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सर्वे के दो आगे सर्वे बाकी सब पीछे

06:31 AM Oct 24, 2023 IST
सर्वे के दो आगे सर्वे बाकी सब पीछे
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आलोक पुराणिक

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चुनावी सीजन सामने है, और ढेर से सर्वे भी सामने हैं।
प्रीपोल, पोस्ट पोल, ओपिनियन, एक्जिट पोल, पब्लिक, नेता, बिजनेसमैन सर्वे ही सर्वे मिल तो लें, टाइप सर्वे चल निकले हैं। सर्वे कमाल के होते हैं, सर्वे गलत साबित हो जाये, तो भी सर्वे वाले का धंधा चलता रहता है। इस देश में सर्वे वाले और नेता का सहारा पब्लिक की मेमोरी होती है, जो फैशनेबल ड्रेस की तरह बहुत शार्ट होती है। पब्लिक भूल जाती है कि नेता ने क्या कहा था, सर्वे वाले ने क्या कहा था।
सर्वेवाले फिर नया डाटा लेकर आ जाते हैं, नेता फिर नया झूठ लेकर आ जाते हैं।
पब्लिक पुराने झूठ भूल जाती है, फिर नये झूठों के लिए तैयार हो जाती है। सर्वे वाले भी चलते जाते हैं, नेता भी चलते जाते हैं। एक सर्वे वाले ने बताया कि ये पार्टी अगली बार सरकार बनायेगी और वह वाली पार्टी भी सरकार बना सकती है। सर्वे वाले ने बताया है कि उसके सर्वे के रिजल्ट के सही होने के चांस पचास परसेंट हैं।
ज्योतिषी भी अपनी भविष्यवाणी सही होने के चांस पचास प्रतिशत बताते हैं, तो ज्योतिषियों और सर्वे वालों में क्या फर्क है जी। फर्क यह है कि सर्वे वालों को अपने झूठ बेचने के लिए तमाम तरह के चार्टों और डाटा का सहारा लेना पड़ता है, ज्योतिषी अपने काम को बहुत कॉस्ट इफेक्टिव तरीके से कर लेते हैं तो ज्योतिषियों पर भरोसा करना सस्ता पड़ता है।
सर्वे वाले बता भी दें कि वो वाले सरकार बना रहे हैं या ये वाले सरकार बना रहे हैं, तो फर्क क्या पड़ जाता है। वो वाले भी उतने ही निकम्मे निकले, जितने निकम्मे पहले वाले थे। एक निकम्मा दूसरे निकम्मे की जगह आ जायेगा, यह बताकर सर्वे वाले कौन-सा तीर चला देते हैं। तीर ये चलाते हैं जब पब्लिक ये सर्वे देख रही होती है, तब वो दूसरे बेहुदे कार्यक्रमों से बच जाते हैं। आज की रात पुतिन एटम बम चला देंगे-टाइप खबरों से बच जाते हैं। बम की जगह सर्वे देख लो।
फिर भी सर्वे लगातार होते हैं, ज्योतिषी भी लगातार चलते जाते हैं।
पब्लिक की मेमोरी की आसरा है। पब्लिक को अगर सब कुछ याद रहने लगे, तो फिर नेताओं का कारोबार ठप हो लेगा। मेरे ही इलाके में एक नेता पांच चुनाव सिर्फ इस मुद्दे पर जीत चुका है कि वह साफ पानी की लाइन घर-घर में पहुंचा देगा। दादा से लेकर पोते तक गरीबी हटाने के मुद्दे पर चुनाव जीत जाते हैं। एक उत्पाद के इश्तिहार में नारा आता है-दादा खरीदे पोता बरते। तमाम राजनीतिक नारों के बारे में भी यही कहा जा सकता है कि दादा चालू करे, पोता भी बरते। पब्लिक की मेमोरी जब तक कमजोर रहेगी, तब तक नेताओं का सर्वे वालों का धंधा चकाचक रहने वाला है।

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