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भगोड़े अफगानी नेतृत्व की लावारिस सेना

12:49 PM Aug 21, 2021 IST
भगोड़े अफगानी नेतृत्व की लावारिस सेना
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अफगानिस्तान पर तालिबान के बलात कब्जे और वहां की लावारिस सरकारी सेना के ध्वस्त हो जाने के बाद भारत में सैन्य प्रशिक्षण पा रहे डेढ़ सौ से अधिक अफगान अधिकारियों और जवानों का भविष्य अधर में लटक गया है। इनमें से सर्वाधिक युवा देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी से प्रशिक्षण ले रहे हैं। इस अकादमी से हर छह महीने में लगभग 40 अफगानी युवा अधिकारी पास आउट होकर अपनी सेना का नेतृत्व करते हैं। अमेरिका के साथ ही भारत भी एक सशक्त और आत्मनिर्भर अफगानी सेना को तैयार करने में जुटा था। लेकिन जब राजनीतिक नेतृत्व ही भगोड़ा हो जाये तो फिर मजबूत से मजबूत सेना भी लावारिस हो जाती है।

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अफगानिस्तान के अलावा भारत दशकों से भूटान, श्रीलंका, तजाकिस्तान, मालदीव, नेपाल एवं वियतनाम आदि 18 मित्र देशों की सेनाओं के युवा अधिकारियों को प्रशिक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराता है। बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग के अलावा भारत अफगानिस्तान के सैन्य अधिकारियों को समय-समय पर विभिन्न स्थानों पर विशिष्ट सैन्य प्रशिक्षण भी कराता है ताकि उनका प्रोफेशनल स्तर ऊंचा उठ सके। अफगानिस्तान समेत विभिन्न मित्र देशों के लिये सबसे बड़ी सैन्य प्रशिक्षण सुविधा देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी में उपलब्ध है। यहां एनडीए से आने वाले कैडेटों के लिए एक साल और सीधे प्रवेश करने वालों के लिये 18 महीने का कठोर प्रशिक्षण दिया जाता है। यद्यपि आईएमए की सभी पासिंग आउट या दीक्षान्त परेडों का रिकार्ड फिलहाल उपलब्ध नहीं हो सका, फिर भी अकादमी द्वारा जारी पिछली कुछ परेडों की विज्ञप्तियों के अनुसार दिसम्बर 2014 की शीतकालीन परेड में अफगानिस्तान के 44 जैंटलमैन कैडेट अकादमी से प्रशिक्षित होकर पास आउट हुए। इसी प्रकार जून 2015 की ग्रीष्मकालीन परेड में भी 44, दिसम्बर, 2018 में 49, दिसम्बर 2020 में 41 और जून 2021 की दीक्षान्त परेड में 43 युवा अफगानी अधिकारी अकादमी से पास आउट हुए। आईएमए के अलावा भारत की इलीट सैन्य प्रशिक्षण अकादमी एनडीए खड़कवासला से भी अफगानी युवा सैन्य प्रशिक्षण के साथ ही ग्रेजुएशन प्राप्त करते हैं।

भारत में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे इन युवा सैन्य अधिकारियों का भविष्य तो अधर में लटक ही गया, लेकिन अफगानिस्तान में जान बचाने के लिये मची भगदड़ ने उनके परिवारों की खैरियत को लेकर उनकी बेचैनी बढ़ा दी है। उनकी चिन्ता का सबसे बड़ा कारण तालिबान का अफगानिस्तान की सरकारी सेना के प्रति नफरत और उनका क्रूरतम व्यवहार है। अब इनका भविष्य भारत सरकार के अगले कदम पर निर्भर है। अगर उनका प्रशिक्षण जारी रखा जाता है तो प्रशिक्षण पूरा होने पर भी उनका भविष्य अधर में है।

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भारत ने अफगानिस्तान की सेना को सशक्त बनाने के लिये 4 एमआई-25 सशस्त्र हेलीकाप्टर एवं 3 चीता हेलीकाप्टर सहित काफी आधुनिक सैन्य साजो सामान दे रखा है। भारत अफगानिस्तान के सशस्त्र बलों को आतंकवाद विरोधी प्रशिक्षण भी देता रहा हैै। अफगानी युवा अधिकारियों को इन्फेंट्री स्कूल में यंग आफिसर्स कोर्स और मिजोरम के वैरेंग्टे स्थित संस्थान में जंगल वारफेयर और आतंकवाद विरोधी प्रशिक्षण भी देता रहा है। ऐसे विशिष्ट संस्थानों में प्रति वर्ष लगभग 700 से लेकर 800 तक अफगानी सैन्यकर्मी प्रशिक्षण पाते रहे हैं। यह भी सवाल है कि क्या हमारी मेहनत और मदद अकारथ गयी? पिछले महीने अफगानिस्तान के सेना प्रमुख जनरल वली मोहम्मद अहमदजई का भारत के साथ और अधिक सैन्य सहयोग बढ़ाने के इरादे से भारत आने का कार्यक्रम था, लेकिन तालिबानियों के बढ़ते खतरे को देखते हुए उन्हें अपना दौरा स्थगित करना पड़ा।

भारत के साथ ही अमेरिका ने भी अफगानी सेना को मजबूत, आत्मनिर्भर और किसी भी चुनौती का सामना करने के लिये तैयार करने पर अरबों डालर खर्च किए हैं। न्यूयार्क टाइम्स में 13 अगस्त को छपी थॉमस जिब्बन, फहीम अबेद और शैरिफ हसन की साझा रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका ने पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान की सुरक्षा के लिये हथियारों, अत्याधुनिक उपकरणों और प्रशिक्षण पर 83 अरब डॉलर से अधिक राशि खर्च कर डाली। लेकिन वहां के राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी के कारण अफगानी सैनिकों ने तालिबानियों के आगे हथियार डाल दिये, जिस कारण अरबों डालर मूल्य के अत्याधुनिक हथियार भी तालिबान के हाथ लग गये। वहां लगभग 3 लाख की सरकारी सेना लड़ती भी तो किसके लिये?

सैन्य प्रशिक्षुओं की भांति भारत में स्कॉलरशिप के आधार पर पढ़ रहे छात्रों के समक्ष भी गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है। छात्रों के अलावा विभिन्न अन्य क्षेत्रों में आपसी सहयोग के अन्तर्गत कार्यरत या प्रशिक्षणरत अफगानी विशेषज्ञों का भविष्य भी अधर में लटका हुआ है। फिर भी फिलवक्त वहां तालिबान ही तालिबान है, इसलिये भारत की विदेश नीति और कूटनीति दोनों के लिये परीक्षा की घड़ी है।

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