अविस्मरणीय सैन्य मिशन
अलकनंदा सिंह
सियाचिन में चला ‘ऑपरेशन मेघदूत’ सैन्य इतिहास की एक अविस्मरणीय गाथा है। ऑपरेशन भले ही 1984 में हुआ, लेकिन इसकी भूमिका भारत के विभाजन के वक्त ही लिखी गई। पटकथा का बड़ा अंश कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्धों के वक्त लिखा गया। दरअसल, इस युद्ध के बाद 1949 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की मध्यस्थता में दोनों देशों के बीच कराची समझौता हुआ। इसके अनुसार अविभाजित कश्मीर में एक युद्धविराम रेखा (सीएफएल) पर सहमत हुए। युद्धविराम रेखा का सबसे पूर्वी हिस्सा एनजे 9842 नामक एक बिंदु से आगे खींचा गया था। समझौते में शामिल भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सचिव रहे स्वर्गीय लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा ने बाद में लिखा, ‘उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि एनजे 9842 से आगे की ऊंचाइयों पर सैन्य अभियान हो सकते हैं।’
वर्ष 1982 में जब लेफ्टिनेंट जनरल एम.एल. छिब्बर उत्तरी सेना कमांडर थे, तो उन्हें पाकिस्तानी सेना का एक विरोध पत्र दिखाया गया। जिसमें भारत को सियाचिन से बाहर रहने की चेतावनी दी गई थी। सेना ने कड़े शब्दों में इसका विरोध दर्ज कराया और 1983 की गर्मियों के दौरान ग्लेशियर पर गश्त जारी रखने का फैसला किया। भारतीय सेना समझ गई कि पाकिस्तानी सेना सियाचिन ग्लेशियर पर धावा बोलने की तैयारी में है।
तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल मनोहर लाल छिब्बर, ले. ज. पीएन हून और ले. ज. शिव शर्मा के नेतृत्व में भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन मेघदूत’ शुरू कर दिया। साल्टोरो रिज पर कब्जे के लिए 10 से 30 अप्रैल के बीच किसी भी दिन ऑपरेशन शुरू करने की योजना बनी। इसका नेतृत्व की जिम्मेदारी दी गई ब्रिगेडियर विजय चन्ना को। इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी चुनौती थी खराब मौसम और अत्यधिक ठंड, जहां तापमान माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। पहले चीता हेलीकॉप्टर ने 13 अप्रैल को सुबह 5:30 बजे कैप्टन संजय कुलकर्णी और एक सैनिक को लेकर बेस कैंप से उड़ान भरी। दोपहर तक 17 ऐसी उड़ानें भरी गईं और 29 सैनिकों को बिलाफोंड ला में उतारा गया। जल्द ही, मौसम खराब हो गया और पलटन मुख्यालय से कट गई। तीन दिनों के बाद संपर्क स्थापित हुआ, जब पांच चीता और दो एमआई-8 हेलीकॉप्टरों ने 17 अप्रैल को सिया ला के लिए रिकॉर्ड 32 उड़ानें भरीं। ऑपरेशन मेघदूत भारतीय सैन्य इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय है।
साभार : अब छोड़ो भी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम