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समझो इशारे फायदों संग जोखिमों के भी

09:30 AM Mar 17, 2024 IST
समझो इशारे फायदों संग जोखिमों के भी
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माइक्रोचिप ‘टेलीपैथी’ के बारे में दावा है कि जिस भी व्यक्ति के दिमाग में यह प्रत्यारोपित की जायेगी वह सोचने भर से फोन, कंप्यूटर आदि पर नियंत्रण कर सकेगा। एक व्यक्ति के दिमाग में इसका इम्प्लांट हो चुका है। अंगहीनता, पार्किंसन, लकवा, दृष्टिहीनता से ग्रस्त लोग इस चिप की मदद से बेहतर जीवन जी सकते हैं। परंतु इसके साथ हैकिंग व निजता के हनन जैसे जोखिम जुड़े हैं वहीं नैतिकता के सवाल भी।

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डॉ. संजय वर्मा
लेखक एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

जिस कायनात को हम जानते हैं, उसमें पृथ्वी नाम के ग्रह पर सदियों से इंसान की बादशाहत चल रही है। ताकत और आकार के पैमाने पर देखा जाए तो अतीत में डायनासोर हमसे ज्यादा बलशाली थे। आज भी हाथी, शेर, चीते से लेकर व्हेल तक तमाम जीव-जंतु हम मनुष्यों के मुकाबले कई मामलों में आगे हैं। लेकिन इंसान ने जिस चीज के बलबूते इस पृथ्वी के सभी जीवों को अपने वश में कर रखा है और मनचाही तरक्की हासिल की है, तो उसके पीछे उसका वह दिमाग है- जिसने उसे हर ताकत का तोड़ खोजकर उसे अपने काबू में करने की सहूलियत दी है। पर क्या हो अगर यह दिमाग ही किसी और के इशारे पर चलने लगे। खास तौर से हमारा दिमाग मशीनी संकेतों से संचालित होने लगे तो क्या होगा।

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यह कल्पना अब हकीकत बन चुकी है। ट्रांसह्यूमननिज्म के कट्टर समर्थक, टेस्ला और स्पेसएक्स जैसी कंपनियों के मालिक इलॉन मस्क की एक अन्य कंपनी- न्यूरोलिंक ने कुछ ही समय पहले एक मरीज के दिमाग में माइक्रोचिप का सफल इम्प्लांट किया है। एक्स पर अपने ट्वीट में मस्क ने इस प्रत्यारोपण के बाद लिखा कि दुनिया के पहले इंसान को न्यूरालिंक से इम्प्लांट प्राप्त हुआ, जिसके बाद मरीज अच्छी तरह ठीक हो रहा है। मस्क ने लिखा, ‘शुरुआती नतीजे आशाजनक हैं।’
टेलीपैथी का करिश्मा
न्यूरालिंक कंपनी के इस उत्पाद यानी माइक्रोचिप को टेलीपैथी नाम दिया गया है। इसके बारे में दावा है कि इसकी मदद से कोई भी व्यक्ति सिर्फ सोचने भर से फोन, कंप्यूटर आदि तमाम डिवाइसों पर नियंत्रण करने की ताकत प्राप्त कर लेगा। मस्क का कहना है कि इस उपकरण यानी टेलीपैथी के शुरुआती उपयोगकर्ता वे लोग होंगे, जो अपने अंगों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। मिसाल के तौर पर यदि स्टीफन हॉकिंग आज जीवित होते तो मोटर न्यूरॉन की बीमारी के बावजूद वे सिर्फ सोचने के बल पर इस उपकरण की मदद से पूरी दुनिया से संवाद कर पाते।
बात सदुपयोग की
वर्ष 2016 में स्थापित की गई कंपनी न्यूरालिंक को बीते साल यानी 2023 में यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन एफडीए से ह्यूमन ट्रायल की मंजूरी मिली थी। इस मंजूरी के बाद न्यूरालिंक ने घोषणा की थी कि वह छह साल तक जारी रहने वाले मानव परीक्षण के लिए ऐसे छह लोगों की खोज कर रही है, जिनके दिमाग में चिप फिट की जा सके। न्यूरालिंक इस चिप का परीक्षण बंदरों पर पहले ही कर चुकी थी और उसे इसमें पर्याप्त सफलता मिली थी। मानव मस्तिष्क में प्रत्यारोपित की जाने वाली यह चिप ऐसे मरीजों के लिए वरदान साबित हो सकती है, जो दिमागी बीमारियों से जूझ रहे हैं या जिनका अपने शरीर के अंगों के संचालन के लिए दिमाग से संपर्क टूट गया है। जैसे कि मोटर न्यूरॉन डिसीज जैसी एएलएस (एमियोट्रोफिक लैटरल स्क्लिेरोसिस) कही जाने वाली बीमारी और मेरु रज्जू यानी स्पाइनल कॉर्ड में चोट की स्थिति में यह प्रत्यारोपण कमाल कर सकेगा। साथ ही, जो लोग किसी दुर्घटना में अपने हाथ या पांव खो चुके हैं, तो ऐसे लोगों को दिमागी चिप बाहर से लगाई जाने वाली रोबोटिक भुजा या मशीनी पैर के सुचारू संचालन में बहुत ज्यादा मदद दे सकेगी। दावा तो यह भी है कि यह तकनीक पार्किंसन, दिमागी चोट, मिर्गी के दौरे, अवसाद, अंधेपन, लकवा और बहरेपन आदि बीमारियों में भी सहायक सिद्ध होगी। लेकिन क्या ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) कहलाने वाली यह तकनीक प्रकृति के खिलाफ नहीं है। कहीं यह तकनीक वरदान के बजाय अभिशाप तो नहीं है।


