समय रहते समझें पढ़ाई में पिछड़ रहे बच्चे की समस्याएं
डॉ. दिव्य मंगला
स्कूल में पढ़ाई कर रहे 8 प्रतिशत बच्चों में हल्की से लेकर गंभीर मानसिक व दिमागी समस्याएं मौजूद रहती हैं, जिस कारण सब कुछ सुविधा होते हुए भी बच्चे पढ़ाई में निरंतर पिछड़ते चले जाते हैं। आज के दौर में अभिभावकों पर बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देने का दबाव बना रहता है। ऐसे में जब तमाम प्रयासों के बाद भी बच्चा पढ़ाई में कमजोर रहे तो पैरेंट्स अकसर कहते हैं कि यह तो पढ़ना ही नहीं चाहता या फिर दोष अध्यापक के सिर मढ़ देते हैं। लेकिन मनोचिकित्सक मानते हैं कि इस समस्या के पीछे तो मानसिक व दिमागी समस्या है। जानिये प्रमुख समस्याएं जो पढ़ाई में पिछड़ने का कारण बन सकती हैं
औसत बौद्धिक क्षमता
मनोचिकित्सकों के अनुसार, पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करने हेतु एक आवश्यक स्तर की बौद्धिक क्षमता होना जरूरी है; जिसे आईक्यू के रूप में मापा जाता है। अच्छा विद्यार्थी साबित होने के लिए आईक्यू 90 से 110 के बीच में होना आवश्यक है। इससे कम के परिणाम अच्छे नहीं होते। 70 से कम आईक्यू के बच्चों को मंदबुद्धि श्रेणी में रखा जाता है व 90 से ऊपर स्तर छात्र को समस्याओं को समझने-सुलझाने की क्षमता प्रदान करता है।
ध्यान भंग रोग
पांच प्रतिशत स्कूली बच्चे इस रोग से पीड़ित हैं, जिनका आईक्यू तो ठीक होता है, मगर इनमें एक जगह ध्यान न लगा पाने की दिमागी कमजोरी मौजूद रहती है। एक जगह टिक कर न बैठना, बेचैन रहना, काम में मन न लगना, भूलना, हाथ पैर हिलाते रहना, दूसरों से छेड़खानी करना, ज्यादा बोलना आदि इसके मुख्य लक्षण हैं। ऐसे बच्चे जल्दबाजी में काम करते हैं, जिसके कारण पढ़ाई में परेशानी होती है।
डिप्रेशन
बढ़ते दबाव के चलते कई बच्चे डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। चिड़चिड़ापन, रोने का मन करना, पढ़ाई में मन न लगना, कुछ भी अच्छा न लगना व याददाशत कमजोर होना इसके मुख्य लक्षण हैं। पढ़ाई में बच्चा यदि अचानक पिछड़ने लगे तो उसका डिप्रेशन एक कारण हो सकता है। ऐसे में बच्चे पाठ्यक्रम में दिलचस्पी नहीं ले पाते।
चिंता रोग
बड़ों की तरह बच्चे भी इस रोग से पीडि़त होते हैं। घबराहट रहना, दूसरों से बातचीत न कर पाना, आत्मविश्वास में कमी आना व डरे-डरे से रहना इस समस्या के मुख्य लक्षण है। चिंता के कारण ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होती है।
ऑटिज्म
आटिज्म एक विकार है, जिससे बच्चों में सामाजिक इंटरेक्शन, संवाद और दोहराव करने में समस्याएं होती हैं। यह एक स्पेक्ट्रम डिसआर्डर है जिसका मतलब है कि आटिज्म से प्रभावित बच्चों में विभिन्न लक्षण और क्षमताएं हो सकती हैं। जैसे सामाजिक संकेतों को समझने में कठिनाई, वर्बल और नॉनवर्बल संवाद में चुनौतियां व कुछ विशिष्ट विषयों में रुचि ज्यादा होती है।
रीडिंग व राइटिंग डिसआर्डर
स्कूल जाने वाले 7 प्रतिशत तक बच्चों में यह रोग पाया जाता है। इस रोग से ग्रसित बच्चों को लिखने व पढ़ने में खास परेशानी होती है। मनोचिकित्सक के अनुसार धीरे-धीरे लिखना, गलतियां करना, अंकों को उल्टा-सीधा लिखना ब घबराहट महसूस करना इस समस्या के मुख्य लक्षण हैं। इन्हें पठन, लेखन और गणित में कठिनाई हो सकती है। अंकों , गणितीय संख्याओं की समझ व गणितीय समस्याओं को हल करने में कठिनाई होती है।
पेटिट गाल नामक दौरे
मनोचिकित्सक के अनुसार यह दौरे मिरगी की एक किस्म है, जिसमें बच्चे के दिमाग में कुछ सैकेंड तक रहने वाले दौरे बार-बार आते हैं, इसमें बच्चा काम छोड़कर अपने आप में गुम हो जाता है और कुछ क्षण बाद फिर सामान्य हो जाता है। बार-बार पलक झपकाने लगता है या घूरने के साथ कोई असामान्य हरकत करता है।
अन्य कारण
मनोचिकित्सकों के अनुसार खून की कमी, थायरायड की समस्या, कम सुनाई देना व नज़र का कमजोर होना भी पढ़ाई में कमजोरी का कारण बन सकते हैं।
ये हैं समाधान
समय रहते अगर इन समस्याओं को समझ लिया जाये या समाधान ढूंढ़ लिया जाये तो बच्चों की जिन्दगी काफी बेहतर बनाई जा सकती है। बच्चों का मानसिक परीक्षण करना जरूरी बन जाता है ताकि मूल समस्या पकड़ी जा सके और उपचार हो सके। अनुभवी मनोचिकित्सक की देखरेख में इन समस्याओं का निवारण किया जा सकता है। मुख्य मानसिक जांचें जैसे आईक्यू की जांच, रीडिंग व राइटिंग डिसआर्डर की जांच, ध्यान भंग रोग की जांच आदि से इन समस्याओं को पकड़ने में मदद मिलती हैं। सीबीएसई गाइडलाइन में जारी निर्देश के तहत मानसिक समस्यायों से जूझ रहे इन बच्चों को पढ़ाई के पाठयक्रम में कुछ रिलेक्सेशन करवाई जा सकती है। जैसे मुख्य विषय गणित व साइंस की जगह योग, म्यूजिक या ड्राइंग जैसे विषय भी लिए जा सकते हैं। रीडिंग व राइटिंग डिसआर्डर से जूझ रहे बच्चों को लिखने के लिए राइटर और कैलकुलेटर उपलब्ध करवाते हैं या समय में रिलेक्सेशन दी जाती है।
-लेखक जीएमसीएच, चंडीगढ़ के पूर्व रजिस्ट्रार हैं।