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टोहाना में दो पूर्व मंत्रियों में टक्कर, रतिया में पूर्व सांसद ठोक रहीं ताल

11:01 AM Oct 03, 2024 IST
दूड़ाराम, बलवान सिंह, सुनैना चौटाला

दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
फतेहाबाद, 2 अक्तूबर
सिरसा की तरह फतेहाबाद जिला में भी डेरा सच्चा सौदा के प्रभाव को कम नहीं माना जा सकता। इस जिले के टोहाना, फतेहाबाद व रतिया विधानसभा क्षेत्रों में सबसे अधिक डेरा के अनुयायी टोहाना में हैं। हालांकि, बाकी दोनों हलकों में भी उनका पूरा असर रहता है। टोहाना ही सीट पर दो पूर्व मंत्री आपस में टकरा रहे हैं। वहीं, रतिया में पूर्व सांसद और पूर्व मुख्य संसदीय सचिव के बीच सीधी भिड़ंत है।
फतेहाबाद शहर की सीट पर समीकरण बदले-बदले दिखते हैं। यहां से इनेलो प्रत्याशी सुनैना चौटाला जहां लोगों के बीच जगह बचाने में जुटी हैं। वहीं, निर्दलीय चुनाव लड़ रहे राजेंद्र चौधरी ‘काका’ इस सीट पर पंजाबियों के अधिकार को जायज ठहराने के लिए वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं। बेशक, अभी तक फतेहाबाद में भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधी टक्कर दिखती है, लेकिन सुनैना ने जिस तरह से अपने चुनाव को उठाया है, उसने भी चुनौतियां बढ़ाने का काम किया है।
फतेहाबाद से वर्तमान में भाजपा के दूड़ाराम बिश्नोई विधायक हैं। भाजपा ने उन पर फिर से भरोसा जताया है। वहीं कांग्रेस ने पूर्व विधायक बलवान सिंह दौलतपुरिया को टिकट दिया है। दौलतपुरिया को पूर्व केंद्रीय मंत्री व सिरसा सांसद कुमारी सैलजा की सिफारिश पर टिकट मिला है। कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव विनित पूनिया के अलावा पूर्व विधायक प्रहलाद सिंह गिलाखेड़ा सहित कई नेता यहां से टिकट मांग रहे थे। शुरुआती दौर में विरोध भी हुआ लेकिन बाद में सभी शांत होकर बैठ गए। इनेलो ने फतेहाबाद के चुनाव को रोचक बताते हुए भूतपूर्व विधायक प्रताप सिंह चौटाला की पुत्रवधू सुनैना चौटाला को चुनावी मैदान में उतारा है। सुनैना चौटाला इनेलो का सबसे बड़ा महिला चेहरा हैं। वे इस बार हिसार से लोकसभा चुनाव भी लड़ चुकी हैं। सुनैना चौटाला फतेहाबाद के चुनाव को नया मोड़ देने की कोशिश में हैं। वे यहां मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटी हैं। वहीं, निर्दलीय चुनाव लड़ रहे राजेंद्र चौधरी ‘काका’ को मिलने वाले वोट बैंक से इस सीट के नतीजों पर असर पड़ सकता है।
पंजाबी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले काका को शहर के पंजाबियों का समर्थन भी इसीलिए मिलता दिख रहा है, क्योंकि वे भविष्य में इस सीट पर पंजाबियों के दावे को मजबूत बनाने की जुगत में हैं। 2014 में बलवान सिंह दौलतपुरिया ने इनेलो टिकट पर यहां से चुनाव जाता था। इसके बाद वे भाजपा में शामिल हो गए, लेकिन भाजपा ने दूड़ाराम बिश्नोई को टिकट दिया। दौलतपुरिया बाद में सैलजा के नेतृत्व में कांग्रेस में शामिल हो गए और इस बार सैलजा कोटे से टिकट लेने में भी कामयाब रहे।

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रतिया में आमने-सामने की टक्कर

सुनीता दुग्गल, जरनैल सिंह

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रतिया विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने सिरसा की पूर्व सांसद सुनीता दुग्गल को उम्मीदवार बनाया है। हालिया लोकसभा चुनावों में भाजपा ने दुग्गल का टिकट काटकर डॉ. अशोक तंवर को दिया था। वहीं, कांग्रेस ने दुग्गल के मुकाबले पूर्व मुख्य संसदीय सचिव जरनैल सिंह को उम्मीदवार बनाया है। जरनैल सिंह को भूपेंद्र हुड्डा की सिफारिश पर टिकट मिला है। रतिया में दोनों ही पार्टियों के बीच आमने-सामने की टक्कर है।

टोहाना पर हर किसी की नजर

जाट व सिख बहुल टोहाना में दो पूर्व मंत्री आमने-सामने डटे हैं। 2019 में जजपा टिकट पर विधायक बने और भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार में विकास एवं पंचायत मंत्री रहे देवेंद्र सिंह बबली भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने पूर्व कृषि मंत्री परमवीर सिंह को उम्मीदवार बनाया है। बताते हैं कि कांग्रेस इस बार उनके छोटे भाई रणधीर सिंह को टिकट देना चाहती थी, लेकिन परमवीर सिंह ने आखिरी चुनाव बताते हुए टिकट हासिल कर लिया। 2019 में भाजपा के हेवीवेट नेता सुभाष बराला को शिकस्त देकर देवेंद्र बबली पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। जजपा प्रदेशाध्यक्ष रहे पूर्व विधायक सरदार निशान सिंह भी हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। टोहाना में बबली और परमवीर के बीच सीधी भिड़ंत है।
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डेरे के रुख पर सभी की नजर

सिरसा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले फतेहाबाद जिले में भी डेरा सच्चा सौदा का अच्छा प्रभाव माना जाता है। डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को सरकार 20 दिन की पैरोल दे चुकी है। डेरा प्रमुख के बाहर आने की सूचना के साथ ही डेरा अनुयायियों ने बैठकें शुरू कर दी हैं। फतेहबाद में मंगलवार और फिर बुधवार को भी डेरा समर्थकों की बैठक हुई। सूत्रों का कहना है कि डेरा प्रेमियों से कसम खिलवाई जा रही हैं कि इस बार चुनाव में डेरे का ही आदेश मान्य होगा। डेरा की राजनीतिक विंग द्वारा अंदरखाने ही वार्ड स्तर पर गठित टीम को संदेशा भिजवाया जाता है। अब हर किसी की नजर डेरे के रुख पर है कि इस बार डेरा क्या फैसला लेता है। डेरे का फैसला चुनावी समीकरणों को बदल भी सकता है।

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