वरदान या अभिशाप
कई आशंकाएं हैं, जो टेलीपैथी नामक इस उपकरण और बीसीआई नामक इस तकनीक को संदेह के घेरे में लाती हैं। जैसे, एक आशंका यह है कि अगर किसी के दिमाग में लगाई गई चिप को किसी ने हैक कर लिया और उसके सहारे मनचाहे निर्देश देकर उस व्यक्ति से कोई काम करवा लिया तो क्या होगा। मान लीजिए, मशीनी चिप वाले दिमाग के साथ जीवित व्यक्ति को इस तरह अपने काबू में करने के बाद उस व्यक्ति से किसी की हत्या करवा दी गई, तो क्या होगा। यही नहीं, निजता का क्या होगा क्योंकि तब हो सकता है कि हैकिंग से किसी व्यक्ति के निजी जीवन की सारी जानकारियां एक झटके में कोई दूसरा हासिल कर सकता है। यही वजह है कि इंसानी दिमाग में चिप को प्रत्यारोपित करने वाली घटना को कुछ लोग इंसान के लिए सबसे बड़ी घटना करार दे रहे हैं। खतरा यह भी है कि ऐसी स्थिति में इंसान और मशीन का फर्क ही मिट जाए। इंसान खुद में एक चलता-फिरता रोबोट बन सकता है जो दूसरों के इशारे पर कोई काम कर रहा होगा।
विज्ञान जगत में ये प्रयोग काफी समय से चल रहे थे कि किसी तरह से एक के दिमाग में उत्पन्न विचार को दूसरे दिमाग तक टेलीपैथी के जरिये पहुंचा दिया जाए या फिर कोई ऐसा तरीका ईजाद किया जाए जो दिमाग को पढ़ने में मददगार साबित हो सके। करीब एक दशक के अंदर ऐसी कई परियोजनाएं शुरू हुईं, तो दावा किया जाने लगा था कि जल्द ही हमारा अपना दिमाग हमारे काबू में होगा।
इस तरह सच हुई टेलीपैथी


