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मातृभाषा के साथ दूसरी भाषाएं सीखने का प्रयास करें, ताकि सोच का दायरा बढ़े : कौशिक

06:51 AM Nov 06, 2024 IST

 

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पंचकूला, 5 नवंबर (हप्र)
साहित्य अकादमी भारत सरकार के सहयोग से तृतीय पंचकूला पुस्तक मेले के मंच पर इन्द्रधनुष आडिटोरियम के कान्फ्रेंस हाल में ‘भारतीय भाषाओं में अंतर-संबंध’ विषय पर विमर्श का आयोजन किया गया। इस अवसर पर माधव कौशिक, अध्यक्ष साहित्य अकादमी ने कहा कि सारी भाषायें ही हमारी हैं और किसी न किसी रूप में भारतीय संवर्धन का माध्यम हैं। वर्तमान में आवश्यक है कि हम अपनी मातृभाषा के साथ-साथ दूसरी भाषााओं को भी सीखने का प्रयास करें जिससे हमारी सोच का दायरा बढ़े। विमर्श के मार्गदर्शक पीके दास ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य का सृजन वही करता है जो सोचता है और परिवर्तन लाने की इच्छा रखता है। इस साहित्य को समझने के लिए पाठकों को भी अपनी तरफ से प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा कि साहित्य के क्षितिज के विस्तार के लिए आवश्यक है कि पाठक साहित्य से जुड़ऩे के लिए बाहरी परत को तोड़ें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात साहित्यकार चन्द्र त्रिखा ने कहा कि हमारे लिये ये जानना आवश्यक है कि भाषाएं ईंट की तरह होती हैं, आपके अच्छे विचार तभी एक अच्छे मकान का रूप लेंगे जब आपके पास शब्दरूपी ईटें होंगी। अपने आधार वक्तव्य में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली से आये प्रोफेसर देव शंकर नवीन ने कहा कि अंग्रेजी भारत के अंदर औपनिवेशिक एवं साम्राज्यवादी ताकतों का प्रतीक रही हैं। संगोष्ठी में भाग लेते हुए प्रख्यात साहित्यकार दिनेश दधिचि ने कहा कि अगर दूसरी भाषाओं से कुछ नया सीखने का अवसर है तो हमें उसे खोना नहीं चाहिए परन्तु हमें अपनी भाषा को अधिक महत्व देना चाहिए।
विमर्श में भूपिन्द्र अजीज परिहार ने भाषाएं सोच का अक्स होती हैं और एक दूसरे से जुड़ी रहती हैं। इस अवसर पर अंकित नरवाल, डाॅ. महासिंह पुनिया, मनमोहन, पंजाबी कवि, विशाल खुल्लर, सरबजीत सोहल, अश्वनी शाडिल्य, चन्द्रभान खयाल ने भारतीय भाषाओं में अंतर-संबंध विषय पर विस्तार से चर्चा की। बुूधवार को इन्द्रधनुष सभागार में ‘यूथ डॉयलाग’ विषय पर पुलिस महानिदेशक हरियाणा शत्रुजीत कपूर करेंगे। युवाओं से संवाद राष्ट्ीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली के रंगकर्मियों का समूह करेगा । प्रेमचंद की अमर कहानी चोरी एवं बड़े भाई साहब की नाट्य प्रस्तुति विमर्श में प्रोफेसर शम्भूनाथ और डाॅ. गुरमीत और डाॅ. नरेश साहित्य समाज से रूबरू होंगे।

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