PGI में अनोखी ट्रेनिंग : जब ‘नवजात’ रोया, हरकत की और डॉक्टरों ने सीखा इलाज
विवेक शर्मा/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 8 मार्च
कल्पना कीजिए, एक नवजात आपके सामने लेटा है—वह सांस ले रहा है, हल्के-हल्के रो रहा है, और आपकी हर प्रक्रिया पर प्रतिक्रिया दे रहा है। लेकिन यह असली बच्चा नहीं, बल्कि अत्याधुनिक सिमुलेशन मॉडल है, जिसे नवजात शिशुओं की आपात स्थितियों से निपटने के लिए खासतौर पर तैयार किया गया है। पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ में आयोजित एक विशेष कार्यशाला में डॉक्टरों को इन्हीं 'आभासी शिशुओं' पर जीवन रक्षक चिकित्सा प्रक्रियाओं का प्रशिक्षण दिया गया। इस अनूठे अनुभव ने न केवल डॉक्टरों का आत्मविश्वास बढ़ाया, बल्कि उन्हें वास्तविक परिस्थितियों में त्वरित और सटीक निर्णय लेने के लिए तैयार किया।
कार्यशाला का सबसे रोमांचक पल तब आया, जब डॉक्टरों ने इन सिमुलेशन मॉडल्स पर काम किया—जो असली नवजातों की तरह सांस लेते, रोते और हलचल करते हैं। ये हाई-टेक डमी शिशु इलाज के हर कदम पर प्रतिक्रिया देते हैं, जिससे डॉक्टरों को यह आभास हुआ कि वे असली नवजात का उपचार कर रहे हैं। इस दौरान डॉक्टरों ने नवजात की रीढ़ से फ्लुइड निकालने, छाती में ट्यूब डालने और गर्भनाल में कैथेटर लगाने जैसी जटिल प्रक्रियाओं का अभ्यास किया।
डॉ. विवेक लाल बोले – नवजातों की बेहतर चिकित्सा के लिए यह ट्रेनिंग अहम
पीजीआई के निदेशक डॉ. विवेक लाल ने इस कार्यशाला के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, "नवजातों की चिकित्सा में दक्षता लाने के लिए सिमुलेशन आधारित ट्रेनिंग बेहद उपयोगी है। यह डॉक्टरों को वास्तविक परिस्थितियों के लिए तैयार करता है और नवजात शिशुओं की जान बचाने की उनकी क्षमता को और निखारता है। हमारी कोशिश है कि इस तरह की ट्रेनिंग नियमित रूप से आयोजित की जाए, ताकि नवजात देखभाल की गुणवत्ता को और बेहतर बनाया जा सके।"
संक्रमण से बचाव का सबसे बड़ा हथियार – मां का दूध
विशेषज्ञों ने बताया कि अस्पतालों में होने वाले संक्रमण से नवजातों को बचाने का सबसे कारगर तरीका मां का दूध है। एम्स, दिल्ली के प्रो. रमेश अग्रवाल ने कहा कि नवजात अपनी परेशानी खुद नहीं बता सकते, लेकिन अगर वे सुस्त दिखें, त्वचा का रंग बदल जाए या सांस लेने में कठिनाई हो, तो ये गंभीर संक्रमण के संकेत हो सकते हैं।
एंटीबायोटिक्स का ‘ओवरडोज’ बना सकता है बैक्टीरिया को सुपरपावर
प्रो. सौरभ दत्ता ने आगाह किया कि जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक्स देने से बैक्टीरिया और अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं, जिससे दवाएं बेअसर हो जाती हैं। उन्होंने अस्पतालों को संक्रमण के प्रकारों का अध्ययन कर एक प्रभावी एंटीबायोटिक नीति बनाने की सलाह दी ताकि दवाओं का अनावश्यक उपयोग रोका जा सके।
संक्रमण रोकने के लिए जन्म से पहले ही सावधानी जरूरी
डॉ. शिव सजन सैनी ने बताया कि अगर मां को प्रसव के दौरान बुखार हो, गर्भाशय की झिल्ली (एम्नियोटिक सैक) जल्दी फट जाए या समय से पहले प्रसव पीड़ा शुरू हो जाए, तो नवजात को संक्रमण का खतरा अधिक रहता है। ऐसे मामलों में डॉक्टरों की सतर्कता ही नवजात की जिंदगी बचा सकती है।
आईसीयू में स्वच्छता – नवजातों के लिए जीवन रक्षा कवच
विशेषज्ञों ने बताया कि नवजात आईसीयू में संक्रमण रोकने के लिए सफाई और हाइजीन बेहद जरूरी हैं। प्रो. अश्विनी सूद, प्रो. सुक्शम जैन और प्रो. मनीषा बिस्वाल ने बताया कि वेंटिलेटर, कैथेटर और अन्य चिकित्सा उपकरणों की उचित सफाई से अस्पताल में संक्रमण की संभावना को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
जब डॉक्टरों ने असली परिस्थितियों में सीखा इलाज
इस कार्यशाला में सबसे खास रहा ‘हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग’ सत्र, जहां डॉक्टरों ने नवजातों के इलाज का अभ्यास किया। आभासी शिशुओं के माध्यम से उन्हें जटिल चिकित्सा प्रक्रियाओं का प्रत्यक्ष अनुभव मिला। इस प्रशिक्षण से डॉक्टरों को न केवल आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद मिली, बल्कि नवजातों की जान बचाने की उनकी दक्षता भी बढ़ी।