एक दशक पहले वर्ष 2014 में हार्वर्ड मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर अल्वारो की निगरानी में एक प्रयोग किया गया था, जिसके बारे में दावा है कि वह टेलीपैथी का सफल प्रयोग था। इस प्रयोग के तहत दुनिया में पहली बार कंप्यूटर की मदद से एक इंसानी दिमाग का विचार 5 हजार किलोमीटर दूर बैठे दूसरे इंसान के दिमाग में सिर्फ सोचने भर से पहुंचाया गया। ब्रेन-टू-ब्रेन कम्युनिकेशन का यह प्रयोग एक छोर पर भारत के तिरुअनंतपुरम में और दूसरे छोर पर फ्रांस के स्ट्रासबर्ग में बैठे व्यक्तियों के बीच किया गया। तिरुअनंतपुरम में बैठे एक व्यक्ति ने जो कुछ सोचा, उसे दूसरे छोर पर मौजूद लोगों ने हूबहू पढ़ लिया। टैलीपैथी के इस क्रांतिकारी प्रयोग के तहत शोधकर्ताओं ने इलेक्ट्रोइनसेफलोग्राफी (ईईजी) हेडसेट की मदद से ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) तकनीक का इस्तेमाल किया था। तिरुअनंतपुरम में बैठे व्यक्ति ने अपने दिमाग में दो फ्रांसीसी शब्द – होला और स्याओ (अंग्रेजी के संबोधन- हलो और जवाबी हलो के प्रतीक) सोचे थे, जिन्हें दूसरे छोर पर इन्हीं शब्दों के रूप में डिकोड करते हुए पढ़ लिया गया। एक परिपक्व टैलीपैथी की नजर में यह प्रयोग बेहद आरंभिक था, लेकिन वैज्ञानिकों ने उस वक्त दावा किया था कि 2045 तक इंसानी दिमाग को पूरी तरह कंप्यूटर पर अपलोड कर लिया जाएगा और उसकी एक-एक हरकत को पढ़ और समझ लिया जाएगा।
जब बंदर पर किया ट्रायल
मशीन यानी कंप्यूटर और दिमाग को जोड़ने वाला एक करिश्मा साल 2017 में हुआ। अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी स्थित मेडिकल सेंटर और जापान साइंस एंड टेक्नॉलजी एजेंसी के वैज्ञानिकों ने एक बंदर के दिमाग से रोबोट को संचालित करने का परीक्षण किया था। इसके तहत एक खास तरह की ट्रेडमिल पर एक बंदर को चलाया गया और उसके दिमाग से जोड़े गए इलेक्ट्रोड्स से प्राप्त संकेतों को ह्युमनॉइड रोबोट तक भेजा गया। इस प्रयोग में रोबोट ने न सिर्फ बंदर की तरह धीमे-तेज चलने की गति का अनुसरण किया, बल्कि चलने का उसका पैटर्न भी बिल्कुल बंदर जैसा ही था। जैसे कि रोबोट उस वक्त भी चलता रहा, जब बंदर ने ट्रेडमिल पर चलना बंद कर दिया था। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि बंदर ने रुक जाने के बाद भी चलने के बारे में सोचना बंद नहीं किया था। यानी रोबोट ने बंदर के दिमाग के न्यूरॉन्स की गतिविधियों को पढ़ लिया था। इसी प्रयोग को आगे बढ़ाते हुए इलॉन मस्क ने दिमाग में चिप फिट करने के लिए अपनी नई कंपनी- न्यूरालिंक कॉरपोरेशन बनाई थी जिसका आरंभिक उद्देश्य मनुष्यों के दिमाग में बेहद सूक्ष्म इलेक्ट्रोड फिट (इम्प्लांट) करना था। उस वक्त मस्क ने अपनी इस तकनीक को ‘न्यूरल लेस’ नाम दिया था।
क्या रोजगार से जुड़ेंगे दिमाग के तंतु
इंसानी दिमाग में चिप लग जाएगी, तो एक कल्पना की जा सकती है कि इससे पूरी दुनिया में बराबरी कायम हो सकती है। असल में, अभी यह देखा जाता है कि दुनिया में कुछ खास इलाके और समुदाय-प्रजाति से जुड़े लोग दिमागी काम करने में आगे रहते हैं और दूसरे हिस्सों या दूसरी प्रजातियों-इलाकों के लोग अच्छे रोजगार और ऊंची उपलब्धियां हासिल करने के मामले में पिछड़ जाते हैं। मिसाल के तौर पर नोबेल पुरस्कारों को ही लें। नोबेल पुरस्कारों में पश्चिमी देशों के आगे रहने के लिए उन देशों व इलाकों के लोगों के दिमागों की अनूठी बनावट को जिम्मेदार बताया जाता है। इसी तरह नौकरियों में चीन-भारत के लोगों को अपनी दिमागी क्षमताओं की वजह से आगे माना जाता है। लेकिन दिमाग के स्तर पर दुनिया में बराबरी आ सके- इसकी संभावना अमेरिका में चलाई जा रही एक परियोजना के जरिये खोजी जा रही है। ह्यूमन कनेक्टोम प्रोजेक्ट नामक इस परियोजना के तहत वैज्ञानिकों द्वारा करीब 1200 अमेरिकी लोगों के दिमागों का स्कैन करके मनुष्य के दिमाग को समझने का प्रयास किया जा रहा है। वैज्ञानिक लोगों के दिमाग के स्कैन चित्रों को देख कर यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि मनुष्य का दिमाग कैसे काम करता है और तब क्या होता है जब कुछ गड़बड़ हो जाती है। इस परियोजना का उद्देश्य मूल रूप से मानव मस्तिष्क की अंदरूनी संरचनाओं को समझना और दिमागी जटिलताओं को दूर करने के उपाय खोजना है। ब्रेन रिसर्च थ्रू एडवांसिंग इनोवेटिव न्यूरोटेक्नोलॉजीज के जरिये दिमाग को पढ़ने की इस कोशिश का मकसद पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक बार अमेरिकी रोजगारों पर भारतीय और चीनियों के दबदबे को खत्म करना बताया था। लेकिन साफ है कि ऐसे तकनीकी उपायों से मानवता नए मोर्चे हासिल करती है।

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