थापत्य कला, साहित्य, संगीत के इतिहास का समावेश भी हो जाता है, हेरिटेज वॉक की चर्चा में। इसलिए अब बदलते वक्त में हेरिटेज वॉक का स्वरूप और रंगत बदल रही है।

फिराक गोरखपुरी ने कहा है :-
न हो एहसास तो सारा जहां है बे-हिस-ओ-मुर्दा
गुदाज़-ए-दिल हो तो दुखती रगें मिलती हैं पत्थर में

कुतुब मीनार से अमीर खुसरो का भी रिश्ता है

मनु कौशल थियेटर कलाकार हैं। मंटो, गालिब, से लेकर अकबर इलाहाबादी तक की भूमिकाएं कर चुके हैं। दिल्ली के हेरिटेज-लिटरेचर वॉक समूह के संस्थापक सदस्य हैं मनु कौशल। हेरिटेज से लिटरेचर के रिश्ते पर उनसे बातचीत-
हेरिटेज वॉक तो हम सुनते आ रहे हैं, पर हेरिटेज-लिटरेचर वॉक क्या है?
मनु कौशल- देखिये, हर ऐतिहासिक इमारत एक किताब है, जिसमें कुछ तारीखें झांकती हैं, दिल्ली के लाल किले में सिर्फ तारीख बताने का क्या फायदा कि 15 अगस्त को यह हुआ और मई 1857 में यह हुआ। वॉक-ए-दिल्ली की हेरिटेज लिटरेचर वॉक में हम बताते हैं कि इस लाल किले में मिर्जा गालिब ने 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में क्या रुख अख्तियार किया, क्या लिखा। लाल किले में हम शायर बहादुर शाह जफर की दास्तान और शे’र सुनाते हैं, जफर मुगल सल्तनत के आखिरी बादशाह थे। शाह आलम द्वितीय मुगल सल्तनत के ऐसे बादशाह थे, जो शादियों में गाये जाने वाले समधी-समधन गीत भी लिखते थे। यह सब भी हमारी हेरिटेज और लिटरेचर का हिस्सा है, हम यह सब बताते हैं और नयी और पुरानी पीढ़ी के लोग इसे खूब रुचि लेकर सुनते हैं।
आप किस तरह से हेरिटेज और लिटरेचर को जोड़ते हैं?
मनु कौशल- हमारी टीम रिसर्च करती है। हमारी टीम में साहित्य और हेरिटेज से प्यार करनेवाले लोग हैं। यह काम दिल से करनेवाला काम है। जो साहित्य से, हेरिटेज से प्यार करता है, वही इसे करता है। वही इसका महत्व भी समझता है।
लिटरेचर और हेरिटेज को जोड़ने के आपके प्रयासों को लोगों की कैसी प्रतिक्रिया मिल रही है?
मनु कौशल- हमारा अनुभव बताता है कि लोगों को नया ज्ञान मिल रहा है, तो उन्हे बहुत अच्छा लग रहा है। अब जैसे कुतुबमीनार का रिश्ता कुतुबुद्दीन ऐबक से है, ठीक है। पर अमीर खुसरो जैसे बड़े कवि ने कुतुब मीनार से जुड़ी इमारतों के बारे में जो लिखा है, वह भी महत्वपूर्ण है। कुतुबमीनार से अमीर खुसरो का भी रिश्ता है, वह रिश्ता हम लोगों को बताते हैं। चांदनी चौक वॉक में शायर उस्ताद दाग के शेरों के बारे में बताते हैं लोगों को। बताते हैं कि जिन उस्ताद दाग के नाम पर कपड़ा बाजार बना हुआ है उनके शे’र क्या थे। और हम अब हेरिटेज, लिटरेचर के साथ नाटक भी जोड़ रहे हैं। दिल्ली का पुराना किला 1947 में शरणार्थियों का केंद्र रहा, इसमें करीब 60000 से 80000 लोग बतौर शरणार्थी रहे। हम मंटो की बंटवारे पर आधारित कहानियों के अंशों की नाटकीय प्रस्तुति करते हैं, तो बंटवारे के अनुभव सजीव साकार हो उठते हैं लोगों के सामने। वो बंटवारे की विभीषिका को बहुत करीब से समझ पाते हैं।
भविष्य की क्या योजनाएं हैं?
मनु कौशल- हमारा लिटरेचर भी हमारी हेरिटेज है। गालिब, दाग, जौक, अकबर इलाहाबादी भी हमारी विरासत का हिस्सा हैं। तमाम कवि, शायर, काव्य, महाकाव्य हमारी विरासत का हिस्सा हैं। हमारी कोशिश है कि सबको आमफहम भाषा में, सहज सरल तरीके से आम लोगों के सामने लायें। इसके लिए हम नाटक का सहारा ले रहे हैं। लाल किले में जफर से जुड़ा एक छोटा सा ड्रामा करते हैं। पुराने किले में मंटो आ जाते हैं, हमारे साथ। मैं गालिब बनता हूं, अकबर इलाहाबादी बन जाता हूं। मंटो बन जाता हूं। मीर बन जाता हूं। इस तरह से हेरिटेज, साहित्य और नाटक मिलाकर हम लोगों के सामने कुछ ऐसी प्रस्तुति रख रहे हैं कि लोगों को पसंद आ रही हैं और लोग हमारी दास्तानों का, वॉक का इंतजार करते हैं। हम युवा पीढ़ी से आग्रह करते हैं कि वह हमारे साथ ज़ुड़े और अपनी विरासत, साहित्य और नाटक को एक अलग अंदाज से समझने की कोशिश करे।

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