जीटी रोड पर बदस्तूर मनोहर सियासत
नरेश कौशल
सियासत में रणनीतियां जन कल्याण के लिये विरले ही बनती हैं। सत्ता हथियाने या सत्ता में बने रहने के लिये साम-दाम-दंड-भेद सहित तरह-तरह के हथकंडे अपनाये जाना आम बात है। महाभारत से लेकर अब तक यही सिलसिला जारी है। पाण्डवों को पांच गांव से भी वंचित रखे जाने पर कुरुक्षेत्र में यही कुछ हुआ। अब इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि हरियाणा में चुनावी महाभारत के लिये एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी ने अंतत: कुरुक्षेत्र को ही पहल दी है। मनोहर लाल मंत्रिमंडल के इस्तीफे के उपरांत मंगलवार सायं कुरुक्षेत्र से ही पार्टी सांसद नायब सैनी को हरियाणा सरकार की कमान सौंपी गयी। हालांकि वह विधायक भी नहीं हैं, फिर भी सियासत की चौसर पर फेंके उनके मोहरे पर ही पार्टी हाईकमान ने अपनी मुहर लगायी। प्रदेश के सत्ता पटल पर चौबीस घंटे के भीतर हुए इस नाटकीय घटनाक्रम का लब्बोलुआब यह है कि मंच के अभिनेता मनोहर लाल भले पार्श्व में चले गये हों, मगर पलायन में वह कतई नहीं गये। मंच पर होने वाले नायाब अभिनय के निर्देशक मनोहर लाल ही होंगे इसमें किसी भी तरह का संशय नहीं होना चाहिए।
यह तो स्वाभाविक है कि लगातार दो पारियों में एक ही चेहरे के नेतृत्व से जनता का मोहभंग होने की आशंका अक्सर बनी रहती है। गुणा-जोड़ के गणित में और सियासी विज्ञान में महारत रखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नये मुखौटे से बदलाव करके गुजरात माॅडल का सफल प्रयोग यहां भी दोहराया है। मंगलवार की सायं हुए इस बदलाव के संकेत दरअसल मोदी ने सोमवार सुबह ही गुरुग्राम में द्वारका हाई-वे के उद्घाटन भाषण दे दिये थे। मोदी ने हरियाणा में पार्टी प्रभारी रहते हुए मनोहर लाल से अपने घनिष्ठ संबंधों की एक तरह से याद ताजा करायी थी। उन्होंने स्मरण किया कि दरियों से लेकर मोटरसाइकिल तक पर वे इकट्ठे बैठते रहे हैं। यह बात भी जग जाहिर है कि जहां मनोहर लाल अतीत काल में मोदी के सारथी रहे, वहीं उन्हीं दिनों में नायब सैनी एक सामान्य कार्यकर्ता या यूं कहे एक टाइपिस्ट के रूप में मोदी और मनोहर के सारथी थे। अत: सोमवार सुबह मोदी द्वारा व्यक्त किये गये उद्गारों की पुष्टि मंगलवार शाम ढलते-ढलते ‘विदाई भावनाओं’ के रूप में हो गयी।
सोशल मीडिया या सियासत के कुछ गलियारों में चल रही इस चर्चा से हम इत्तेफाक नहीं रखते कि जन मन भर जाने की वजह से मनोहर लाल अतीत में भेज दिए गये हैं। मनोहर लाल पर मोदी के विश्वास की पुष्टि करीब छह माह पूर्व भी हुई जब प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष पद पर बदलाव करके जाट नेता ओम प्रकाश धनखड़ की जगह उनके पसंदीदा उम्मीदवार नायब सैनी के नाम पर ही मुहर लगी थी। इसके साथ ही उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी से गठबंधन तोड़ने की पटकथा भी जमा-गुणा और जातिगत गणित के अंतर्गत मनोहर-मोदी की सियासी स्याही से लिखी गयी। गठबंधन भंग करने के मुख्यत: दो कारण रहे। एक, पार्टी में गठबंधन को लेकर आंतरिक रोष और दूसरे पार्टी में यह मंथन भी चल रहा था कि जजपा की संगत में जाट वोट मिलने की संभावना न के बराबर थीं। इसलिये सत्ता के आवंटन में देवीलाल के प्रति जन भावनाओं का आदर बराबर रखा गया है। दुष्यंत भले निपटा दिये गये हों, लेकिन देवीलाल के सुपुत्र निर्दलीय विधायक चौ. रणजीत सिंह को मंत्री के रूप में बरकरार रखा गया है। इसके साथ ही गैर जाट व अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के चेहरे के रूप में नायब सैनी का पत्ता खेला गया। वर्ष 2014 से जीटी रोड के हलकों पर केंद्रित गैर जाट कार्ड के बलबूते सत्ता पर काबिज भाजपा ने अब सियासत की चौसर पर कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा, जजपा के दुष्यंत चौटाला और इनेलो के अभय सिंह चौटाला के बीच जाट वोटों का बंटवारा करने का खेल खेलते हुए गैर जाटों का पासा अपने पक्ष में फेंकने का कूटनीतिक प्रयास किया है। आज की सियासत है भी सत्ता तक सीमित, जन कल्याण की बातें तो गौण होकर ही रह जाती हैं।