अनकहा कहने की कोशिश
आलोक भांडोरिया
हरियाणा साहित्य अकादमी के श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से सम्मानित आनंद प्रकाश आर्टिस्ट ने भले साहित्य की अनेक विधाओं में लेखन किया हो लेकिन ‘जब कुछ न कहूं मैं’ इनका पहला हिंदी कविता संग्रह है। इन्होंने इसमें 51 मुक्त छंद कविताएं संकलित की हैं। इनमें अधिकतर कविताएं सामाजिक भावना से ओतप्रोत हैं।
कवि ने पुस्तक में प्रकाशित बहता जल हूं मैं, पेड़, यदि गिरा कोई तो और बकरी नामक कविता में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हुए सोचने पर विवश किया है तो वहीं- सुनो नेताजी, प्रिंसिपल, सावधान चमचे आ रहे हैं और सावधान वो आ रहे हैं कविता में व्यंग्य के माध्यम से व्यवस्था पर निशाना साधा है। ‘न बांटो मुझे’ कविता में अखंड भारत की बात करते हुए जाति और धर्म से ऊपर उठने की बात पर बल दिया है। मैं जानता हूं दर्द मजदूर का और मजदूर का बेटा हूं मैं कविता में मजदूर वर्ग के दर्द को उजागर किया है। रिश्ते नामक शीर्षक कविता में कवि ने सामाजिक व्यवस्था पर निशाना साधते हुए लिखा है कि निभाओ/ तो निभ जाते हैं रिश्ते और… आजमाओ/ तो टूट जाते हैं।
वहीं रिजेक्टिड माल नामक कविता में माल को परिभाषित करते हुए लिखा है कि ‘माल तो दोस्तो माल है, फर्क क्या पड़ता है रिजेक्टड हो या सलेक्टिड।’ कविता क्या है नामक कविता में वर्तमान दौर में लिखी जा रही कविताओं और कवियों की बढ़ती संख्या पर चिंता प्रकट करते हुए कवि ने व्यंग्य कसा है कि खुले छंद के बंध, हर व्यक्ति कवि बना है। कविता की घुटती सांस आज, कवि का सीना तना है। अन्य कविताओं में भी कवि ने लय, तुक और भाषा का विशेष ख्याल रखा है।
पुस्तक : जब कुछ न कहूं मैं लेखक : आनंद प्रकाश आर्टिस्ट प्रकाशक : सोम्या फिल्म्स, भिवानी पृष्ठ : 144 मूल्य : रु. 300.