छोटी उम्र में वैक्सीन देगी सुरक्षा कवच
महिलाओं में सर्विक्स कैंसर से मौतों के मामले बहुत ज्यादा हैं। छोटी उम्र की लड़कियों के इस गंभीर रोग की चपेट में आना भी चिंता बढ़ाता है। शुरुआत में इसके लक्षण नजर नहीं आते इसलिए किशोर अवस्था में ही टीकाकरण व जांच के प्रति जागरूकता जरूरी है।
कविता राज
भारत में महिलाओं और लड़कियों में सबसे ज्यादा आम कैंसर है गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर, जिसे सर्विक्स या सर्वाइकल कैंसर भी कहते हैं। यह भी कि देश में कैंसर से होने वाली मौतों में सबसे अधिक मामले सर्वाइकल कैंसर के ही सामने आते हैं। टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल में विशेषज्ञ डॉ. गणेश बताते हैं कि बीते कुछ सालों में छोटी उम्र की लड़कियों में इस तरह के कैंसर के मामले देखने को मिले हैं। शायद यही वजह है कि सरकार ने इसकी गंभीरता को पहचान कर हाल ही में अंतरिम बजट में 9 से 14 वर्ष की लड़कियों के लिए सर्वाइकल कैंसर के मुफ्त टीकाकरण की घोषणा की है। ताजा घटनाक्रम में एक बॉलीवुड अभिनेत्री पूनम पांडे की इस कैंसर से मौत की झूठी खबर ने भी सर्विक्स कैंसर की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित किया। डॉ. गणेश के मुताबिक, इस बीमारी को ‘साइलेंट किलर’ कहा जा सकता है क्योंकि शुरुआत में इसके कोई बड़े या गंभीर लक्षण नज़र नहीं आते हैं और महिलाएं इसके बारे में खुलकर बात भी नहीं करती हैं।
पेपिलोमा वायरस है रोग की वजह
मुंबई के टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल में ऑन्कोलॉजी और रोबोटिक सर्जन डॉ. गणेश ने बताया, कि हर साल देश में 10 लाख से लेकर 13 लाख तक मामले कैंसर मरीज़ों के सामने आते हैं। इनमें बीते कुछ सालों में सर्विक्स कैंसर के मामलों में ओरल कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर की तुलना में कमी देखी गई है। सर्विक्स कैंसर गर्भाशय ग्रीवा में शुरू होता है, यानी यूटरस का अगला हिस्सा जिसे सर्विक्स कहते हैं, वहां पर होने वाले कैंसर को सर्वाइकल या सर्विक्स कैंसर कहते हैं। डॉ. गणेश के मुताबिक इसका कारण एचपीवी यानी ह्यूमन पेपिलोमा वायरस है जो शारीरिक संसर्ग के जरिये किसी व्यक्ति के शरीर में दाखिल होता है।
एचपीवी कैसे फैलता है
मुंबई के टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल में सर्जन, डीईए के प्रोजेक्ट डायरेक्टर और नोडल ऑफिसर डॉक्टर गणेश कहते हैं कि ‘यह मुख्य रूप से एचपीवी के लगातार संक्रमण के कारण होता है। यह वायरस बहुत जोखिम वाला माना जाता है। सर्विक्स यानी गर्भाशय के मुंह पर लंबे समय तक होने वाला इन्फेक्शन जो पेपिलोमा वायरस के कारण होता है, वही संक्रमण लगभग सभी गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का कारण है। ह्यूमन पेपिलोमा भी दो तरह के हैं। इनमें एक वायरस है एचपीवी 16 और दूसरा है एचपीवी 18 जो दुनिया में 70% गर्भाशय कैंसर का कारण बन जाते हैं। इस तरह के कैंसर का खतरा दैहिक संबंधों में सक्रिय लोगों में अधिक होता है। विशेषज्ञ डॉ. गणेश के मुताबिक, महिलाओं में आमतौर पर इसके होने की वजह कम उम्र में वर्जनाएं तोड़ना है।
ऐसे लक्षणों से करें पहचान
गर्भाशय के मुंह पर लगातार संक्रमण, पीरियड्स के बाद स्पॉटिंग, पीरियड्स में बहुत अधिक रक्तस्राव, पेट के निचले हिस्से यानी पेल्विक एरिया में दर्द, पीठ के निचले हिस्से में लगातार दर्द होना, मेनोपॉज के बाद रक्तस्राव होना, रिलेशनशिप के बाद रक्त या स्पॉटिंग होना, पेशाब करते समय दर्द और अत्यधिक खुजली, अनियंत्रित तौर पर वजन बढ़ना, लगातार पेट खराब रहना व बहुत अधिक थकान और एनर्जी की कमी महसूस होना सर्विक्स कैंसर के संकेतक हैं।
दो स्टेज तक इलाज आसान
ऑन्कोलॉजी एंव रेडिएशन विशेषज्ञ डॉ. योजना रावत के मुताबिक, स्टेज वन में इसके कुछ खास लक्षण नहीं दिखते। पहली स्टेज में यह कैंसर सिर्फ सर्विक्स की सतह पर होता है, जो बहुत कम खतरनाक है। स्टेज 2 में यह सर्विक्स से बाहर फैलने लगता है और पेल्विक एरिया तक पहुंच जाता है। इन दो स्टेज पर इस कैंसर का आसानी से इलाज हो सकता है। तीसरी स्टेज को गंभीर माना जाता है क्योंकि इसमें सर्विक्स कैंसर गर्भाशय की अंदर की परत तक पहुंच जाता है। यहां यह कैंसर पेल्विक साइडवॉल को पार कर आस-पास के बाकी अंगों को प्रभावित कर सकता है। चौथे स्टेज के कैंसर को एडवांस कहा जाता है, यहां यह गर्भाशय के पार बढ़ जाता है और दूसरे अंगों जैसे फर्टिलाइजेशन ट्यूब्स में पहुंच जाता है।
जांच के तरीके
सर्विक्स कैंसर की जांच के लिये सबसे पहले स्वास्थ्य देखभाल विशेषज्ञ स्कैन, ब्लड टेस्ट के साथ इमेजिंग टेस्ट करा सकते हैं। पैप स्मीयर या एचपीवी परीक्षण जरूरी है। प्री-कैंसर और पीरियड्स की अनियमितताओं के संकेतों की जांच से इसका पता लग सकता है। एचपीवी मोलेक्यूलर टेस्ट , पंच बायोप्सी या एंडोकर्विकल ट्रीटमेंट जैसी तकनीकें कारगर हैं।
वैक्सीन कब लगवाएं
डॉ. योजना रावत का कहना है कि ‘कैंसर से बचने के लिए लड़कियों में 9 से 25 साल की उम्र तक वैक्सीन कराना उचित है। डॉक्टर का कहना है कि पुबर्टी पीरियड और दैहिक संबंधों की दस्तक से पहले वैक्सीन लग जाना कारगर है। हालांकि 45 साल की महिलाएं भी जांच के बाद ये वैक्सीन लगवा सकती हैं। टीनएज लड़कियों को और ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं को इस बारे में जागरूक करना बेहद जरूरी है। डॉ. रावत के मुताबिक, इसके खतरे को कम करने के लिये टीकाकरण आवश्यक है।