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रामराज्य का मर्म समझिए

06:37 AM May 13, 2024 IST
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गिरीश मुकुल

आश्चर्य होता है जब कोई केवल रामराज्य की स्थापना चाहते हैं, किंतु राम के प्रतीकों को स्वीकार नहीं करते। रामराज्य का अभिप्राय राज्य में संपूर्ण जड़ -चेतन की शुचिता एवं जीवनदर्शन की पवित्रता से है। रामराज्य व्यापार, वाणिज्य, राजनीति, परिवार, समाज और राष्ट्र के संपूर्ण स्वरूप में पवित्रता का समावेशन दृष्टि गोचर होता है। रामराज्य में किसी प्रकार की विषमता, भेद की दृष्टि से देखने एवं किसी भी प्रकार से वर्ण भेद को प्रश्रय देने की सुविधा नहीं होती है।
दरअसल, श्रीराम और श्रीकृष्ण के संदेश संपूर्ण विस्तारित हैं। अगर आप प्राचीन इतिहास को देखें तो आपको नजर आएगा कि विश्व की कई सभ्यताएं समाप्त हो गईं, परंतु भारतीय एथनिक कंटिन्यूटी अभी भी अस्तित्व में है। वास्तव में ‘हमारी सामाजिक व्यवस्था देशकाल स्थिति के साथ अनुकूलित हो जाती है।’ अकबर के कालखंड में महात्मा तुलसी का जन्म हुआ, और उन्होंने रामचरितमानस की रचना भी की। कवि का उद्देश्य था भारतीय सामाजिक व्यवस्था को प्राचीनतम ऐतिहासिक विवरणों पर आधारित सामाजिक दर्शन अर्थात‍् सोशल फिलॉसफी के मापदंडों के साथ बचाए रखा जाए।
विश्व में किसी भी साहित्य में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण, शत्रुघ्न एवं भरत जैसे कोई चरित्र नजर नहीं आते। श्रीराम जननायक भी थे। भारत कभी इस बात को स्वीकार नहीं करता कि वे लोग जो यह कहते हैं कि सब कुछ ब्रह्म के अधीन है, गलत हैं। उन्हें भी पर्याप्त सम्मान के भाव से हम भारतीय देखते हैं। कुल मिलाकर राजाधिराज श्रीराम इतिहास पुरुष थे और श्रीकृष्ण भी भारतीय इतिहास का अभिन्न भाग थे। भारत विविधताओं में एकात्मकता का प्रमाण रहा है और रहेगा। रामराज्य की कल्पना और गांधी के संकल्प के साथ थे, हैं और रहेंगे। तब फिर राम-कृष्ण के प्रतीकों से दुराग्रह छोड़ दीजिए। रामराज्य के अर्थ की गहराई को समझने से ही हम वास्तविकता को समझ सकेंगे।
असल में श्रीराम और श्रीकृष्ण ने जीवन संदेश को लेकर जो संदेश दुनिया को दिया है, उस पर मंथन करें, उसके मर्म को समझें। इस परिकल्पना में जीवन सार है। संपूर्ण ब्रह्मांड के हित की बात की गयी है। रामायण हो या फिर रामचरितमानस, इसके जरिये जीवन संदेश दिया गया है। आदर्श के साथ राज्य संचालन और राजधर्म के बारे में बताया गया है। इसलिए दुराग्रह के साथ चीजों को न पेश किया जाए तो बेहतर होगा। कई टीवी शो में कुछ लोग दुराग्रहपूर्ण बात करते हैं जो उचित नहीं।
साभार : संस्कारधनी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम

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