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दुर्भाग्यपूर्ण विवाद

08:21 AM Oct 16, 2024 IST
दुर्भाग्यपूर्ण विवाद
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गत एक वर्ष से अधिक समय से भारत तथा कनाडा के बीच जारी कड़वे विवाद का जो चरम हाल ही में देखने में आया है, वह दोनों देशों के दीर्घकालीन संबंधों के हित में कदापि नहीं कहा जा सकता है। निश्चय ही यह दोनों देशों के रिश्तों में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। अपने घरेलू राजनीतिक हितों को साधने के लिये जस्टिन ट्रूडो के हालिया तल्ख आरोपों के चलते ही भारत आलोचना- निंदा जैसे कदमों से कहीं और आगे निकल गया है। भारत की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक ही थी जब जून 2023 में कट्टरपंथी सिख नेता हरदीप सिंह निज्जर, जिसे भारत ने आतंकवादी घोषित किया था, की हत्या में शीर्ष भारतीय राजनयिकों की संलिप्तता के आरोप कनाडा सरकार द्वारा लगाये गए। नई दिल्ली ने खुले तौर पर इस कटुता को पैदा करने में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रडो की नकारात्मक भूमिका का आरोप लगाया है। जिसके मूल में उनका घरेलू राजनीतिक एजेंडा है। भारत सरकार ने उन पर आरोप लगाया है कि अपनी अल्पमत सरकार को बचाने के लिये तैयार घरेलू एजेंडे के तहत ही जस्टिन ट्रूडो भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया अपना रहे हैं। निश्चित रूप से इस दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम की परिणति के चलते राजनयिकों के निष्कासन ने दोनों देशों के संबंधों को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। यह निर्विवाद सत्य है कि पिछले एक साल से जारी इस विवाद को सुलझाने में कनाडा की तरफ से संयम दिखाने के प्रयास ना के बराबर ही हुए हैं। जिसकी जवाबदेही जस्टिन ट्रूडो को ही स्वीकारनी होगी। दरअसल, कनाडा में अल्पमत सरकार चला रहे जस्टिन ट्रूडो लगभग नौ वर्ष के कार्यकाल के दौरान अपने घर में लगातार अलोकप्रिय होते जा रहे हैं। यहां तक कि उनके अपने राजनीतिक दल लिबरल पार्टी में उनका मुखर विरोध हो रहा है। इसके चलते पार्टी के भीतर पद छोड़ने को लेकर लगातार दबाव बढ़ रहा है। जो उनकी अपरिपक्व राजनीति का ही पर्याय कहा जा सकता है।
दरअसल, अपनी सत्ता को डांवाडोल होते देख, कनाडा के लोगों का ध्यान हटाने के लिये ट्रूडो इस तरह के अप्रिय विवादों को हवा दे रहे हैं। आरोप लगाया जा रहा है कि सत्ता पर कब्जा बनाये रखने के लिये ट्रूडो सिख चरमपंथी तत्वों का तुष्टीकरण करने हेतु इस तरह के आरोपों को हवा दे रहे हैं। निश्चय ही भारत पर इस तरह के आरोप, राजनीतिक आकांक्षाओं के चलते लगाने से भारत के साथ कनाडा के संबंधों को जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई करना अगले कुछ वर्षों में संभव नहीं हो सकेगा। निस्संदेह इस घटनाक्रम ने राजनयिक संकट को और गहरा किया है। इसमें दो राय नहीं कि भारत कनाडा सरकार द्वारा लगातार अलगाववादियों को समर्थन देने पर चिंता व्यक्त करता रहा है। लेकिन अपनी सरकार बचाने में जुटे जस्टिन ट्रूडो ने भारत की मांग को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया है। जो मामला अब लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। यह अजीब बात है कि कनाडा सरकार सिख अलगाववादियों को निशाना बनाने के लिये आपराधिक नेटवर्क चलाने का आरोप लगा रही है। हालांकि, भारत विगत में ओटावा से भारतीय मूल के गैंगस्टरों पर लगाम लगाने के लिये कहता रहा है। बहरहाल, आक्रामक राजनीति का यह रवैया भारत-कनाडा के संबंधों को लगातार खतरे में डाल रहा है। निर्विवाद रूप से यह चिंताजनक स्थिति किसी भी देश के हित में नहीं है। निश्चित रूप से बंद दरवाजों के पीछे कूटनीतिक संबंधों की गुंजाइश कायम रहनी चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि अंतर्राष्ट्रीय राजनय में बड़े राष्ट्रों से परिपक्व व संयम की उम्मीद की जाती है। कनाडा सरकार को ध्यान रखने की जरूरत है कि किसी देश की संप्रभुता के लिये चुनौती पैदा करने वालों को अपनी राजनीति का मोहरा नहीं बनाया जाना चाहिए। ऐसे तत्वों को प्रश्रय देने से कालांतर उनके लिये भी ऐसी चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। यदि ट्रूडो भविष्य में भी ऐसी ही नीतियों को जारी रखते हैं तो वैश्विक स्तर पर कनाडा की साख पर भी आंच आएगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले वक्त में दुराग्रह त्याग कर रिश्तों को पटरी पर लाने की गंभीर कोशिश होती नजर आएगी।

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