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वंदनीय गणेश : पूजा से हमारी चेतना में प्रकट होते हैं गुण

06:42 AM Sep 11, 2023 IST

श्री श्री रवि शंकर
संस्कृत में एक श्लोक है- प्रसन्न वदनं ध्यायेत, सर्व विघ्नोप शान्तये, जिसका अर्थ है, ‘जब आप शांतिपूर्ण और आनंदमय लोगों को याद करते हैं, तो सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।’ यही कारण है कि हर पूजा के आरंभ में भगवान गणपति का आह्वान किया जाता है। भगवान गणेश सर्वाधिक प्रसन्नचित्त देवता माने जाते हैं।
आदि शंकराचार्य ने अपने एक श्लोक ‘अजम निर्विकल्पम’ में भगवान गणेश को अजन्मा, निराकार, निर्विकल्प, चिदानंद तथा सर्वव्यापी ऊर्जा के रूप में वर्णित किया है, जो हर आनंद के आरंभ में उपस्थित हैं। वे न केवल आनंद में उपस्थित रहते हैं, बल्कि निरानंद में भी उपस्थित हैं। संत ध्यान करते समय जिसका अनुभव करते हैं वे वही शून्य स्थान हैं। वे सृष्टि के बीज हैं और ब्रह्मांड के सभी गणों के स्वामी हैं। वे एक सार्वभौमिक चेतना हैं जिसे ज्ञान के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
गणपति जीवन का आधार है, इसीलिए ऋषियों ने साधारण लोगों के लिए गणेश चतुर्थी पर एक विशेष अनुष्ठान के आयोजन का सुझाव दिया ताकि वे गणपति के साकार रूप की पूजा के माध्यम से उनके निराकार स्वरुप तक पहुंच सकें।
हम अपने हृदय में निवास करने वाले, सर्वव्यापी भगवान गणेश का पवित्र मंत्रों के साथ एक मूर्ति में आह्वान करते हैं। इस प्रकार मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। उत्सव समाप्त होने के बाद, हम भगवान से, हमारे हृदय में वापस आने की विनती करते हैं और फिर हम मूर्ति को, प्रेम के प्रतीक जल में विसर्जित कर देते हैं।
हमारे मन में प्रश्न होते हैं कि हमें परमात्मा की पूजा कैसे करनी चाहिए? हमारा भाव क्या होना चाहिए? दरअसल, मूर्ति को ईश्वर के रूप में देखें, न कि केवल एक मूर्ति के रूप में। तब हमारे हृदय में भक्ति खिलती है और हम स्वयं को शुद्ध भक्ति सागर में डुबाने में सक्षम हो पाते हैं।
वास्तव में जब हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं तब भगवान गणेश जिन गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे हमारी चेतना में प्रकट होने लगते हैं। उनके गज समान मस्तक का बल, सहनशक्ति और साहस, उनके विशाल उदर की प्रतीक उदारता तथा स्वीकार्यता और उनके एक दांत की प्रतीक एकाग्रता, ये सभी गुण हैं जो जीवन को और अधिक संतोषप्रद बनाते हैं। भगवान गणेश अपने ऊपर उठे हाथ से रक्षा करते हैं और नीचे कि ओर इंगित करने वाले हाथ से आशीर्वाद प्रदान करते हैं। ‘रिद्धि’ जो बुद्धि की प्रतीक हैं और ‘सिद्धि’ जो विशेष क्षमताओं की प्रतीक है, ज्ञान के देवता भगवान गणेश की पत्नियां हैं। जब आप गणेश जी की पूजा करते हैं, तो आपको ज्ञान, बुद्धिमत्ता, विशेष योग्यताएं और सिद्धियां प्राप्त होती हैं। योगी मूलाधार चक्र या रीढ़ के आधार पर भगवान गणेश की उपस्थिति या ऊर्जा का अनुभव करते हैं।
उनके हाथ में ‘मोदक’ परमानन्द की प्राप्ति को दर्शाता है। ‘अंकुश’ जागरण का प्रतीक है और ‘पाश’ नियंत्रण के लिए है, जिसका अर्थ है कि आंतरिक जागरण द्वारा निकलने वाली अथाह ऊर्जा को उचित मार्गदर्शन द्वारा प्रसारित करने की आवश्यकता है।
परम सत्य की अज्ञानता, हमें संसार से बांधती है। भगवान गणेश का वाहन ‘मूषक’ अज्ञान की उन रस्सियों को काट देता है जो हमें असत्य से बांधती हैं।
इस गणेश चतुर्थी पर यह जान लें कि भगवान गणेश आपके हृदय में विराजमान हैं। और एक शिशु की तरह, भोले भाव से, भगवान गणेश की आराधना करें तथा उनके आशीर्वाद के रूप में सुख, समृद्धि और परमानन्द का आनंद लें।
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