जीवन का सदुपयोग
महर्षि रमण के आश्रम के समीप ही एक शिक्षक का आवास था। उनके घर प्रतिदिन लड़ाई-झगड़े होते रहते थे। एक दिन रोज-रोज की लड़ाई-झगड़ों से तंग आकर शिक्षक ने आत्महत्या कर लेने का निश्चय कर लिया, लेकिन आत्महत्या करने से पहले उन्होंने इस विषय पर महर्षि रमण से सलाह लेने की सोची। अत: वह महर्षि से सलाह लेने के लिए उनके आश्रम जा पहुंचे। महर्षि उस समय आश्रमवासियों के भोजन के लिए पत्तलें तैयार कर रहे थे। शिक्षक उन्हें प्रणाम कर बोले, ‘महात्मन्, आप इन पत्तलों को कितने परिश्रम से तैयार कर रहे हैं, लेकिन आश्रमवासी इन पर भोजन कर इन्हें फेंक देंगे।’ महर्षि रमण मुस्कुराते हुए बोले, ‘आपका कथन एकदम सत्य है, परंतु वस्तु का सदुपयोग कर फेंक देने में कोई बुराई नहीं है। बुराई तो तब कही जाती जब वस्तु का सदुपयोग किये बिना फेंक दिया जाता।’ शिक्षक को महर्षि की बात समझ में आ गयी और उन्होंने उसी पल अपने मन से आत्महत्या का विचार त्याग दिया। प्रस्तुति : पुष्पेश कुमार पुष्प