For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

समझें ग्लोबल वॉर्मिंग के जोखिमों की गंभीरता

09:10 AM Apr 03, 2024 IST
समझें ग्लोबल वॉर्मिंग के जोखिमों की गंभीरता
Advertisement

ज्ञाानेन्द्र रावत

विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, अगले पांच साल में वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने के 66 फीसदी आसार हैं। हालांकि पर्यावरण विज्ञानी जेक हौसफादर की मानें तो 1.5 डिग्री से. वैश्विक तापमान 2030 से पहले पहुंचने की उम्मीद नहीं है। लेकिन हरेक साल 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के करीब पहुंचना भी बड़ा संकट है। ला नीना से अल नीनो में तबदील होने की स्थिति में जहां पहले बाढ़ आती थी वहां अब सूखा पड़ेगा और जहां पहले सूखा पड़ता था वहां अब बाढ़ के आने का अंदेशा है। दुनिया में तापमान में हो रही बढ़ोतरी खतरे का संकेत है। जलवायु परिवर्तन ने इसमें अहम भूमिका निभाई है।
दरअसल, तापमान की तुलना का यह वह समय है जब औद्योगीकरण से फॉसिल फ्यूल का उत्सर्जन शुरू नहीं हुआ था। विज्ञानियों ने अल नीनो के कारण गर्मी के इस तरह के भीषण उफान की आशंका जताई है। यह सब कोयला, तेल और गैस के जलाने की सभी सीमाएं पार करने का दुष्परिणाम है। फिर बीते सालों की प्राकृतिक घटनाओं को देखते हुए यह कम आश्चर्यजनक नहीं है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने में तत्परता से कारगर कदम उठाने में वैश्विक समुदाय उतना सजग नहीं दिखता जितना होना चाहिए। बीते साल मार्च, 2023 से इस साल 2024 के बीच के बारह महीनों में वैश्विक तापमान ने 1.5 डिग्री की सीमा को पार कर लिया है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन यानी डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट की मानें तो न केवल बीता वर्ष बल्कि पूरा बीता दशक धरती पर अभी तक का सबसे गर्म दशक रहा है। संगठन ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यह वर्ष भी गर्मी का रिकॉर्ड तोड़ सकता है।
यूरोपीय पर्यावरणीय एजेंसी यानी ईईए की मानें तो यूरोप तेजी से बढ़ते तापमान के कारण जलवायु संबंधित खतरों से जूझने के लिए तैयार नहीं है। जंगलों की आग की चपेट में वहां के घर आ रहे हैं, मौसमी आपदाओं का असर लोगों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर रहा है। इस बाबत ईईए की एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर कहती हैं कि यूरोप की जलवायु खतरे में है। यह खतरा हमारी तैयारियों की तुलना में तेज गति से बढ़ रहा है। हमें फसल और लोगों की सुरक्षा के लिए तात्कालिक कार्रवाई की जरूरत है। यदि निर्णायक कार्रवाई अभी नहीं हुई तो सदी के अंत तक अधिकतर जलवायु खतरे गंभीर होंगे।
यदि तापमान वृद्धि दर पर अंकुश नहीं लगा तो सदी के अंत तक गर्मी से 1.5 करोड़ लोगों की जिंदगी संकट में आ जायेगी। इसका अहम कारण जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन से सदी के अंत तक सर्वाधिक गर्मी होना है। अमेरिका की पर्यावरण संस्था ग्लोबल विटनेस और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कहा कि दुनिया की प्रमुख जीवाश्म ईंधन कंपनियों द्वारा तेल और गैस का अत्यधिक मात्रा में उत्सर्जन अहम कारण है। यदि उत्सर्जन स्तर 2050 तक यही रहा तो 2100 तक गर्मी भयावह स्तर तक पहुंच जायेगी। नतीजा लाखों जिंदगियों के अस्तित्व पर सवालिया निशान हाे सकता है।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मॉडल पर गौर करें तो प्रत्येक मिलियन टन कार्बन में बढ़ोतरी से दुनियाभर में 226 अतिरिक्त हीटवेव की घटनाओं में बढ़ोतरी होगी। यूरोपीय देशों में तेल कंपनियों में उत्पादित जीवाश्म ईंधन में 2050 तक वायुमंडल में 51 अरब टन कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन बढ़ जायेगा। वहीं शुद्ध शून्य कार्बन लक्ष्य की प्राप्ति के बाद भी 55 लाख जिंदगियां जोखिम में होंगी।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, पिछले कुछ वर्षों में हीटवेव ने तकरीबन हर महाद्वीप को प्रभावित किया। क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित अध्ययन की मानें तो यदि तापमान में तीन डिग्री की बढ़ोतरी होती है तो जहां हिमालय में सूखा पड़ने की संभावना प्रबल है, वहीं सर्वाधिक नुकसान कृषि क्षेत्र को उठाना पड़ेगा। इससे सबसे अधिक भारत और ब्राजील का 50 फीसदी से अधिक कृषि क्षेत्र प्रभावित होगा। क्लाइमेट ट्रेंड्स की रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से हिमालय पर कम सर्दी का सामना करना पड़ेगा। इसका कारण मौसम का पैटर्न बदलना रहेगा। वहीं अत्यधिक तापमान के असर से समय पूर्व जन्म दर में बढ़ोतरी का खतरा 60 फीसदी तक बढ़ जायेगा। बच्चों में हानिकारक स्वास्थ्य प्रभावों के लिए जिम्मेदार होगा। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट की मानें तो बढ़ते तापमान से अमेरिका से चीन तक खेत तबाह हो चुके हैं। इससे फसलों की कटाई, फलों का उत्पादन और डेयरी उत्पादन सभी दबाव में हैं। बाढ़, सूखा और तूफान की बढ़ती प्रवृत्ति ने इसमें और इजाफा किया है।
वाशिंगटन में सेंटर फार स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के खाद्य विशेषज्ञ कहते हैं कि उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के बड़े हिस्से के किसान मुश्किल में हैं। दक्षिणी यूरोप में गर्मी के कारण गायें दूध कम दे रही हैं। इटली में अंगूर, खरबूजे, सब्जियों और गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ है। मछलियों का आवास भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु समिति के अनुसार यदि धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना है तो 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 43 फीसदी तक घटाना होगा। आज धरती 1.7 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो चुकी है।
दरअसल, समस्या की जड़ जीवाश्म ईंधन है जिससे हमें दूर जाने की जरूरत है। फिर जलवायु संरक्षण की कार्रवाई में जी-20, सीओपी-29 और सीओपी 30 का आपस में कुछ न कुछ जुड़ाव जरूर है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसमें ग्लोबल साउथ की भूमिका कहां तक और कितनी सफल होगी, यह भविष्य के गर्भ में है। इसमें यह भी अहम है कि ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए हमें किस तापमान को बनाये रखने की जरूरत है, इस पर विचार करना महत्वपूर्ण होगा।

Advertisement

Advertisement
Advertisement
Advertisement
×