परिवर्तनशील शिक्षा
वर्ष 1952 में अल्बर्ट आइंस्टीन प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी में अध्यापन कर रहे थे। एक दिन वे अपने सहायक के साथ कक्षा से लौट रहे थे। सहायक के हाथ में वे सभी प्रश्नपत्र थे जो उस दिन छात्रों को दिए गए थे। भौतिकी की कक्षा के छात्रों ने उन प्रश्नों को हल किया था। अध्यापक ने तनिक झिझक के साथ पूछा, ‘माफ़ करें, क्या यह वही प्रश्नपत्र नहीं है जो आपने भौतिकी के छात्रों को पिछले साल दिया था?’ इस पर अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा, ‘हम्म! वही प्रश्न फिर से पूछे गए हैं।’ सहायक ने फिर से सकुचाते हुए कहा, ‘पर आप उन्हीं छात्रों को लगातार दो साल तक एक ही प्रश्नपत्र कैसे दे सकते हैं?’ अल्बर्ट आइंस्टाइन ने उत्तर दिया, ‘मैं ऐसा इसलिए कर सकता हूं क्योंकि अब जवाब बदल गए हैं। उस समय भौतिकी जगत में नई प्रगति, नई तकनीकों, सिद्धांतों और खोजों का दौर चल रहा था। रोज़ नए आविष्कार सामने आ रहे थे। जो जवाब एक साल पहले सही माने जाते थे, उनमें से बहुत सारे अब ग़लत हो चुके थे क्योंकि वह क्षेत्र तेज़ी से प्रगति कर रहा था। हमारी परिस्थिति भी यही है। हो सकता है कि आज के समय में उस उपाय या विचार का कोई मोल ही न रहा हो।
प्रस्तुति : पूनम पांडे